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लोकरुचि


गोकुल में दीपावली के अवसर पर ठाकुर जी विराजते है कांच की हटरी में

गोकुल में दीपावली के अवसर पर ठाकुर जी विराजते है कांच की हटरी में

मथुरा, 18 अक्टूबर(वार्ता) उत्तर प्रदेश में मथुरा के गोकुल में दीपावली का पर्व के अवसर पर ठाकुर जी कांच की हटरी में विराजते है। राजा ठाकुर मंदिर महंत बच्चू महराज ने बताया कि गोकुल के मंदिर की सेवा की तुलना किसी अन्य मंदिर से नही की जा सकती है। यहां की सेवा भाव का अनुभव इसे देखकर ही किया जा सकता है। मंदिर में बालस्वरूप सेवा होने के कारण यहां की दीपावली अनूठे तरीके से मनायी जाती है। महंत ने बताया कि पावन भूमि में जन्म के बाद वासुदेव जी कान्हा को लेकर नन्दबाबा के यहां आए थे। उनका कहना था कि दीपावली के दिन मंदिर में ठाकुर जी कांच की हटरी में विराजते हैं। उस पर पड़ने वाला प्रकाश इन्द्रधनुषी बन जाता है। मंदिर में घी के दीपकों की दीप माला बन जाती है। मंदिर का कोना कोना शुचिता से इस प्रकार भर जाता है कि यहां भक्ति नृत्य करने लगती है। उन्होंने बताया कि शयन के दर्शन में ठाकुर जी ’’कान जगाई’’ करते हैं। वे ’’मोर मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल ’’ धारण कर मंदिर की चौक में आते हैं। मंदिर में लाई गई गाय के कान में कहते हैं कि कल उसे आना है। गोवर्धन पूजा है। मंहत बच्चू महराज ने बताया कि गोवर्धन पूजा के दिन ठाकुर जी निज महल से निकलकर मंदिर की चौक में विराजते हैं तथा पहले गिर्राज जी का पूजन एवं बाद में गौ पूजन होता है। गाय के गोबर से विशाल गिर्राज जी बनाते हैं तथा पूजन के बाद गाय को ग्वारिया गोवर्धन के ऊपर चलाता है। उनका कहना है कि गोवर्धन ही ब्रजवासियों को सब कुछ देता है। गायों को गोवर्धन पर चरने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस दिन गाय को ठीक तरह से रखने के कारण ग्वारिया का भी पूजन किया जाता है। इसके बाद ठाकुर जी राजभोग अरोगते हैं और फिर अन्नकूट के दर्शन होते हैं।


          महंत ने बताया कि इस मंदिर में अन्नकूट में सकड़ी , असकड़ी के साथ ही दूधघर के व्यंजन बनाए जाते हैं। इन तीनो प्रकार के भोग की विशेषता यह है कि एक प्रकार का भोग बनानेवाला भोग बनाने के दौरान दूसरे भोग को स्पर्श नही करेगा। उन्होने बताया कि मंदिर में बालस्वरूप की सेवा के कारण दिन भर के कार्यक्रम में ’’लाला’’ का पूरा ख्याल रखा जाता है वह थक जाता है इसलिए शयन के दर्शन गर्भगृह में ही हो जाते हैं। महंत बच्चू लाल ने बताया कि अगले दिन प्रातः ठाकुर गोरस एवं माखन का बालभेाग करते हैं और राजभोग में उन्हें ’’खिचड़ा’’ प्रसाद दिया जाता है। सकड़ी और असकड़ी तथा दूधघर का सेवन करने से ठाकुर को किसी प्रकार की परेशानी न हो इसलिए ही उन्हें सात अनाज अरहर, मूंग, उर्द, चना, रमास, मटर और चावल का खिचड़ा दिया जाता है तथा उन्हें विश्राम देने के लिए मंदिर के पट कम समय के लिए ही खुलते हैं। महंत ने बताया कि मंदिर में बालस्वरूप में दीपावली पर ऐसी सेवा होती है कि इसका दर्शन एवं प्रसाद का पान करने से भक्तों के मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। सं भंडारी रवीन्द्र वार्ता

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