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लोकरूचि गीतानंद दधीच दो अंतिम मथुरा

स्वामी गीतानन्द महराज ने ऐसी तपस्या की कि उन्हें हर मानव में प्रभु के दर्शन तो हुए साथ ही उनकी पीड़ा भी उन्हें एक्सरे की तरह दिखाई पड़ी इसलिये उन्होंने उनकी पीड़ा को दूर करने के लिए कई प्रकल्प चलाए। शिक्षा व्यक्ति को संस्कारवान बनाने के साथ साथ अपने पैरों पर चलना सिखाती है। स्वामी गीतानन्द महराज ने इसे अच्छी तरह से समझा और जगह जगह संस्कृत पाठशालाओं की स्थापना की । उन्होंने रोगियों के कष्ट दूर करने के लिए अस्पताल खुलवाये। जहां देश में फैले उनके 10 आश्रमों में ये सुविधाएं मौजूद हैं वहीं वृन्दावन में आश्रम के निकट भूमि न मिलने के कारण ये दोनो प्रकल्प वृन्दावन में स्थापित नही हो सके।
वे बहुत बड़े दूरदृष्टा थे इसीलिए समाज में पनप रही विकृतियों कों उन्होंने समझा और दरकते परिवारों के विकल्प के रूप में वद्धाश्रम की स्थापना की।हरद्वार का वृद्धाश्रम तो एक माॅडल बन गया है । वहां पर उन्हें भोजन , निवास, चिकित्सा आदि की घर जैसी सुविधा उपलब्ध कराई गई है तथा अति सुन्दर तरीके से उनकी परवरिश हो रही है।
गो सेवा पर उनका बहुत अधिक जोर था ।वे कहा करते थे कि गो सेवा करने से 33 करोड़ देवताओं की आराधना करने का फल मिलता है इसलिए हर व्यक्ति कों अपनी समाथ्र्य के अनुसार गोसेवा करनी चाहिए।उन्होंने गोशालाओं की स्थापना की और हरद्वार की गोशाला तो आज उत्तराखण्ड की गोशालाओं का माॅडल बन गई है।
स्वामी गीतानन्द महराज ने घर बार छोड़कर भगवत आराधना में लगे साधुओं के बारे सोंचा तथा उनके लिए अपने आश्रमों के साथ अन्न क्षेत्र खुलवाया। इस अन्न क्षेत्र में साधुओं को एक वख्त का भोजन सम्मान के साथ उपलब्ध कराया जाता है। गीता आश्रम वृन्दावन का अन्न क्षेत्र तो सेवा की अपनी अलग ही पटकथा लिख रहा है। इस आश्रम के प्रभारी स्वामी गीतानन्द महराज के समर्पित शिष्य डा स्वामी अवशेषानन्द महराज ने तो कोरोनाकाल में भी यहां का अन्न क्षेत्र बन्द नही किया तथा कार्यकर्ताओं के अभाव में भी स्वयं अपने जीवन की परवाह न करके संतो को भोजन वितरित किया। स्वामी गीतानन्द महराज की 18वीं पुण्य तिथि पर न केवल देश के कोने कोने से आए संतो, महंन्तों, समाजसेवियों को उनके सेवा कार्य के लिए सम्मानित किया जायेगा बल्कि हजारों साधुओं को कम्बल, शाल, टोपा, ऊनी बनियाइन, श्वेटर जैसे जाड़े के वस्त्र भी भेंट किये जाएंगे। इस महान संत ने सेवा का जो आदर्श प्रस्तुत किया उसी का परिणाम है कि स्वामी गीतानन्द महराज कलियुग के दधीच बन गए।
सं प्रदीप
वार्ता
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