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बुन्देलखंड की स्थलीय संरचना का विस्तृत अध्ययन जरूरी: प्रो.वैशम्पायन

झांसी 24 फरवरी (वार्ता) उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित बुंदेलखंड विश्वविद्यालय (बुंविवि) परिसर में भूविज्ञान पर बुधवार को आयोजित वेबीनार में कुलपति प्रो़ जे वी वैशम्पायन ने बुंदेलखड की स्थलीय संरचना के विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता को रेखांकित किया।
विश्वविद्यालय परिसर स्थित भूविज्ञान संस्थान तथा इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी, करेलियन रिसर्च सेंटर, रसियन एकेडमी ऑफ साइंसेज, पेट्रोजावोडस्क, रसिया के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित लिथोस्फिेयर ऑफ द् फेनोस्कांडियन एण्ड इण्डियन शील्डः फारमेशन फ्राम आर्कियन टू रिसेंट विषय पर दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय वेबीनार के उद्घाटन समारेाह की अध्यक्षता करते हुए प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए कुलपति ने कहा कि वर्तमान संदर्भो में बुन्देलखण्ड की स्थलीय संरचना का विस्तृत अध्ययन अत्यन्त आवश्यक हो गया है, जिससे इस क्षेत्र की खनिज सम्पदा का लाभ यहा के निवासियों को प्राप्त हो सके। पृथ्वी के अन्दर तथा उसकी सतह पर होने वाले परिवर्तन मानवजीवन को प्रभावित करते हैं। वर्तमान में पृथ्वी की प्लेटों के संचलन का अध्ययन भूविज्ञान अध्ययन का प्रमुख क्षेत्र हो गया है, क्योंकि वैज्ञानिको के अनुसार स्थलीय संरचना में होने वाले परिवर्तनों के कारण खनिज सम्पदा तथा अयस्कों का पृथ्वी के विभिन्न भागों में वितरण एवं भण्डारण होता रहता हैं, जोकि किसी भी देश की आर्थिकी मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रो. वैशम्पायन ने कहा कि यह खुशी की बात है कि रशिया के करेलियन रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक तथा बुन्देलखंड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक एक साथ मिलकर शोध कर रहे है जिससे विश्वविद्यालय के अन्य संस्थान भी प्रेरित होकर इस दिशा में कार्य करेंगे। उन्हेांने आशा व्यक्त की कि वेबीनार में उच्च गुणत्तापूर्ण शोधपत्र प्रस्तुत कर उनपर विस्तृत विचार विमर्श किया जायेगा जोकि इस क्षेत्र के विकास में सहायक सिद्ध होगा।
उद्घाटन समारेाह के मुख्य अतिथि इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी, करेलियन रिसर्च सेंटर, रसियन एकेडमी ऑफ साइंसेज, पेट्रोजावोडस्क, रसिया के निदेशक प्रो.सर्गेई स्वेतोव ने अपने सम्बोधन में विश्वविद्यालय के भूविज्ञान संस्थान तथा इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी, करेलियन रिसर्च सेंटर, रसियन एकेडमी ऑफ साइंसेज, पेट्रोजावोडस्क, रसिया के बीच हुए एमओयू तथा उसके कारण हुए शोधकार्यो पर प्रकाश डाला। प्रो.स्वेतोव ने कहा कि दोनेा संस्थान आगे भी इसी प्रकार साथ मिलकर कार्य करते रहेंगे।
वेबीनार के विशिष्ट अतिथि हैदराबाद विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर अर्थ, ओशन एण्ड एटमॉसफेयरिक साइंस के प्रो.एम.जयानंद ने प्रारंभिक पृथ्वी की गतिशीलता, महाद्वीपीय विकास और क्रेटन का गठनःदक्षिण भारत के धारवाड़ क्रेटन से अंतर्दृष्टि विषयक अपने शोधपत्र में पृथ्वी की प्रारम्भिक अवस्था में महाद्वीपों के निर्माण पर प्रकाश डाला तथा बताया किस प्रकार क्रेटन का गठन हुआ।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में आयोजन सचिव प्रो.विनोद कुमार सिंह ने आमत्रित अतिथियों तथा प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की तथा विभिन्न तकनीकी सत्रों के सम्बन्ध मे जानकारी दी। उद्घाटन सत्र के अन्त में विश्वविद्यालय के संकायाध्यक्ष विज्ञान प्रो.एम.एम.सिंह ने सभी अतिथियों तथा प्रतिभागियों का आभार ज्ञापित किया।
उद्घाटन सत्र के पश्चात सम्पन्न तकनीकी सत्र में करेलियन रिसर्च सेंटर के प्रो.अलेक्ज़ेंडर स्लेबुनोव ने आर्कियन और प्रोटेरोजोइक ओरेगन्स का क्रस्टल विकासः फेनोसेन्डियन शील्ड के संदर्भ में, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, के प्रो. राजेश श्रीवास्तव ने भारतीय शील्ड में स्थानिक और अस्थायी वितरण और फेनोस्कैनियन शील्ड के लिए उनके संभावित लिंक, फिनलैंड का भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, एस्पू के डॉ. पेंटी होल्ता ने पैलियोप्रोटेरोजोइक फेनोस्कैंडियन ढाल की मेटामॉर्फिज्म और जियोडायनामिक्स सेटिंग, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, के प्रो.एच.बी.श्रीवास्तव ने गढ़वाल हिमालय, भारत के एमसीटी जोन की छोटी स्केल संरचनाएँ, जोहानसबर्ग विश्वविद्यालय के प्रो.अजहर एम.शेख ने धारवाड़ क्रेटन के नीचे लिथोस्फीयर में संशोधन, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल के प्रो.संतोष कुमार ने कुमायूं लेसर हिमालय के भौगोलिक विकास में पैलियोप्रोटेरोजोइक मैग्मैटिक घटक और उत्तरी भारतीय लिथोस्फीयर की प्रकृति पर इसके प्रभाव विषयों पर अपने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये।
सोनिया
वार्ता
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