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प्राण वायु को जानलेवा रही है पालीथीन

लखनऊ 13 जनवरी (वार्ता) कड़ाके की ठंड से बचने के लिये उत्तर प्रदेश में धड़ल्ले से जलायी जा रही प्रतिबंधित पालीथीन और टायर जैसे हानिकारक रासायनिक पदार्थ प्राण वायु को प्राण घातक बनाने में महती भूमिका अदा कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार अदालत के आदेश का अक्षरश: पालन करने की कटिबद्धता जताते हुये अपने कार्यकाल के दौरान अब तक कम से कम पांच बार प्रतिबंधित पालीथीन के इस्तेमाल पर रोक लगा चुकी है मगर जवाबदेह अफसरों की उदासीनता सरकार की कटिबद्धता का मखौल उड़ाने में कोई कोताही नहीं बरत रही है,नतीजन राज्य के हर शहर में प्रतिबंधित पालीथीन का इस्तेमाल खुलेआम जारी है।
इस बीच कड़ाके की ठंड से बचने के लिये अलाव के तौर पर खुलेआम जल रहे टायर ट्यूब और पालीथीन हवा में विषैले तत्वों को इस कदर घोल रहे है कि लगभग समूचे राज्य में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है जो श्वांस रोगियों के लिये जानलेवा होने के साथ विदा हो रहे कोरोना संक्रमण को हवा देने में महती भूमिका निभा सकता है।
सार्वजनिक स्थानों पर पुराने टायर, ट्यूब, प्लास्टिक, पाॅलीथिन और मोटर वाहन के खराब तेल का अलाव जलाने से टौक्सिक रसायन, पीएम 10 व 2.5 माइक्रोमीटर माप के छोटे कार्बन कण, बेंजीन, पारा, वैनेडियम तथा कैंसर फैलाने वाले डाईऔक्सिंस और फ्यूरियस हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है।
चिकित्सकों के अनुसार पालीथीन के प्रयोग से मानव शरीर असाध्य रोग की चपेट आ जाता है। पॉलीथिन के प्रयोग से रक्तचाप, नपुसंकता, अस्थमा, कैंसर और चर्म रोग जैसी घातक बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। पॉलीथिन में कुछ घंटों तक रखी गई खाद्य सामग्री विषैली हो जाती है। इन रसायनों से डीएनए खराब होने मानसिक रोग की संभावनाये बढ जाती है। डाईओक्सिंस गैसें दूसरे हानिकारक तत्वों तथा रसायनों की अपेक्षा कैंसर की बीमारी के लिए 10 हजार गुना घातक हैं।
वर्ष 2017 सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पॉलिथीन बैग्स के उपयोग पर प्रभावी प्रतिबंध लगाने के निर्देश दिए थे। बाद में जुलाई 2018 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार श्री योगी ने एक बार फिर पॉलिथीन और प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था। उन्होंने कहा था कि प्रदेश को पॉलिथीन और प्लास्टिक मुक्त करने के साथ ही 2 अक्टूबर को थर्मोकाल पर भी प्रतिबंध लगा दिया जाएगा।
अधिकारियों को निर्देश दिए गए थे कि प्लास्टिक के गिलास और पॉलिथीन थैली किसी भी सूरत में बाजार में नहीं दिखने चाहिए। आदेश में 50 माइक्रान से कम मोटाई वाली पॉलिथीन बनाने वाली फैक्ट्रियों को सील करने के भी निर्देश दिए गए थे। सरकार ने आश्वस्त किया था कि इसका विकल्प जल्द ही उपलब्ध कराया जाएगा।
हालांकि कुछ दिनों की सख्ती के बाद अधिकारियों का रुख ढीला पड़ा और पॉलिथीन से बाजार फिर से गुलजार हो गए। उच्च न्यायालय द्वारा फिर से इस बारे में जवाब-तलब करने के बाद सरकार एक बार फिर सक्रिय हुई और मई और जून को पॉलिथीन पर प्रतिबंध के एक के बाद दो आदेश जारी किए गए।
आदेशों के बेअसर होने के बाद 31 अगस्त 2019 को अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने कहा था कि एक सितंबर से यदि पॉलिथीन बैग बाजार में दिखते हैं तो उसकी जिम्मेदारी संबंधित थाने और जिम्मेदार अधिकारियों की होगी। दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। हालांकि समय गुजरने के साथ साथ एक बार फिर पालीथीन ने बाजार और घरों पर कब्जा जमा लिया।
इससे पहले वर्ष 2016 में तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार भी पालीथीन पर प्रतिबंध लगाने संबंधी प्रस्ताव को मंत्रिमंडल की बैठक में बाकायदा मंजूरी दे चुकी है हालांकि यह आदेश भी अफसरशाही के लिये मखौल उड़ाने से ज्यादा कुछ और नहीं था।
पालीथीन पर प्रतिबंध के अदालती आदेश के बार बार उल्लघंन के पीछे पर्यावरणविद और चिकित्सक सरकारों की उदासीनता के साथ साथ आम जनता को भी दोषी मानते है जो अपनी जान की परवाह किये बगैर दुकानदारो से घरेलू जरूरत का सामान पालीथीन में दिये जाने पर जोर देती है। पर्यावरणविदो का कहना है कि लोगबाग अगर अपने परिवार के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हों और घर से थैला लेकर बाजार जाये तो मोटा मुनाफा कमाने वाले पालीथीन निर्माताओं को हतोत्साहित करने में मदद मिलेगी।
पर्यावरणविद मानते है कि पॉलीथिन पर्यावरण के लिए इतनी हानिकारक है कि इसे नष्ट होने में लगभग सौ वर्ष लगते हैं। तब तक यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती रहती है। नाले या सीवर लाइन में पड़ी होने के कारण पानी के निकासी मार्ग पर बाधा बनती है। जिसमें गंदा पानी वहीं रुका रहता है। गंदे पानी से हैजा, मलेरिया जैसी बीमारियां फैलने का खतरा बना रहता है। एक मिलीमीटर मोटाई से अधिक पॉलीथिन जल्दी नष्ट हो जाती है। जिसके बनाने पर रोक नहीं है। एक मिलीमीटर मोटाई से कम बनाने वाली पॉलीथिन जल्दी से नष्ट होती है और इनका प्रयोग ही सबसे अधिक हो रहा है। वैज्ञानिक इस तरह के जीवाणु की खोज में लगे हैं जो पॉलीथिन को नष्ट कर सके।
प्रदीप
वार्ता
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