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एनपीएल के वैज्ञानिकों ने बनाया पानी से बिजली पैदा करने वाला सेल

एनपीएल के वैज्ञानिकों ने बनाया पानी से बिजली पैदा करने वाला सेल

नयी दिल्ली 16 दिसंबर (वार्ता) राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला (एनपीएल) के वैज्ञानिकों ने विद्युत उत्पादन करने वाला एक ऐसा सेल बनाया है जो पानी से चलता है। जब तक इसे पानी की आपूर्ति होती रहती है बिजली बनती रहती है। डॉ. आर.के. कोटनाला तथा डॉ. ज्योति शाह ने मिलकर यह सेल बनाया है जिसे उन्होंने ‘हाइड्रोइलेक्ट्रिक सेल’ नाम दिया है। दुनिया में पहली बार किसी ने पानी से सीधे बिजली बनाने की तकनीक विकसित की है। उनके इस आविष्कार को भारतीय पेटेंट मिल चुका है तथा अमेरिकी पेटेंट प्रक्रिया अंतिम चरण में है। वैसे तो दुनिया में पिछले कई वर्षों से पानी से ऊर्जा पैदा करने पर काम चल रहा है, लेकिन जहाँ भी लोगों को सफलता मिली है वह पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विघटित करने में मिली है। इसके बाद हाइड्रोजन के प्रज्वलन से ऊर्जा पैदा की जाती रही है। किसी पदार्थ के अतिसूक्ष्म छिद्रों (नैनो पोर्स) का इस्तेमाल करके पानी से सीधे बिजली बनायी गयी हो, ऐसा पहली बार हुआ है। दोनों वैज्ञानिकों ने ‘यूनीवार्ता’ के साथ साक्षात्कार में बताया कि उनकी इस सफलता के पीछे एक विशेष पदार्थ मैग्निशियम फैराइट का इस्तेमाल है जिसकी आॅक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता काफी ज्यादा होती है। इस गुण के कारण उसके अतिसूक्ष्म छिद्रों से होकर गुजरते समय पानी हाइड्रोजन (प्लस) आयन तथा हाइड्रॉक्साइड (माइनस) आयन में टूट जाता है। सेल के एनॉड के रूप में जस्ते की प्लेट का इस्तेमाल किया गया है। उसकी दोनों सतहों पर मैग्निशियम फैराइट की परत लगायी गयी है। इस परत पर इलेक्ट्रोड के रूप में चाँदी की लाइनिंग बनायी गयी है। जब इस सेल पर पानी डाला जाता है तो पानी के एक अणु के विघटन से उत्पन्न हाइड्रोजन आयन पानी के दूसरे अणु के साथ मिलकर हाइड्रोनियम आयन बनाता है जबकि हाइड्रॉक्साइड आयन जस्ते के साथ मिलकर जिंक हाइड्रॉक्साड बनाता है और दो इलेक्ट्रॉनों का त्याग करता है। इन्हीं इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह से विद्युत धारा पैदा होती है।


डॉ. कोटनाला ने बताया कि यह सेल सोलर पैनल की तरह सूरज की रौशनी पर निर्भर नहीं है और न/न ही इसमें पानी के अणुओं को विघटित करने के लिए पराबैगनी किरणों की बैछार करने की जरूरत होती है। बिजली आपूर्ति बनाये रखने के लिए बस इतना सुनिश्चित करना होता है कि इसे पानी की आपूर्ति मिलती रहे। उन्होंने बताया कि प्रयोगशाला के अंदर इस तरह के चार सेलों से बनी बैटरी से उन्होंने लगातार एक सप्ताह तक प्लास्टिक के छोटे पंखे, एलईडी टैबल लैंप आदि जलाकर देखा है। प्रयोगशाला में 110 मिलि एम्पीयर तथा 0.90 वोल्ट वाले दो सेंटीमीटर व्यास के सेल की लगात 50 रुपये है। डॉ. कोटनाला का कहना है कि यदि बड़े पैमाने पर औद्योगिक उत्पादन किया जायेगा तो इसकी कीमत बेहद कम रह जायेगी। इससे उत्पन्न ऊर्जा फ्यूअल सेल से उत्पन्न ऊर्जा के मुकाबले 10 गुणा सस्ता होगी। सौर ऊर्जा के मुकाबले भी इसकी लागत कम होगी। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में जरूरत के हिसाब से इसे और बेहतर बनाने का विकल्प होगा, लेकिन अभी उनका फोकस सिर्फ तकनीक पर है और उन्हें खुशी है कि पहली बार उन्होंने पानी से सीधे बिजली बनाने का काम कर दिखाया है। उन्होंने कहा कि एक खासियत यह भी है कि पानी के विघटन के दौरान बना हाइड्रोजन आयन दो विमुक्त इलेक्ट्रॉनों के साथ मिलकर हाइड्रोजन गैस बनाता है। साथ ही जिंक हाइड्रॉक्साइड को ऊष्मा की मौजूदगी में जिंक ऑक्साइड और हाइड्रोजन में विघटित किया जा सकता है। इस प्रकार पूरी अभिक्रिया के दौरान दो अतिरिक्त उत्पाद जिंक ऑक्साइड और हाइड्रोजन गैस के रूप में मिलते हैं। हाइड्रोजन गैस का इस्तेमाल जहाँ ईंधन के रूप में किया जा सकता है, वहीं जिंक ऑक्साइट एक महँगा यौगिक है जिसका इस्तेमाल सेंसर तथा सेमीकंडक्टर बनाने के अलावा कॉस्मेटिक उद्योग में भी किया जाता है। कई अन्य बड़े आविष्कारों की तरह हाइड्रोइलेक्ट्रिक सेल के आविष्कार की कहानी भी अपने-आप में रोचक है। दरअसल डॉ. कोटनाला और उनकी छात्रा डॉ. ज्योति वायु की आर्द्रता मापने के लिए एक विश्वसनीय सेंसर पर काम कर रहे थे। उन्होंने इसके लिए मैग्निशियम फैराइट को चुना। लेकिन, प्रयोग के दौरान उन्हें पता चला कि हवा में मौजूद पानी की बूँदों के संपर्क में आने पर यह बिजली भी पैदा करता है। हालाँकि, करेंट की मात्रा नैनो एम्पियर में थी। वर्ष 2012 में उनका सेंसर तैयार हो गया और इसके लिए अमेरिकी पेटेंट भी मिल गया। इसके बाद उन्होंने हाइड्रोइलेक्ट्रिक सेल पर काम करना शुरू किया। उन्होंने बताया कि 2014 में उन्हें आरंभिक सफलता मिली और 2015 में वे इस सेल से एलईडी बल्ब जलाने में कामयाब रहे। उन्होंने सेल में थोड़ा बदलाव किया और मैग्निशियम फैराइट के साथ लिथियम मिलाकर उसकी परत बनायी। इससे विद्युत धारा प्रवाह बढ़ गया और अब वे इस आविष्कार को दुनिया के सामने पेश करने की स्थिति में हैं। उन्होंने तीन वर्ग ईंच क्षेत्रफल वाला बड़ा सेल भी तैयार किया है जो 260 मिलि एम्पियर का करेंट देने में सक्षम है। अजीत. टंडन वार्ता

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