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संगम की रेती पर तंबुओं के शहर में आध्यात्म की बयार

संगम की रेती पर तंबुओं के शहर में आध्यात्म की बयार

प्रयागराज, 16 जनवरी (वार्ता) तीर्थराज प्रयाग में माघ मेले के दौरान  गंगा,यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम के विस्तीर्ण रेती पर बसे तंबुओं के  अस्थाई शहर मेले में आस्था और श्रद्धा के साथ आध्यात्म की बयार भी बह रही  है।


         मेले में विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और विविधताओं का संगम भी  देखने को मिल रहा है। देश के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु पतित पावनी संगम  में स्नान कर खुद को धन्य मानते हैं। प्राचीन परम्पराओं के साथ आधुनिकता  के रंगबिरंगे नजारे भी चारों ओर दिखायी पड रहे हैं। प्राचीन काल से संगम तट  पर जुटने वाले कुम्भ मेले की जीवंतता में दिनों दिन नवीनता ही दर्ज की गयी  है।

          रेती पर बसने वाले आस्था की नगरी में रात में टिमटिमाते हजारों  बल्वों के नजारे को देखकर ऐसा लगता है मानों करोडों सितारे ब्रह्मांड से  उतरकर धरती पर आ गए हों। इस सतरंगी मेले में एक तरफ जहां आध्यात्म की बयार  बह रही है वहीं दूसरी तरफ धनोपार्जन का भी काराेबार हो रहा है।

     मेला क्षेत्र के आसपास बच्चों के झूले, खिलौन और अन्य घरेलू सामानों की  बिक्री हो रही है। गंगा में स्नान कर वापस लौट रहे श्रद्धालु गृहस्थी के  सामान भी यहां से खरीद कर साथ ले जा रहे हैं।

     मेला प्रशासन के साफ सफाई के बावजूद पड़ी गंदगी को दरकिनार कर  श्रद्धालु संगम के पवित्र जल में आस्था की डुबकी लगाने के लिए उतावले  दिखलाई पड रहे हैं। कडाके की ठंड और शीतलहरी पर आस्था भारी पड रही है।

      मेले में दूसरे राज्यों से आई कुछ बच्चियां और महिलायें गोद में धोती  से दुध मुंहे बच्चों को बांधकर, थाली में संतोषी, दुर्गा और वैष्णवी की  फोटो लेकर घूम-घूम कर भीक्षाटन करती नजर आ रही हैं तो दूसरी तरफ गले में  सांप डाले और मृग छाल लपेटे भोले शंकर, काली और हनुमान का मुखौटा लगाकर  मेला क्षेत्र में चक्रमण करते नजर आते हैं।

         सन्यासी शरीर पर भस्म लपेटे, हाथ में त्रिशूल लिए भ्रमण करते दिखाई  पड रहे हैं। शोहरातगढ़ की 35 वर्षीय चंचल ने बताया कि उसके साथ मेले में  करीब 20 महिलायें और 10 बच्चे आये हैं। 48 दिनों तक चलने वाले इस मेले में  खाने को यहां से पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है।

श्रद्धालुओं से रूपया- पैसा अन्न और वस्त्र मिल जाता है। यहां  श्रद्धालुओं से हम इस दौरान इतना अन्न इक्ट्ठा कर लेते हैं जो कम से कम  अगले दो महीनों के लिए पर्याप्त होता है। एक अन्य सुनैना ने बताया हम सभी  को रोज कम से कम 500 रूपये श्रद्धालुओं से फुटकर और रूपये मिल जाते हैं।  जिस दिन स्नान होता है उस दिन 1000 रूपये से अधिक इकट्ठे हो जाते हैं।

         मकर संक्रांति हम लोगों ने 3200 हजार रूपये इकट्ठे किये थे। फुटकर  पैसे मेले के बाहर किसी भी दुकान पर देकर उनसे नोट ले लेते हैं। साथ में  छोटे बच्चों के खो जाने के बारे में उसने बताया कि मेला क्षेत्र के आसपास  मलीन क्षेत्र में झोपडी हमारा एक निर्धारित स्थान होता है। उस स्थान पर एक  महिला या साथ में आये एक दिव्यांग हमेशा रहते हैं। दिन भर बच्चे कहीं भी  मेला क्षेत्र में मांगते-खाते हैं, शाम होते होते सभी अपने स्थान पर पहुंच  जाते हैं।

      मेला क्षेत्र में प्राचीन और धार्मिक शाहर वाराणसी और इसके आस-पास के  क्षेत्रों से भिक्षा के लिए यहां पहुंचे जटा-जूट धारी रूस्तम ने बताया कि  हमारा कोई ठहराव नहीं है। जहां भी मेला लगा पहुंच गये। खाली समय किसी भी  धार्मिक नगरी में गंगा किनारे ठहर गये और फिर सुबह आगे चल दिये।

रूस्तम ने बताया कि जहां विश्राम के लिए ठहर गये वहीं अपना ठिकाना हो  गया। संगम तट पर हनुमान मंदिर के पास बैठे मूल रूप से मिर्जापुर क्षेत्र के  रहने वाले 55 वर्षीय मलीन दिव्यांग सुघरू ने बताया कि वह चलने फिरने में  आशक्त हैं। उसे यहां तक उसकी पत्नी रेल से ले आयी है।

     झूंसी स्टेशन पर उतरने के बाद वह अपने लकडी की बनी छोटी गाडी से घाट के  नजदीक पहुंचे। उसने बताया, मांगते खाते समय गुजार रहे हैं। एक महीने से  अधिक दिन तक चलने वाले मेले से अच्छी आय हो रही है।

       एक तरफ जहां श्रद्धालु आध्यात्म में लीन रहने और गृहस्थ अपनी भौतिक  सुख-सुविधा का त्याग कर आध्यात्म में लीन रहने, जमीन पर शयन कर अपना  परमार्थ बनाने में मग्न हैं वहीं दूसरी तरफ अन्य शिविरों में भौतिक सुख के  सारी सुविधा उपलब्ध है। एक तरफ जहां गंगा, यमुना और त्रिवेणी के तट पर  स्थित मेले में आध्यात्म की बयार बह रही है वहीं दूसरी तरफ मदिरा और अन्य  प्रकार की विलासिता पूर्ण जीवन का भी लोग आनंद उठा रहे हैं।

       मेले में दूरदराज से आकर संगम तट पर सांय-सांय करती तेज हवा और कडाके  की ठंड में पतित पावनी के जल में भोर से ही श्रद्धालु ,कल्पवासी,  तीर्थयात्री और सांधु-संतों ने ‘‘हर हर गंगे, ऊं नम: शिवाय, श्री राम जयराम  जय जय राम” का जाप करते हुए स्नान कर रहे हैं। मेला क्षेत्र में आस्था,  जप, तप, कीर्तन, हवन तम्बुओं के अन्दर से आध्यात्म की बयार बह रही है वहीं  दूसरी ओर एक वर्ग ऐसा भी है जिसका पूजा-पाठ, स्नान-ध्यान और आध्यात्म से  कुछ लेना देना नहीं है।

  चारों ओर धार्मिक अनुष्ठानों के मंत्रोच्चार और हवन में प्रवाहित की  जा रही सामग्रियों की भीनी -भीनी खुशबू मेला क्षेत्र के वातावरण को  सुगन्धित और पवित्र कर रही है। वहीं मेला क्षेत्र में सक्रिय सुरक्षा बलों  की तैनाती के बावजूद किसी टेंट के भीतर से बीडी ,सिगरेट और मदिरा की गंध  वातावरण को प्रदूषित भी कर रही है। सुरक्षाकर्मियों का कहना है कि मीलों  फैले हजारों की संख्या में तंबुओं के अन्दर घुसकर निगरानी करना संभव नहीं  है।

         उनके तंबुओं में सिगरेट,शराब की गर्मी धधक रही है। मेले को पिकनिक  क्षेत्र मानने वाले लोग सुख-सुविधाओं से लैश होकर यहां पहुंचे हैं। इनके  टेंट में टी वी, मोबाइल, लैपटाप आदि सभी प्रकार की सुख-सुविधा की चीजें  उपलब्ध हैं। देर रात तक लैपटाप, मोबाइल का आनंद और दिन चढे तक सोना उनकी  दिनचर्या में शामिल है।

         नाम न छापने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि यहां आंख  छिपाकर सब कुछ होता है जो गलत है। एक धार्मिक स्थल पर जहां लाखों लोग केवल  पुण्य का लाभ लेने के लिए कडाके की ठंड में स्नान कर रहे हैं, भूल चूक हुए  कर्मो का प्रायश्चित कर मोक्ष पाने की कामना से पहुंच रहे हैं उस पावन तट  पर कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहिए जिससे किसी प्रकार का लज्जापन महसूस हो।

         माघ मेला प्रभारी विजय किरण आनंद ने बताया कि कुम्भ मेला मनोरंजन,  पिकनिक पार्टी या घूमने फिरने के लिए नहीं बल्कि तपस्या, आस्था और ईश्वर  में आस्था से जुडा पवित्र स्थान है। यहां धार्मिक समागम होता रहता है। रात  में रात्र जैसा कुछ दर्शता ही नहीं। यहां तो आध्यात्म की ऊर्जा सतत बहती  रहती है। उन्होंने बताया कि लोगों को श्रद्धा के इस तपोभूमि की गंभीरता और  गरिमा को अच्छी तरह समझना चाहिए।

         उन्होंने बताया कि 3200 हैक्टेअर क्षेत्रफल में मेला फैला है। मेला  क्षेत्र में प्रशासन ने प्लास्टिक की थैली, थर्माकोल के पत्तल, गुटका आदि  पर प्रतिबन्ध लगाया है। यदि कोई भी इसका उपयोग करता पकडा गया तो उसके खिलाफ  कडी कार्रवाई की जायेगी। बावजूद, इसके अगर कोई कुछ गलत कर रहा है तो उसका  परिणाम उसे खुद ही भुगतना पडेगा क्योकि जहां लाखों कल्पवास करने वाले  श्रद्धालु एक समय खाना खाकर तपस्या कर रहे हैं, आध्यात्म की गंगा बह रही हो  वहां गलत करने वाले कैसे बच सकते है।

         उन्होंने कहा जब तक श्रद्धालुओं में आस्था प्रबल है गंगा न कभी  मैली थी ,न है और न मैली होगी। गंगा के प्रति लोगों की आस्था ही है जो  देश-विदेश से लोग खिचे चले आते हैं और आस्था की डुबकी लगाते हैं।

दिनेश प्रदीप

रवीन्द्र

वार्ता

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