राज्य » उत्तर प्रदेशPosted at: Oct 15 2021 5:02PM कान्हा की नगरी में लंकेश की जय जयकारमथुरा 15 अक्टूबर (वार्ता) कान्हा की नगरी मथुरा में विजयदशमी पर्व पर लंकेश भक्त मण्डल ने रावण की विधि विधान से पूजा की गयी। यमुना तट पर पुल के पास स्थित शिव मन्दिर में शुक्रवार को वैदिक मंत्रों के मध्य भगवान शिव का पूजन और पंचामृत अभिषेक किया गया जिसके बाद रावण की पूजा की गई रावण द्वारा विरचित शिव ताण्डव स्त्रोत का पाठ किया गया। कार्यक्रम का समापन घंटे घड़ियाल एवं पांच शंखों की ध्वनि के मध्य दशानन की महाआरती से किया गया तो वातावरण भक्ति रस से ओतप्रोत हो गया। इस अवसर पर लंकेश की जय जयकार भी हुई। इससे पहले रावण की जयकार एवं पर्यावरण बचाओ, रावण का पुतला दहन बन्द करो जैसे नारों के मध्य रावण का रथ जब निकाला गया तो जनरलगंज रोड पर कौतूहलवश सड़क के किनारे लोगों के समूह इकट्ठा हो गए। कार्यक्रम के समापन पर लंकेश भक्त मण्डल के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमवीर सारस्वत एडवोकेट ने कहा कि जिस प्रकार सरकार पर्यावरण बचाने के लिए पराली जलाना रोकने के लिए हर साल अभियान चलाती है उसी प्रकार सरकार को पर्यावरण की सुरक्षा के लिए रावण का पुतला दहन करने की परंपरा को रोकने का अभियान भी चलाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वे शीध्र की सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर यह अनुरोध करेंगे कि जिस प्रकार लखीमपुर कांड को अदालत ने स्वतः संज्ञान में लिया है उसी प्रकार पर्यावरण बचाने के लिए वह रावण के पुतला दहन की परंपरा का भी स्वतः संज्ञान लेकर समुचित निर्णय ले जिससे आनेवाली पीढ़ी को प्रदूषित वातावरण के दुःप्रभाव से बचाया जा सके। लंकेश भक्त मण्डल के अध्यक्ष ने कहा कि भारतीय संस्कृति में किसी व्यक्ति के निधन के बाद उसका अंतिम संस्कार एक बार करने की परंपरा है। पुतला दहन के माध्यम से रावण का हर वर्ष अंतिम संस्कार करना हास्यास्पद और पर्यावरण विरोधी भी है। रावण ने सीताहरण लक्ष्मण द्वारा उसकी बहन का अपमान करने के प्रतिशोध के रूप में किया था तथा इसमें उसकी किसी प्रकार की दुर्भावना नही थी। वह जब भी सीता के पास गया तो अकेले नही गया तथा भारतीय संस्कृति के पोषक इस प्रकाण्ड विद्वान ने मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम से रामेश्वरम में हिंन्द महासागर पर पुल बनाने के पहले न केवल विधि विधान से पूजा कराई थी बल्कि श्रीराम को विजय का आशीर्वाद भी दिया था। सारस्वत ने कहा कि रावण मनसा वाचा कर्मणा से शिवभक्त था यही कारण है कि भगवान शिव ने वरदान में उसे न केवल सोने की लंका और अपार वैभव दिया था बल्कि उसके अमर होने का वरदान भी दिया था। ऐसे महान शिवभक्त का अपमान अनुचित है तथा शिवभक्तों को रावण के पुतला दहन की कुरीति का विरोध कर स्वच्छ पर्यावरण बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करनी चाहिए। सं प्रदीपवार्ता