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ऑपरेशन कावेरी सबसे खतरनाक, विशेष रूप से जटिल था: जयशंकर

ऑपरेशन कावेरी सबसे खतरनाक, विशेष रूप से जटिल था: जयशंकर

नयी दिल्ली/मैसूरु 07 मई (वार्ता) भारत द्वारा 2014 से अब तक किए गए सभी निकासी (रेस्क्यू) अभियानों में, ‘ऑपरेशन कावेरी’ सबसे खतरनाक और जटिल था, क्योंकि हिंसा प्रभावित सूडान की राजधानी खार्तूम में भारतीय दूतावास के कर्मचारियों ने लगभग 4,000 लोगों को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी थी।

मैसूर में मोदी सरकार की विदेश नीति पर बातचीत में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि ऑपरेशन कावेरी ‘ एक जटिल ऑपरेशन था’ और विदेश मंत्रालय इसके बारे में सार्वजनिक रूप से बोलने में संकोच कर रहा था क्योंकि वे ‘वास्तव में चिंतित थे कि अगर हमने कुछ भी सार्वजनिक किया तो हम उन्हें खतरे में डाल रहे होंगे।”

विदेश मंत्री ने कहा,“ऑपरेशन कावेरी के तहत हम लगभग 4,000 लोगों को वापस लाए हैं और मोटे तौर पर इनमें लगभग 11-12 प्रतिशत कर्नाटक के निवासी हैं। यह वायु सेना का उपयोग करके किया गया था, 17 उड़ानें भरी गयी और पांच समुद्री जहाजों ने भी लोगों की जान बचायी।”

डॉ. जयशंकर ने कहा,“ इन ऑपरेशनों की एक श्रृंखला को देखते हुए 2015 से जब हमने यमन ऑपरेशन, ऑपरेशन राहत चलाया, लेकिन वास्तव में यह सबसे खतरनाक ऑपरेशन था। यह एक ऐसा ऑपरेशन था जहां लोगों ने अपनी जान जोखिम में डाली, जहां खार्तूम में कुछ दूतावास थे, जब लड़ाई शुरू हुई, तो ज्यादातर दूतावास बहुत जल्दी चले गए। हमारा दूतावास रुका हुआ था, क्योंकि खार्तूम में भारतीय थे।”

विदेश मंत्री ने कहा कि सभी भारतीयों के चले जाने के बावजूद खार्तूम में दूतावास जारी रहा ‘क्योंकि मेरे राजदूत और उनकी टीम की जिम्मेदारी थी।”

उन्होंने कहा कि खार्तूम से 40 किमी दूर वाडी सीडना सैन्य हवाई अड्डे से भारतीय दूतावास के परिवार के सदस्यों सहित 121 लोगों को भारतीय वायु सेना के एक विमान द्वारा साहसी बचाव करते हुए भारत लाया गया। उन्होंने कहा कि उस समय इतनी खराब थी कि वहां हवाई पट्टी नियमित रुप से काम नहीं कर रहा था। वहां पहले आने वाले एक विमान चालक को गोली मार दी गई थी।

उन्होंने कहा,“लोगों को सरकार पर भरोसा करने की जरूरत है, उन्हें यह समझने की जरूरत है कि यह एक ऐसी सरकार है जिसके पास व्यवस्था है, जिसकी विदेशों में अपने नागरिकों के प्रति प्रतिबद्धता है।”

ऑपरेशन कावेरी के दौरान सामने आई चुनौतियों के बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि दूतावास की टीम को बस किराए पर लेनी थी, काला बाजार से पेट्रोल लाना था, क्योंकि ईंधन मिलना बहुत मुश्किल था और जांच बिंदुओं पर बातचीत करनी थी।

विदेश मंत्री ने कहा कि जब सूडान में लड़ाई शुरू हुई तो वह विदेश यात्रा कर रहे थे और अफ्रीका में थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे संपर्क किया था और यह पुष्टि करना चाहते थे कि निकासी प्रक्रिया के लिए सभी प्रणालियां मौजूद हैं या नहीं।

संजय, संतोष

वार्ता

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