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औरैया में पंचायत चुनाव के लिए बिछने लगी बिसात

औरैया, 22 मार्च (वार्ता) उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए राजनीतिक दलों की तैयारियां जोरों पर शुरू हो गयीं हैं। एक ओर जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) चौपालों के माध्यम से पार्टी समर्थित प्रत्याशियों को जिताने की अपील कर रही है वहीं पिछले सप्ताह समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव स्वयं जिले के भ्रमण के दौरान पार्टी समर्थित प्रत्याशियों को जिताने के लिए कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार कर गये हैं।
औरैया जिला समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है पर यहां पर होने वाले चुनावों में अक्सर बड़ा उलटफेर देखने को मिलता है जिससे यह कहा जा सकता है कि जिले में किसी एक दल का एक छत्र राज नहीं रहा है। औरैया बड़े बदलाव वाला जिला माना जाता है यहां पर 3002 में तीनों विधायक बहुजन समाज पार्टी के जीते तो 2007 में दो विधायक बसपा व एक सपा का जीता, 2012 तीनों विधायक समाजवादी पार्टी के जीते तो वहीं पिछले 2017 के चुनाव में तीनों विधायक भारतीय जनता पार्टी जीते थे। इसी तरह जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में बड़े उलट फेर देखने को मिले यहां पर सत्ता के दबाव में किसी दल ने अपना अध्यक्ष बना लिया तो सत्ता बदलते ही अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से उसे हटाकर सत्ताधारी दल द्वारा अपना अध्यक्ष चुनवा लिया गया है।
इस बार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हेतु पहले जारी किए गए आरक्षण पर हाईकोर्ट में ‌दाखिल की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान 2015 से आगे आरक्षण जारी किए जाने के आदेश दिए जाने के बाद सरकार ने जिला पंचायत अध्यक्ष व सदस्य, ब्लाक प्रमुख व क्षेत्र पंचायत सदस्य एवं प्रधान व ग्राम पंचायत सदस्य पदों के लिए पुनः अन्तिम आरक्षण जारी कर दिया गया है, सम्भवता इस जारी आरक्षण में अब कोई और परिवर्तन की उम्मीद नहीं है।
जिले में इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष का पद अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित है जिस कारण अध्यक्ष पद पर काबिज होने के लिए अनुसूचित जातियों के नेताओं में अभी से खासी सक्रियता देखी जा रही है। भाजपा‌ में एक दर्जन से अधिक अनुसूचित वर्ग के नेता/नेत्री अपने लिए सुरक्षित और आसान जीत वाले क्षेत्र की खोज में जुटने के साथ पार्टी समर्थित प्रत्याशी बनने के लिए पार्टी के नेताओं के चक्कर लगाते देखे जाने लगे हैं।
वैसे जिला पंचायत सदस्य पद के लिए इस बार जिले में सात क्षेत्र अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं जिनमें तीन अनुसूचित वर्ग महिलाओं के लिए जबकि चार अनुसूचित वर्ग के लिए हैं। इन सात क्षेत्रों में बिधूना व अछल्दा ब्लाक के सभी छह क्षेत्र और एक क्षेत्र औरैया प्रथम शामिल हैं। जिस कारण जिले के अन्य ब्लाकों में रहने वाले अनुसूचित जाति के नेता इन्हीं दो‌ ब्लाकों में अपने चुनाव लड़ाने की संभावनाएं तलाश स्थानीय नेताओं के चक्कर लगा रहे हैं।
कमोवेश यही स्थित समाजवादी पार्टी के अनुसूचित जाति के नेताओं की है। बसपा नेताओं में चुनाव के प्रति अभी कोई खासी सक्रियता नजर नहीं आ रही है, पर सूत्र बता रहे हैं कि वह लोग भी चुपचाप अपनी चुनावी रणनीति को अंजाम देने में व्यस्त हैं।
प्रदेश में पहली बार जिला पंचायत अध्यक्ष व सदस्य एवं ब्लाक प्रमुख का चुनाव पार्टी आधारित होने के कारण चुनाव में काफी घमासान देखने को मिलेगा। क्योंकि एक ओर जहां जिले में भाजपा के दो सांसद राम शंकर कठेरिया व सुब्रत पाठक, एक राज्यसभा सदस्य गीता शाक्य, तीन विधायक रमेश दिवाकर, लाखन सिंह राजपूत व विनय शाक्य, जिनमें लाखन सिंह राजपूत प्रदेश सरकार में कृषि राज्यमंत्री भी हैं। वहीं बिधूना क्षेत्र के कन्नौज लोकसभा क्षेत्र में आने के कारण यह जिला अखिलेश यादव की राजनीति प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है क्योंकि स्वयं अखिलेश यादव तीन बार, उनकी पत्नी डिम्पल यादव दो बार एवं सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव यहां से एक बार सांसद चुने जा चुके हैं।
इसके अलावा एमएलसी कमलेश पाठक (हत्या के मामले में जेल में निरुद्ध), पूर्व राज्यमंत्री विनोद यादव कक्का, पूर्व सांसद प्रदीप यादव, पूर्व सांसद प्रेमदास कठेरिया, पूर्व विधायक मदन गौतम औरैया जिले में सपा का प्रतिनिधित्व कर चुके व राजनीति में सक्रिय हैं, इसलिए वह भी सपा समर्थित प्रत्याशियों को जिताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। हांलांकि संगठन की दृष्टि से बसपा जिले में बहुत कमजोर नजर आ रही है फिर भी वह अपने आधार वोट के भरोसे चुनावी मैदान में जोर आजमाइश अवश्य करेगी।
जिला पंचायत अध्यक्ष का पद अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित होने के साथ 23 जिला पंचायत सदस्यों व जिले के सात विकास खंडों में ब्लाक प्रमुख का पद भाग्यनगर में अनुसूचित वर्ग महिला, औरैया में अनुसूचित वर्ग, एरवाकटरा में अन्य पिछड़ा वर्ग महिला, बिधूना में महिला वर्ग के लिए आरक्षित है एवं अजीतमल, अछल्दा व सहार अनारक्षित है।
हांलांकि अभी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए न तो अभी अधिसूचना जारी हुई है और न ही तिथियों की घोषणा हुई है फिर भी उक्त पदों पर अपने अपने दल के कार्यकर्ताओं को पदारूढ़ कराने के लिए सभी प्रमुख दल व उनके नेता राजनीतिक बिसात बिछाने में जुट गए हैं। परिणाम क्या होगा यह तो वक्त ही बताएगा कि किसके सिर पर ताज होगा और कौन मायूस होकर घर बैठेगा, कौन दल जश्न मनायेगा और कौन अपने भविष्य 2022 को लेकर चिंतित होगा।
सं प्रदीप
वार्ता
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