कुंभनगर 31 जनवरी (वार्ता) सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर उच्चतम न्यायालय के फैसले को करोड़ों हिन्दुओं की अास्था पर कुठाराघात बताते हुये धर्म संसद ने गुरूवार को प्रस्ताव पारित किया कि सबरीमाला की परंपरा की रक्षा के लिये हिन्दू समाज एकजुट होकर इस प्रकरण को अयोध्या में राम मंदिर आन्दोलन की तरह जोर शोर से उठायेगा।
जगद्गुरू स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की अध्यक्षता में गुरूवार को शुरू हुई विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की धर्म संसद को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि सबरीमाला प्रकरण की आड़ में एक षडयंत्र के तहत हिन्दू समाज को बांटा जा रहा है। सबरीमाला सिर्फ मलयालम भाषियों के भगवान नहीं हैं। यह विडंबना है कि उच्चतम न्यायालय ने देश के करोड़ों हिंदुओं की आस्था का ध्यान नहीं रखा।
केरल की वामपंथी सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुये उन्होने कहा “ वोटो की राजनीति करने वाले समझ लें कि आंबेडकर के अनुयायी हम भी हैं। महाराष्ट्र का आंदोलन गवाह है। देश में करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं के साथ खेला जा रहा है। कुछ राजनैतिक दल वोट की सियासत की वजह से हिंदुओं के साथ कपट युद्ध कर रहे हैं। हमें हिंदुओ को जागरूक करना होगा। ”
श्री भागवत ने कहा “ न्यायालय ने कहा कि महिला अगर प्रवेश चाहती है तो करने देना चाहिए, अगर किसी को रोका जाता है तो उसको सुरक्षा देकर जहां से दर्शन करते हैं वहां ले जाना चाहिए, लेकिन कोई जाना ही नहीं चाह रहा है। इसी कारण श्रीलंका से लाकर लोगों को पीछे के दरवाजे से घुसाया जा रहा है। ”
उन्होने कहा कि सबरीमाला मुद्दे पर फैसला देते हुए न्यायालय ने करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं का विचार नहीं किया। भगवान अयप्पा के चार मंदिर हैं, सिर्फ एक ही ब्रह्मचर्य रूप में है। महिला का प्रवेश न करना वहां की परंपरा है।
धर्म संसद के दूसरे और अंतिम दिन शुक्रवार को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के साथ गौ रक्षा, गंगा समेत अन्य मुद्दों पर विस्तार से चर्चा होगी।
इससे पहले धर्मसंसद में सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध की परंपरा की रक्षा करने पर भी सहमति बनी। इसमें तय किया गया कि सबरीमाला का आंदोलन भी अयोध्या आंदोलन के समकक्ष होगा। इसके साथ ही साथ आंदोलनकारियों पर केरल सरकार की कार्यवाही की निंदा की गई।
सर संघचालक ने कहा कि सबरीमाला हिन्दू समाज का संघर्ष है। वामपंथी सरकार न्यायपालिका के आदेशों के परे जा रही है। वे छलपूर्वक कुछ गैर श्रद्धालुओं को मंदिर के अंदर ले गए हैं जबकि जो अयप्पा भक्त हैं उनका दमन किया जा रहा है जिसमें हिंदू समाज उद्वेलित है ।
उन्होने कहा “ हम समाज के इस आंदोलन का समर्थन करते हैं न्यायपालिका में जाने वाले याचिकाकर्ता भी भक्त नहीं थे। आज हिंदू समाज के विघटन के कई प्रयास चल रहे हैं कई प्रकार के संघर्षों का षड्यंत्र किया जा रहा है। जातिगत विद्वेष निर्माण किए जा रहे हैं इनके संसाधन के लिए सामाजिक समरसता, जातिगत भेदभाव तथा कुटुंब प्रबोधन के कदम उठाने पड़ेंगे। धर्म जागरण के माध्यम से जो हिंदू बन्धु हमसे बिछड़ गए हैं उनको वापस लाना और वापस ना जाने पाए इसके लिए प्रयास किए जाने की आवश्यकता है । ”
विहिप के केंद्रीय मंत्री मिलिंद पांडे ने प्रस्तावना रखते हुए कहा कि हिंदू समाज स्वयं जागरूक समाज है जिसने समयानुसार अपने दोषों का निर्मूलन स्वयं किया है इसके बाद भी उस पर दोष थोपने का प्रयास किया जाता है। नम्बूदरीपाद ने लिखा था कि अगर केरल में साम्यवाद् बढ़ना है तो भगवान अयप्पा के प्रति श्रध्दा समाप्त करनी पड़ेगी । 1950 में अयप्पा मंदिर का विग्रह तोड़ा गया तथा आग लगाई गई। अयप्पा भक्तों की आस्था पर चोट पहुंचाने के लिए ऐसा कृत्य किया गया।
श्री पांडे ने कहा कि हिंदू समाज न्यायालय के निर्णय के पश्चात वामपंथी सरकार का जो व्यवहार रहा है, उसके विरोध में भगवान अयप्पा के पुरूष भक्तों तथा मां बहने आज तक संघर्ष कर रही हैं लेकिन वामपंथी सरकार दमन चक्र चला रही है। इस संघर्ष में पांच भक्तों को जान गंवानी पड़ी। जाति एवं भाषा के आधार पर महाराष्ट्र,असम और गुजरात में हिंदू समाज को आपस में लड़ाने का षड्यंत्र किया गया ।
स्वामी रामदेव ने कहा कि देश में समान नागरिक कानून तथा सामान जनसंख्या का कानून लाना चाहिए तथा गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि सरकार को शीघ्र ही गौ सेवा आयोग बनाना चाहिए। मंच पर विशेष रूप से जगद्गुरु रामानंदाचार्य नरेंद्र महाराज जगतगुरु रामानंद हंसदेवाचार्य महाराज निर्मल पीठाधीश्वर,महंत ज्ञान देव महाराज ,स्वामी जितेंद्र नाथ महाराज ,सतपाल महाराज, स्वामी योगानंद महाराज, स्वामी विवेकानंद सरस्वती महाराज आनन्द अखाड़ा के आचार्य बालकानंद महाराज निरंजनी अखाड़ा के स्वामी पूर्ण आनंद गिरि महाराज, स्वामी चिदानंद महाराज परमानंद महाराज, स्वामी अयप्पा दास महाराज ,जितेंद्र नाथ सरस्वती रामेश्वर दास वैष्णव महंत नृत्य गोपाल दास , जयराम दास सहित महाराज समेत 200 मंच पर एवं 3000 से अधिक संघ सभागार में उपस्थित रहे।
केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल के वरिष्ठ सदस्य एवं आचार्य सभा के महामंत्री स्वामी परमानंद महाराज ने शबरीमाला में परंपरा और आस्था की रक्षा करने का संघर्ष अयोध्या आंदोलन के समकक्ष प्रस्ताव पढ़ा तथा स्वामी अयप्पा ने प्रस्ताव का अनुमोदन किया।
दूसरे प्रस्ताव हिंदू समाज के विखंटन के षड्यंत्र का वाचन पूज्य स्वामी गोविंददेव गिरी महाराज ने किया तथा अनुमोदन संत समिति के महामंत्री पूज्य स्वामी जितेंद्रनंद महाराज ने किया।
सेक्टर 14 में स्थित विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के शिविर में आयोजित धर्म संसद के पहले दिन की समाप्ति के बाद संतो की तरफ से स्वामी गोविंद देव गिरि जी औा विहिप की तरफ से स्वामी परमानंद ने संंयुक्त रूप से संवाददाताओं से बातचीत की।
धर्म संसद में स्वामी परमानंद ने सबरीमाला में परंपरा और आस्था की रक्षा करने को लेकर जारी संघर्ष को अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के समकक्ष बताते हुए कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देखने में आया है कि हिंदू परंपराओं के प्रति अविश्वास निर्माण का कुप्रयास किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि सबरीमाला मंदिर इसका ताजा उदाहरण है जिसमें कभी पर्यावरण के नाम पर तो कभी आधुनिकता के नाम पर इस प्रकार के विवाद जानबूझकर खड़े किए जाते हैं। वर्ष 1950 में सबरीमाला मंदिर में ईसाइयों द्वारा आग लगाई गई और 1982 में मंदिर की जमीन पर क्रास गाड़ा गया। अभी हजारों मुस्लिम महिलाएं सबरीमाला के विरुद्ध महिला दीवार बनाती हैं। ये सब उदाहरण इस षड्यंत्र को दर्शाते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत का संत समाज अयप्पा भक्तों विशेषकर हिंदू महिलाओं, एनएसएस, केपीएमएस, एसएनडीपी, आर्य समाज, पीपुल आफ धर्मा और अन्य कई हिंदू संगठनों के इस पावन संघर्ष का अभिनंदन करता है।
स्वामी गोविंद देव गिरि जी महाराज ने कहा कि हिंदू समाज के विघटन के षड्यंत्र के तहत कभी भीमा कोरेगांव में दलित मराठा विवाद पैदा किया जाता है तो कभी पत्थलगढ़ी (झारखंड) में चर्च और माओवादी वहां के जनजाति समाज को शेष हिंदू समाज से अलग थलग करने का षड्यंत्र रचते हैं।
दिनेश प्रदीप
वार्ता