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मकर संक्रांति पर भरतकूप में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब

मकर संक्रांति पर भरतकूप में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब

चित्रकूट 15 जनवरी (वार्ता) यूं तो प्रयागराज को सभी तीर्थो का राजा कहा जाता है मगर पौराणिक नगरी चित्रकूट में एक एेसा कुआं है जिसमें सभी तीर्थो के पवित्र जल के विद्यमान होने की मान्यता मिली है।

मकर संक्रांति के पावन पर्व पर भरतकूप में करीब तीन लाख श्रद्धालुओं ने मंगलवार को स्नान कर खिचड़ी आदि का दान किया जो एक रिकार्ड है। सूर्योदय से पहले ही भरतकूप स्थित पवित्र कुयें पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जमा हो गई थी। जिला प्रशासन ने श्रद्धा के सैलाब की सुरक्षा के लिये व्यापक बंदोबस्त किये थे।

पौराणिक मान्यता के अनुसार जब भरत जी भगवान राम को वनवास काल के समय वापस लेने के लिए चित्रकूट आए थे तो वह अपने साथ समस्त तीर्थों का जल एक कलश में ले कर के आए थे । उनका सोचना था कि प्रभु श्रीराम का वही पर राज्याभिषेक करके उनको राजा की तरह वापस अयोध्या ले जाएंगे, लेकिन जब श्रीराम ने बिना वनवास काल के पूर्ण हुए वापस लौटने से मना कर दिया तब अत्रि मुनि ने उस पवित्र जल को चित्रकूट के पास एक कुएं में मंत्रोच्चारण के साथ डलवा दिया था। रामचरितमानस में भी तुलसीदास जी ने भी इसका उल्लेख किया है।

“अत्रि कहेउ तब भरत सन, सैल समीप सुकूप। राखिए तीरथ तोय तह, पावन अमल अनूप ।।

भरतकूप अब कहिहहि लोगा। अति पावन तीर्थ तीरथ जल जोगा।। ”

मान्यता है कि वह पवित्र जल आज भी इस कुएं में सुरक्षित है और तब से इस कुएं का नाम भरतकूप पड़ गया। लोक मान्यता के अनुसार इस कुएं का जल कभी खराब नहीं होता। जैसे गंगा जल को लोग अपने घर ले जाते हैं उसी प्रकार इस कुएं के जल को भी लोग भर-भर कर ले जाते हैं और वह कभी खराब नहीं होता।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस कुएं के समस्त कोनों का जल भी अलग-अलग पाया जाता है या यूं कहिए कि जितनी बार बाल्टी कुएं में जाती है उसमें जल का स्वाद विभिन्न तरह से पाया जाता है। इसके सत्य को परखने के लिए तत्कालीन जिलाधिकारी जगन्नाथ सिंह द्वारा इस कुएं के चारों कोनों से जल निकलवाकर लैब में टेस्ट भी करवाया गया था जिसमें रिपोर्ट के मुताबिक समस्त कोनों के जल को अलग-अलग जगह का होना बताया गया था।

चित्रकूट के संत राजकुमार दास जी कहते हैं कि इस कुएं में कभी कभी समुद्र की तरह लहरें भी उठती है। इस कुएं के जल के बारे बहुत सारी मान्यताएं एवं उपयोगिताएं भी हैं जब किसी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करनी होती है तब शास्त्रानुसार उस मूर्ति को स्नान कराने के लिए समस्त तीर्थों के जल की आवश्यकता होती है उस समय इस के जल को लोग ले जाते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस कुएं में समस्त तीर्थों का जल विद्यमान है।

सं प्रदीप

वार्ता

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