राज्य » उत्तर प्रदेशPosted at: Aug 10 2022 2:25PM पूर्णिमा के अगले दिन महोबा में मनाया जाता है रक्षा बंधनमहोबा 10 अगस्त (वार्ता) भाई.बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक पर्व रक्षाबंधन का पर्व देश.दुनिया मे सावन की पूर्णिमा पर सम्पन्न किया जाता है मगर उत्तर प्रदेश के महोबा में लीक से हटकर इसे अगले दिन मनाया जाता है। तब यहां बहनों द्वारा भाई की कलाई पर राखी बांधी जाती है साथ ही कजली का विसर्जन भी किया जाता है। समृद्ध संस्कृतिक विरासत और लोक परंपराओं के लिए चर्चित बुंदेलखंड की कजली का अपना विशेष महत्व है। दूसरे क्षेत्रों से अलग बुंदेलों ने यहां इसे आन.बान.शान से जोड़कर रखा गया है। तभी तो कजली से जुड़ी 841 वर्ष पुरानी उस घटना को वह विस्मृत नही कर पाते जिसमें महोबा को संकट से उबारने में रणबांकुरे आल्हा और ऊदल ने अप्रतिम युद्ध कौशल का प्रदर्शन कर इतिहास रचा था। जगनिक शोध संस्थान के महासचिव और रिटायर्ड प्रोफेसर डा0 वीरेंद्र निर्झर बताते है कि महाकाब्य ‘आल्हा’ में उल्लिखित यह विशिष्ट वाक्या सन 1182 का है जब चंदेल साम्राज्य की यश,कीर्ति और वैभव की चर्चा चहुंओर होने पर दिल्ली के नरेश पृथ्वी राज चौहान ने महोबा में आक्रमण कर दिया था। डा निर्झर ने बताया कि तब पृथ्वीराज के पुत्र करिया के नेतृत्व में आई सेना ने पूरे नगर की चारो ओर से घेराबंदी करके चंदेल नरेश परमर्दिदेव परमालद्ध को एक प्रस्ताव पहुंचाया जिसमे युद्ध टालने के लिए उनका अधिपत्य स्वीकार करने एवं पांच प्रमुख चीजों को सौंपे जाने की मांग की थी। इसमे लोहे को छुलाने पर स्वर्ण में परिवर्तित कर देने वाली ‘पारस पथरी’, नोलखा हार, बेंदुला घोड़ा और चन्देल राजकुमारी चंद्रावल का डोला शामिल था। ठीक रक्षाबंधन के दिन आन पड़े इस संकट ने परमाल के समक्ष भारी मुसीबत खड़ी कर दी थी। मामा माहिल के भड़कावे में आकर राज्य से निष्कासित कर दिए गए दोनो वीर योद्धा आल्हा.ऊदल तब कन्नौज में निर्वासित जीवन बिता रहे थे। यही वजह थी कि संकट के समय मे तब पूरे चन्देल राज्य में कजली विसर्जन की चल रही तैयारियां समेत सभी कार्यक्रम रोक दिए गए थे।सं प्रदीपजारी वार्ता