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निर्मल गंगा, भूजल संरक्षण की चुनौतियां बरकरार

निर्मल गंगा, भूजल संरक्षण की चुनौतियां बरकरार

नयी दिल्ली, 23 दिसम्बर (वार्ता) नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत भले ही इस साल घाटों की सफाई, तटों का वनीकरण, टास्क फोर्स का गठन जैसे कई महत्वपूर्ण काम शुरू हुये लेकिन नतीजा हासिल करने के लिये कई चुनौतियां अभी बरकरार हैं। स्वच्छ गंगा के लिए सरकार ने नमामि गंगे अभियान के तहत बजट में बीस हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया था जिसमें सफाई के साथ ही तटों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना शामिल है। स्वच्छ गंगा के लिए गंगोत्री से गंगा सागर तक इसमें गिरने वाले नालों तथा प्रदूषक कल कारखानों को नियंत्रित करना है। गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती निर्मल गंगा परियोजनाओं पर काम की इस साल पहल कर चुकी हैं। मंत्रिमंडल ने जनवरी में ही ‘नमामि गंगे’ के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) संबंधी प्रस्तावों को मंजूरी दे दी थी जिससे गंगा सफाई परियोनाओं में निजी क्षेत्र को जोड़ा जा सकेगा। गंगा सफाई की मौजूदा स्थिति बहुत खराब है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार तथा पश्चिम बंगाल में जलमल शोधन संयंत्र की जांच की थी जिसमें पाया गया कि इन राज्यों में 30 प्रतिशत संयंत्र काम ही नहीं कर रहे हैं और जो काम कर रहे हैं उनमें 94 प्रतिशत मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं। पीपीपी मोड पर इन संयंत्रों की स्थिति सुधरने और परियोजनाओं का काम फास्ट ट्रैक मोड पर शुरू होने की उम्मीद है। सरकार की शोधित जल के इस्तेमाल के लिए बाज़ार विकसित करने की तैयारी है और इसके लिए उसने इस साल दिल्ली में एक राष्ट्रीय सम्मेलन का भी आयोजन किया। मंत्रालय ने निर्मल गंगा अभियान में गंगा तटों पर बसे गांवों के लोगों को भी शामिल करने की पहल की और इसके लिए इन गांवों के 1,600 से अधिक ग्राम प्रधानों की इस साल यहां एक बैठक बुलाई गई। उन्हें स्‍वच्‍छ गंगा-ग्रामीण सहभागिता कार्यक्रम के तहत अभियान में शामिल किया गया। कार्यक्रम में गंगा तटों पर बसे सभी राज्यों की सरकारों ने भागीदारी की थी।


                       गंगा सफाई के लिए सेना भी सामने आ गयी है और उसके सहयोग से गंगा वाहिनी का गठन किया गया है। इसकी पहली कंपनी की उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर में तैनाती की जा चुकी है। कानपुर, वाराणसी और इलाहाबाद में टुकड़ियां तैनात की जा रही है। वाहिनी के जवान गंगा तट पर तैनात रहेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि औद्योगिक इकाइयां एवं स्थानीय नागरिक गंगा को प्रदूषित नहीं करें। नमामि गंगे के तहत इस साल कानपुर में 560 करोड़ रुपये की परि‍योजनाओं की शुरुआत हुई जिनमें 63 करोड़ रुपये की सीसामऊ नाले के दि‍शा परि‍वर्तन, बि‍ठूर में नदी तट के वि‍कास के लि‍ए 100 करोड़ रुपये और 14 घाटों और पांच शवदाह गृहों का निर्माण शामि‍ल है। वाराणसी में 229 करोड़ रुपये की परि‍योजनाएं शुरू हुईं जिनमें 150 करोड़ रुपये की रमना डंपिंग परियोजना, 16 करोड़ रुपये की अस्‍सी नदी परियोजना और 63 करोड़ रुपये की 84 घाटों को ठीक करने की योजना शामिल हैं। गंगा तट पर वृक्षारोपण भी योजना में शामिल है और यह कार्य पांच वर्ष में पूरा होना है। इस पर 2294 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इनमें तटों का वानिकीकरण, सौंदर्यीकरण और उन्हें पर्यटक स्थलों के रूप में विकसित करना शामिल है। यह काम समयबद्ध तरीके से पूरा हो इसके लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ समझौता किया गया है। मंत्रालय की वानिकीकरण कार्यक्रम की विस्‍तृत प्रोजेक्‍ट रिपोर्ट जारी की जा चुकी है। यह रिपोर्ट वन अनुसंधान संस्‍थान देहरादून ने तैयार की है।


                                 मंत्रालय के समक्ष भूजल के गिरते स्तर की भी बड़ी चुनौती है। इस संबंध में एक अध्ययन कराया गया है जिसमें भूजल स्तर को संरक्षित करने के तत्काल उपाय करने की सलाह दी गयी है। इस चुनौती से निपटने के लिए इस साल के बजट को 7,431 करोड़ रुपये से बढाकर 12, 517 करोड़ रुपये किया गया। सुश्री भारती ने भूजल के गिरते स्तर पर गहरी चिंता जतायी है और इसके लिए जरूरी कदम उठाने के वास्ते भू-जल मंथन-2 कार्यक्रम का इस साल आयोजन किया। भूजल मंथन-1 का आयोजन पिछले साल किया गया था। इस साल हुए मंथन में भू-जल प्रबंधन पर आयोजित राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी में देशभर में भू-जल के गिरते हुए स्‍तर पर चिंता व्‍यक्‍त की गयी और बेहतर जल प्रबंधन करने का आह्वान किया गया। इसके लिए इजरायल की जल तकनीक का इस्तेमाल करने की भी सलाह दी गयी। इजरायल ने कम जल के ज्यादा इस्तेमाल की तकनीक विकसित की है। जल संसाधान मंत्रालय नदियों को जोड़ने के काम पर भी विशेष काम कर रहा है। देश में पानी की मात्रा बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने के लिए यह महत्वपूर्ण है। इससे पानी की कमी, सूखे की बहुलता और वर्षा पर निर्भर कृषि क्षेत्रों में पानी पहुंचाने में मदद मिलेगी। इस संबंध में गठित समिति की नौ बैठकें हो चुकी हैं।


                     

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