Friday, Apr 19 2024 | Time 14:58 Hrs(IST)
image
राज्य » उत्तर प्रदेश


लोकरूचि रावण पूजा दो अंतिम इटावा

दशहरा पर जब रावण अपनी सेना के साथ युद्ध करने को निकलता है तब यहाँ उसकी धूप-कपूर से आरती होती है और जय-जयकार भी होती है। दशहरा के दिन शाम से ही राम और रावण के बीच युद्ध शुरू हो जाता है जो कि डोलों पर सवार होकर लड़ा जाता है। रात दस बजे के आसपास पंचक मुहूर्त में रावण के स्वरुप का वध होता हैं पुतला नीचे गिर जाता है । एक और खास बात यहाँ देखने को मिलती है जब लोग पुतले की बांस की खप्पची, कपड़े और उसके अंदर के अन्य सामान नोंच नोंच कर घर ले जाते है । उन लोगों का मानना है कि घर में इन लकड़ियों और सामान को रखने से भूत-प्रेत का प्रकोप नहीं होता।
विश्व धरोहर में शामिल जमीनी रामलीला के पात्रों से लेकर उनकी वेशभूषा तक सभी के लिए आकर्षक का केन्द्र होती है । भाव भंगमाओ के साथ प्रदर्शित होने वाली देश की एकमात्र अनूठी रामलीला में कलाकारों द्वारा पहने जाने वाले मुखौटे प्राचीन तथा देखने में अत्यंत आकर्षक प्रतीत होते हैं । इनमें रावण का मुखौटा सबसे बड़ा होता है तथा उसमें दस सिर जुड़े होते हैं। ये मुखौटे विभिन्न धातुओं के बने होते हैं तथा इन्हें लगा कर पात्र मैदान में युद्घ लीला का प्रदर्शन करते है । इनकी विशेष बात यह है कि इन्हें धातुओं से निर्मित किया जाता है तथा इनको प्राकृतिक रंगों से रंगा गया है। सैकड़ों वर्षों बाद भी इनकी चमक और इनका आकर्षण लोगों को आकर्षित करता है ।
रामलीला कमेटी के सदस्य अनुराग गुप्ता का कहना है कि विश्व धरोहर में शामिल जमीनी रामलीला के पात्रों से लेकर उनकी वेशभूषा तक सभी के लिए आकर्षक का केन्द्र होती है । भाव भंगमाओ के साथ प्रदर्शित होने वाली देश की एकमात्र अनूठी रामलीला में कलाकारों द्वारा पहने जाने वाले मुखौटे प्राचीन तथा देखने में अत्यंत आकर्षक प्रतीत होते हैं । इनमें रावण का मुखौटा सबसे बड़ा होता है तथा उसमें दस सिर जुड़े होते हैं। इनकी विशेष बात यह है कि इन्हें धातुओं से निर्मित किया जाता है तथा इनको प्राकृतिक रंगों से रंगा गया है। सैकड़ों वर्षों बाद भी इनकी चमक और इनका आकर्षण लोगों को आकर्षित करता है ।
रामलीला समिति के अध्यक्ष राजीव गुप्ता का कहना है कि यहां की रामलीला पहले सिर्फ दिन हुआ करती है लेकिन जैसे प्रकाश का इंतजाम बेहतर होता गया तो इसको रात को भी कराया जाने लगा है । यह हमारे के लिए सबसे बडी खुशी की बात यह है कि यहॉ की रामलीला को यूनेस्को की रिर्पाेट मे जगह मिली हुई है । उनके पूर्वज सौराष्ट्र के रहने वाले थे लेकिन आजादी से पहले आये संकट के चलते भाग कर यहा तक पहुंचे फिर यही के हो लिए उसके बाद रामलीला की शुरूआत हुई ।
सं प्रदीप
वार्ता
image