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भारतीय स्वाधीन चेतना का अमिट हस्ताक्षर हैं रानी झांसी: प्रो़ उदय प्रताप

झांसी 02 मार्च (वार्ता) उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित बुंदेलखंड विश्वविद्यालय (बुंविवि) में “ वीरांगना लक्ष्मीबाई और स्वाधीन चेतना” विषय पर आयेाजित संगोष्ठी में मंगलवार को वक्ताओं ने महारानी लक्ष्मीबाई के शौर्य और वीरता को नमन किया।
हिन्दुस्तानी अकादमी, प्रयागराज और हिन्दी विभाग, बुन्देलखंड विश्वविद्यालय, झांसी के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का दूसर दिन “ सन 1857की स्वाधीनता संग्राम की अमित दीपशिखा महारानी लक्ष्मीबाई ” विषय पर केंद्रित रहा। इस संगोष्ठी में दूर-दूर से पधारे विद्वानों ने महारानी लक्ष्मीबाई की धरती बुन्देलखंड की उर्वर सांस्कृतिक विरासत, स्वाधीनता आन्दोलन में बुन्देलखंड की भूमिका और महारानी लक्ष्मीबाई के प्रेरणादायी व्यक्तित्व पर अपने विचार रखे।
इस गोष्ठी में प्रतिभागिता कर रहे हिन्दुस्तानी अकादमी के अध्यक्ष प्रो उदय प्रताप सिंह जी ने झांसी की रानी को भारतीय स्वाधीन चेतना का अमिट हस्ताक्षर माना। उन्होने भारतीय इतिहास में प्रचलित पूर्वाग्रहों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता पर बल दिया और घोषणा की कि वीरांगना के बलिदान दिवस पर 18 जून को उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की गरिमामयी उपस्थिति में बुन्देलखंड विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में महारानी लक्ष्मीबाई पर पुनः वृहद आयोजन किया जाएगा।
संगोष्ठी के प्रथम सत्र में मुख्य वक्ता बहादुर सिंह परमार ने बुन्देलखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डाला और कहा कि यदि बुन्देलखंड को समझना है तो बुन्देलखंड के गांवों की ओर देखना चाहिये। इतिहासविद मुकुंद मेहरोत्रा ने महारानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की चर्चा के बहाने बुन्देली इतिहास पर चर्चा की।उन्होंने साम्राज्यवादी हितों को ध्यान में रखकर लिखे भारत के इतिहास पर नवीन शोध कार्य की अनुशंसा की।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ विनम्र सेन सिंह ने झाँसी की रानी की क्रान्तिदर्शिता की चर्चा करते हुए 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की क्रान्तिचेतना पर चर्चा की। उन्होने माना कि अपने इतिहास से हम स्वयं ही अनभिज्ञ होते जा रहे हैं। आवश्यकता है कि हमारी युवा पीढ़ी अपनी समृद्ध और गौरवमयी इतिहास परम्परा को पढ़े और गुने, इसके लिये वह स्वयं अपनी दृष्टि से देखे ।
ससे पहले के सत्रों में डॉ श्याम विहारी श्रीवास्तव ने अपने महरानी लक्ष्मीबाई और बुन्देली लोक सहित्य में उनके प्रभाव पर चर्चा की। कार्यक्रम में डॉ डीपी ओझा, डॉ सुरेन्द्र नारायण सक्सेना, लक्ष्मीकांत वर्मा, मोहन नेपाली,मधुर वर्मा, वसीम खान, नदीम खान, रमेश सिंह, अमरेन्द्र त्रिपाठी, राकेश कुमार सिंह समेत अनेक विद्वानों ने विचार व्यक्त किए। शाम को आयोजित कवि समागम की अध्यक्षता हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ पुनीत बिसारिया ने की। इसमें आमंत्रित कवियों विनम्र सेन सिंह, पन्नालाल असर, अर्जुन सिंह चांद, संजीव दुबे, विनोद मिश्र सुरमणि, सुमन मिश्रा, अरुण सिद्ध, सतीश श्रीवास्तव चन्द्र, डॉ राज गोस्वामी, के के आलोक, अविनाश मिश्र अंजान, दिनेश विनम्र, राम कृपाल और राम कुमार ने देर रात तक अपनी कविताओं की रसधारा में डुबोए रखा।
इस अवसर पर डॉ मुन्ना तिवारी, प्रो देवेश निगम, डॉ सौरभ श्रीवास्तव, कौशल त्रिपाठी, मुहम्मद नईम, चित्रगुप्त, डॉ अचला पाण्डेय, डॉ श्रीहरि त्रिपाठी, नवीन चंद पटेल, डॉ रेखा लगरखा, डॉ श्वेता पाण्डेय, राजकुमार सिंह, प्रकाशक सत्यवान सिंह सहित अनेक शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। सत्रों का संचालन डॉ अचला पाण्डेय, डॉ श्रीहरि त्रिपाठी, नवीन चंद पटेल एवं शोध छात्रा ममता देवी ने किया। अन्त में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ पुनीत बिसारिया ने संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया और डॉ मुन्ना तिवारी ने आभार जताया। 03 मार्च को विद्वान रानी लक्ष्मीबाई से जुड़े स्थलों पर जाकर स्वयं उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे और चिरगांव में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए संगोष्ठी का विधिवत समापन होगा।
सोनिया
वार्ता
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