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राष्ट्रीय-दिग्विजयनाथ प्रतिमा दो अंतिम गोरखपुर

महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर और आसपास के क्षेत्रों के लिए शिक्षा की जो ज्योति जलाईए उससे आज पूरा अंचल प्रकाशित हो रहा है। शिक्षा क्रांति के लिए उन्होंने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। एक किराए के मकान में परिषद के तहत महाराणा प्रताप क्षत्रिय स्कूल शुरू किया गया था। वर्ष 1935 में इसे जूनियर हाईस्कूल की मान्यता मिली और 1936 में हाईस्कूल की भी पढाई शुरू हुई और उसका नाम श्महाराणा प्रताप हाई स्कूलश् हो गया। इसी बीच महंत दिग्विजयनाथ के प्रयास से गोरखपुर के सिविल लाइन्स में पांच एकड भूमि महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद को प्राप्त हो गयी और महाराणा प्रताप हाईस्कूल का केन्द्र सिविल लाइन्स हो गया तथा देश के आजाद होते समय यह विद्यालय महाराणा प्रताप इन्टरमीडिएट कालेज के रुप में प्रतिष्ठित हुआ।
वर्ष 1949-50 में इसी परिसर में महाराणा प्रताप डिग्री कालेज की स्थापना महंत जी की अगुवाई में हुई। शिक्षा को लेकर उनकी सोच दूरदर्शी और निजी हित से परे थी। यही वजह थी कि उन्होंने 1958 में अपनी संस्था महाराणा प्रताप डिग्री कालेज को गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु दान में दिया। बाद में परिषद की तरफ से उनकी स्मृति में दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय की स्थापना की।
महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् द्वारा वर्तमान में करीब चार दर्जन शिक्षण संस्थाएँ गोरखपुर क्षेत्र में संचालित हो रही हैं। इनमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों पिछले 28 अगस्त को लोकार्पित महायोगी गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय सबसे नवीन है।
महंत दिग्विजयनाथ ने राजनीति में भी गोरक्षपीठ की लोक कल्याण की परंपरा को ही ध्येय बनाया। 1937 में वह हिन्दू महासभा में शामिल होकर उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की विधिवत शुरुआत की। महंत जी ने 1944 में हिन्दू महासभा के प्रांतीय अधिवेशन का ऐतिहासिक आयोजन गोरखपुर में कराया। महासभा के राजनीतिज्ञ होने के कारण 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के मिथ्यारोप में उन्हें बंदी बना लिया गया लेकिन सरकार को 1949 में दस माह बाद ससम्मान बरी करना पड़ा। राष्ट्र के हित में उन्होंने 1956 में पृथक पंजाबी राज्य के लिए मास्टर तारा सिंह के आमरण अनशन को सूझबूझ से समाप्त कराया। वह 1961 में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ;हिन्दू राष्ट्रपति के रूप मेंद्ध निर्वाचित हुए। धर्म व सामाजिक एकता के क्षेत्र में भी उनका योगदान अतुलनीय है। 1939 में अखिल भारतीय अवधूत भेष बारहपंथ योगी महासभा की स्थापना कर पूरे देश के संत समाज को लोक कल्याण व राष्ट्रहित के लिए एकजुट करने के लिए भी उन्हें याद किया जाता है।
वर्ष 1960 में हरिद्वार में अखिल भारतीय षडदर्शन सभा सम्मेलन की अध्यक्षताए 1961 में दिल्ली में अखिल भारतीय हिन्दू सम्मेलन का आयोजन व 1965 में दिल्ली में अखिल विश्व हिन्दू सम्मेलन का आयोजन भी उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों में शामिल हैं। 1967 में गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए महंतश्री 1969 में ब्रह्मलीन हुए लेकिन उनके व्यक्तित्व व कृतित्व की अमरता अहर्निश बनी हुई है।
उदय त्यागी
वार्ता
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