इटावा, 24 जनवरी (वार्ता) खूंखार डाकूओं की शरणस्थली के तौर पर दशकों तक कुख्यात रही चंबल घाटी की शक्ल ओ सूरत अब बदली बदली सी नजर आती है। प्राकृतिक नजारों से भरपूर चंबल को अब पर्यटकों के लिए गुलजार करने में पर्यावरण प्रेमी पूरी शिद्दत से जुटे हैं । पर्यटकों को चंबल घाटी की नैसर्गिक खूबसूरती का अहसास कराने के लिये पर्यावरण संस्था सोसाइटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने उत्तर प्रदेश के इटावा में तीन मोटरवोट को चंबल नदी में उतारा है। पूजा पाठ के बाद तीनों मोटरवोट को गैर सरकारी संस्था के महासचिव डाक्टर राजीव चौहान ने अपनी देख-रेख में उतारा गया। तीनों मोटर बोट सहसो, भरेह और पंचनदा नदी में रहेगी । इन मोटर वोट के जरिए चंबल को देखने आने वाले सैलानी यहां का मनोरम दृश्य को देखने में कामयाब हो सकेंगे । चंबल नदी में डाल्फिन मगर घड़ियाल कई प्रजाति के दुर्लभ कछुए के अलावा सर्दियों के मौसम में सैकड़ों की तादाद में प्रवासी पक्षियों की आवाजाही से चंबल अरसे से गुलजार होता आया है । चंबल की यही खूबसूरती पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती आई है और इसी वजह से इस दुर्गम इलाके में यदाकदा सैलानी यहां आते-जाते रहते हैं हालांकि खूंखार डाकुओं की मौजूदगी मात्र ने चंबल की खूबसूरती पर दाग लगा रखा है। लोग इस खूबसूरती का आनंद अपने ढंग से नहीं उठा पाते हैं क्योंकि उनको आने में यहां पर कठिनाई होती हैं मगर अब डाकुओं का करीब-करीब खत्म होने के बाद चंबल को निहारने के लिए कई पर्यावरण प्रेमी,प्रकृति प्रेमी चंबल में पहुंचने लगे हैं।
मध्य प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक प्रदीप रूकवाल पिछले दिनों अपने परिवार के साथ यहां पहुंचे । चंबल को जी भर कर निहारने के बाद उन्होंने कहा कि डाल्फिन, घड़ियाल, मगर और कछुओं के अलावा पक्षियों को देखकर आनंद की ऐसी अनुभूति का एहसास किया कि मानो चंबल देश का सबसे बेहतरीन और खूबसूरत स्थान हो । सोसाइटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के सचिव डाक्टर राजीव चौहान कहते हैं कि उनका प्रयास भी कुछ ऐसा ही है तीन मोटरवोट उतार दी हैं । उसके पीछे एकमात्र यही मंशा और उद्देश्य चंबल में आने वाले सैलानियों को मोटर बोट के जरिए इलाके में घुमाया जाएगा और चंबल की खूबसूरती का दीदार करीब से कराया जाएगा । चंबल घाटी का नाम आते ही शरीर मे सिहरन का एहसास खुद वा खुद हो जाता है क्योकि अधिकाधिक लोगो का मानते है कि खौफ और दहशत का दूसरा नाम चंबल घाटी है जबकि हकीकत मे ऐसा नही है । चंबल मे नीली नीली पानी वाली कल कल बहती बेहद खूबसूरत चंबल नदी तो है ही, मिटटी के ऐसे ऐसे पहाड है जिनकी कोई दूसरी बानगी शायद ही देश भर मे कही ओर देखने को मिले । डा चौहान ने कहा कि इतना ही नही सैकडो की तादाद मे दुर्लभ जलचरों ने चंबल नदी की गोद में अपना आशियाना बना रखा है। जिसमे घडियाल, मगरमच्छ, कछुए,डाल्फिन के अलावा करीब ढाई से अधिक प्रजाति के पक्षी चंबल की खूबसूरती को चार चांद लगाते है। चंबल घाटी की खूबसूरती अपने आप मे बिल्कुल ही जुदा जुदा सी बनी हुई है हालांकि चंबल की खूबसूरती को कश्मीर और उत्तराखंड की घाटियों जैसी लोकप्रियता अब तक हासिल नही हो सकी है जिसकी वाकई मे वो हकदार है ।
पीले फूलों के लिए ख्याति प्राप्त रही यह वादी उत्तराखंड की पर्वतीय वादियों से कहीं कमतर नहीं है । अंतर सिर्फ इतना है कि वहां पत्थरों के पहाड़ हैं तो यहां मिट्टी के पहाड़ है । बीहड़ की ऐसी बलखाती वादियां समूची पृथ्वी पर अन्यत्र कहीं नहीं देखी जा सकतीं हैं । प्रकृति की इस अद्भुत घाटी को दुनिया भर के लोग सिर्फ और सिर्फ डकैतों की वजह से ही जानती है । यही कारण रहा कि चंबल की इन वादियों के प्रति बालीबुड भी मुंबई की रंगीनियों से हटकर इन वादियों की ओर आकर्षित हुए और डकैत, मुझे जीने दो, चंबल की कसम , डाकू पुतलीबाई जैसी फिल्मों ने दुनिया भर के दर्शकों का मनोरंजन किया। इन डकैतों की गतिविधियों में प्रकृति द्वारा प्रदत्त की गई यह वादियां इस कदर कुख्यात हो गईं कि क्षेत्रीय लोग भी इसमें जाने का साहस नहीं जुटा सकते थे जबकि वास्तविकता यह है कि पूरी तरह से प्रदूषण रहित चंबल की नदी के पानी को गंगाजल से भी अधिक शुद्ध और स्वच्छ माना जाता है। चंबल की इन वादियों में अनगिनत ऐसी औषधियां भी समाहित है जो जीवनदान दे सकतीं हैं। डा चौहान को भरोसा है कि उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश और राजस्थान सीमा पर फैली चंबल घाटी में पर्यटन की अपार संभावनाओं को जल्द ही साकार किया जा सकेगा जिससे न/न सिर्फ इन वादियों के इर्द-गिर्द रहने वाले युवकों को रोजगार के अवसर मिलेंगे बल्कि वादियों की दस्यु समस्या को भी सदा-सदा के लिए दूर किया जा सकेगा। चंबल की यह घाटी समृद्धि होकर विश्व पर्यटन के मानचित्र पर अपना नाम दर्ज कर सकेगी । सं प्रदीप वार्ता