Wednesday, Apr 24 2024 | Time 20:32 Hrs(IST)
image
फीचर्स


जैविक खेती के जरिये बचायी जा सकती है भूमि की उर्वरा शक्ति : डॉ जगत सिंह

जैविक खेती के जरिये बचायी जा सकती है भूमि की उर्वरा शक्ति : डॉ जगत सिंह

सुल्तानपुर, 26 दिसम्बर (वार्ता) रसायनिक खाद के अंधाधुंध इस्तेमाल को खतरनाक करार देते हुये कृषि विशेषज्ञों ने कहा है कि जैविक खेती के जरिये न/न सिर्फ भूमि की उर्वरा शक्ति बरकरार रखने में मदद मिलेगी बल्कि कैंसर समेत अन्य जानलेवा बीमारियों से बचा जा सकता है। राष्ट्रीय जैविक कृषि सम्मेलन को संबोधित करते हुये कृषि विशेषज्ञों ने कल शाम यहां कहा कि निरन्तर टिकाऊ उत्पादन की होड़ में अधिक अन्न उत्पादन के लिए खेतीबाडी में रासायनिक खाद और जहरीले कीटनाशकों का उपयोग प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान के चक्र को (इकालाजी सिस्टम) प्रभावित करता है। इस मौके पर गाज़ियाबाद राष्ट्रीय जैविक केंद्र के निदेशक डॉ जगत सिंह ने कहा कि निरन्तर टिकाऊ खेती के सिद्धान्त पर जैविक खेती करने से भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहेगी और यह लोगों के स्वास्थ्य अनुकूल होगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश के कृषि विभाग किसानों को जैविक खेती करने के लिए बढ़ावा दे रही है। प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र निरन्तर चलते रहने से जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था।


डा सिंह ने कहा कि जैविक खेती से भूमि में गुणवत्ता में सुधार होता है। जैविक खादों से भूमि में जिन तत्वों की कमी होती है वह पूर्ण हो जाती है एवं उसकी गुणवत्ता में अभूतपूर्व वृद्धि हो सकती है जबकि रासायनिक खादों के उपयोग से भूमि बंजरपन की ओर बढ रही है। कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि खाद्य उत्पादन की होड़ में किसान तरह-तरह की रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का उपयोग करते है जो प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान के चक्र को (इकालाजी सिस्टम) प्रभावित करता है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति खराब हो जाती है और वातावरण प्रदूषित होता है तथा लोगों के स्वास्थ्य में गिरावट आती है। उन्होंने कहा कि देश में प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गौ पालन किया जाता था। कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से अत्याधिक लाभदायी था मगर बदलते परिवेश में गोपालन धीरे-धीरे कम हो गया तथा कृषि में तरह-तरह की रसायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है जिसके फलस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्थो के चक्र का संतुलन बिगड़ता जा रहा है और वातावरण प्रदूषित होकर, मानव जाति के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। डा सिंह ने किसानों को आगाह किया कि रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग कर अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इससे भूमि, जल एवं वातावरण शुद्ध रहेगा और लेाग स्वस्थ्य रहेंगे।


इस मौके पर उत्तर प्रदेश के जिलों में जैविक खेती की जागरूकता के लिए अमेठी के पाँच हजार किसानों को प्रशिक्षण देने के साथ बीज का वितरण किया गया। इस अवसर पर देश के राष्ट्रीय जैविक संस्थानों के कृषि वैज्ञानिको के द्वारा किसानों को वेस्ट डी कम्पोसर बनाने का भी प्रशिक्षण दिया गया। कृषि वैज्ञानिक शशांक शेखर ने कहा कि भारत वर्ष में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और कृषकों की मुख्य आय का साधन खेती है। हरित क्रांति के समय से बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए आय की दृष्टि से उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है। श्री शेखर ने कहा कि अधिक उत्पादन के लिये खेती में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरको एवं कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है जिससे सामान्य और छोटे किसानों के पास कम जोत में अत्यधिक लागत लग रही है तथा जल, भूमि, वायु और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है और खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे है। सं दिनेश प्रदीप वार्ता

There is no row at position 0.
image