नयी दिल्ली, 21 जनवरी (वार्ता) गुजरात दंगों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संबंधित विवादित डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ को लेकर देश के 300 से अधिक सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, सेवानिवृत्त नौकरशाहों और पूर्व सैन्य अधिकारियों ने बीबीसी को पत्र लिखकर विरोध जताया है।
पत्र में कहा गया है, “अब और नहीं, ना हमारे नेता के साथ और ना ही भारत के साथ। इस डॉक्यूमेंट्री में भारत के प्रति बीबीसी का पूर्वाग्रह और नकारात्मक सोच नजर देती है।” उन्होंने दावा किया कि यह भारत में अतीत के ब्रिटिश साम्राज्यवाद का मूल रूप है, जो खुद को हिंदू-मुस्लिम तनाव को पुनर्जीवित करने के लिए जज और जूरी दोनों के रूप में स्थापित करता है। यह ब्रिटिश राज की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का हिस्सा था।
पत्र में बीबीसी की सीरीज को लेकर कहा गया है कि यह न केवल भ्रामक और स्पष्ट रूप से एकतरफा रिपोर्टिंग है बल्कि यह एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में भारत के अस्तित्व के 75 साल पुराने ढांचे पर सवाल उठाती है।
इस पत्र पर 302 लोगों के हस्ताक्षर हैं, जिनमें 13 पूर्व न्यायाधीशों, राजनयिकों सहित 133 पूर्व नौकरशाहों और 156 पूर्व सैन्य अधिकारियों के हस्ताक्षर शामिल हैं। पूर्व रॉ प्रमुख संजीव त्रिपाठी और पूर्व राजदूत बी. मुखर्जी ने सभी हस्तियों के साथ तालमेल से यह पत्र लिखा है। पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह, पूर्व गृह सचिव एल सी गोयल, पूर्व विदेश सचिव शशांक, रॉ के पूर्व प्रमुख संजीव त्रिपाठी और एनआईए के पूर्व निदेशक योगेश चंद्र मोदी शामिल हैं।
गौरतलब है कि बीबीसी की दो भागों वाली डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया : द मोदी क्वेश्चन’ में दावा किया गया है कि इसमें 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े कुछ पहलुओं की जांच की गई है, तब श्री मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे।
सूत्रों के अनुसार, सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के लिंक साझा करने वाले कई यूट्यूब वीडियो और ट्विटर पोस्ट को ब्लॉक करने के निर्देश जारी किए हैं।
यामिनी, मनोहर
वार्ता