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सामाजिक सौहार्द और कौमी एकता का प्रतीक है खिचड़ी मेला

गोरखपुर 14 जनवरी (वार्ता) उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में मकर संक्रन्ति के अवसर पर गुरूवार से शुरू हुए गोरखनाथ मंदिर में खिचडी मेले को अगर सामाजिक सौहार्द और कौमी एकता का मेला कहें तो गलत नहीं होगा।
इस खिचडी मेले में 40 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम दुकानदारों की मौजूदगी इस बात का प्रमाण है। मेले से मुस्लिम दुकानदारों का रिश्ता दशकों पुराना हैं। मेले में सीतापुर के रमजान पांच दशक से गन शूटिंग की दुकान सजा रहे हैं तो आबिद उर्फ सत्तू की क्राकरी की दुकान तीन दशक से मेले की मेले की शाेभा बन रही है। मोहम्मद रईश दो दशक से मेले में चूडी बेंच रहे हैं। इम्तियाज के पीतल और स्टील के बर्तन तीन दशक से यहां चमक रहे हैं। मेले में लम्बे साथ की दास्तां किसी न किसी रूप में शिवावतारी बाबा गोरक्षनाथ में उनकी गहरी आस्था से जुडी है।
मेले में 85 वर्षीय रमजान बताते हैं कि 1970 में उन्हें फैजाबाद की नुमाइश में आने का अवसर मिला तो वहां से पहली बार मंदिर के खिचडी मेले में आये। उन्हें यहां इतना अपनापन लगा कि उसके बाद आज तक कभी गैप नहीं किया। बाबा गोरखनाथ के आशीर्वाद से ही उनके पहले बेटे को 32 साल बाद और दूसरे बेटे को 18 साल बाद संतान की प्राप्ति हुयी।
मंदिर के प्रति अपने समर्पण की वजह बताने के क्रम में आबिद शहर में वर्ष 2007 के दंगे का जिक्र करते हैं। बताते हैं कि उन दिनों मेला लगा था और वह मंदिर परिसर में थे। योगी आदित्यनाथ से उन्हें तथा उनके साथियों को सुरक्षा की पूरी गारंटी मिली थी तबसे वह योगी के मुरीद हैं। मोहम्मद इम्तियाज बताते हैं कि उन्होंने अपने पिता हाजी शौकत के साथ मेले में आना शुरू किया था। वह ब्रहमलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ से जुडे उन दिनों की याद करते हैं जब महंत जी पिता की खैरियत पूंछने के लिए उनकी दुकान तक पहुंच जाते थे।
मेले में सभी दुकानदार इस बात का जिक्र करना नहीं भूलते कि इस मेले में उनके साथ किसी तरह का दुव्र्यवहार नहीं होता। सामान के साथ-साथ दुकानदार की सुरक्षा की भी गारन्टी होती है। सभी दुकानदार ब्रहलीन महंत अवेद्यनाथ से मिले दुलार-प्यर का जिक्र करना नहीं भूलते। बताते हैं कि उन्हें महंत जी के निजी कक्ष तक जाने की इजाजत थी।
उदय प्रदीप
वार्ता
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