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राष्ट्रीय-बुद्ध महाप्रसाद दो अंतिम गोरखपुर

सरकार का साथ पाकर काला नमक चावल के संवर्धन को लेकर सक्रिय संस्था पीआरडीएफ के वैज्ञानिक डॉ रामचेत चौधरी कहते हैं कि इससे अकेले सिद्धार्थनगर ही नहीं बल्कि कालानमक धान के लिए भौगौलिक सम्पदा जीआई घोषित समान जलवायु वाले जनपदों गोरखपुर,देवरिया,कुशीनगर,महराजगंज,सिद्धार्थनगर,संतकबीरनगर,बस्ती,बहराइच, बलरामपुर,गोंडा और श्रावस्ती के कालानमक की खेती करने वाले किसानों के लिए बड़ा बाजार उपलब्ध कराने का मंच भी बनेगा।
काला नमक धान की उपज को बढ़ानेए उसके प्रसंस्करणए पैकेजिंग और ब्रांडिंग के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे सिद्धार्थनगर का ओडीओपी घोषित कर रखा है। सरकार 12 करोड़ रुपये की लागत से सीएफसी ‘कॉमन फैसिलिटी सेंटर’ भी बना रही है। दूसरी ओर केंद्र सरकार ने कालानमक धान को सिद्धार्थनगर के साथ ही बस्तीए गोरखपुर, महराजगंज,सिद्धार्थनगर और संतकबीरनगर का एक जिला एक उत्पाद घोषित किया है। बुद्ध का महाप्रसाद प्रमुख बौद्ध देशों दक्षिण कोरिया, चीन,जापान,म्यांमार,कंबोडिया,मंगोलिया,वियतनाम,थाईलैंड,श्रीलंका, भूटान तक पहुंचाने में सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम तथा निर्यात प्रोत्साहन विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ नवनीत सहगल भी लगे हुए हैं। उनकी कोशिशों से कालानमक धान बिक्री के लिए आनलाइन बिक्री के लिए भी उपलब्ध है।
फिलहाल कालानमक चावल सिद्धार्थनगर और गोरखपुर जिले से क्रमश सिंगापुर और नेपाल एक्सपोर्ट किया जा रहा है। कालानमक धान की ब्रांडिंग के लिए सिद्धार्थनगर में काला नमक महोत्सव भी सीएम योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर आयोजित किया गया था। योगी सरकार की कोशिश अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान केन्द्र वाराणसी के सहयोग से सिद्धार्थनगर में अनुसंधान केन्द्र खोलने की है।
कृषि वैज्ञानिक डॉ रामचेत चौधरी के मुताबिक कालानमक धान सिद्धार्थनगर के बजहा गांव में गौतम बुद्ध के कालखण्ड में पैदा होता आ रहा। मान्यता है कि महात्मा बुद्ध ने हिरण्यवती नदी के तट पर इसी चावल की खीर ग्रहण कर उपवास तोड़ा था। खीर श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में दिया। भगवान बुद्ध ने किसानों को कालानमक धान का दाना किसानों को देकर इसकी खेती करने की सलाह दी। कालानमक चावल का जिक्र चीनी यात्री फाह्यान के यात्रा वृतांत में भी मिलता है। यह चावल सुगंध,स्वाद और सेहत से भरपूर है। सिद्धार्थनगर का बर्डपुर ब्लॉक इसका गढ़ है। एक समय तक इसकी खेती का रकबा 10 हजार हेक्टेयर से भी कम रह गया था लेकिन राज्य सरकार के प्रयासों से यह बढ़कर 50 हजार हेक्टेयर से अधिक हो गया है।
उदय प्रदीप
वार्ता
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