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बाबा साहब के पिता का किरदार निभाना चुनौतीपूर्ण : निवागुने

बाबा साहब के पिता का किरदार निभाना चुनौतीपूर्ण : निवागुने

लखनऊ 03 दिसम्बर (वार्ता) जाने माने अभिनेता जगन्नाथ निवागुने का मानना है कि संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के पिता रामजी मालोजी सकपाल का किरदार को छोटे पर्दे पर जीवंत करना उनके फिल्मी करियर की बड़ी चुनौती थी और इसे उन्होने सहर्ष स्वीकार किया।

निवागुने ने मंगलवार को कहा “ एंड टीवी पर 17 दिसम्बर से शुरू होने वाले एक महानायक डा बी आर अंबेडकर के लिये मुझे आदर्शों और उसूलों के परिचायक बाबा साहब के पिता का किरदार निभाने का आफर मिला तो उसे मैने आसान समझ कर स्वीकार कर लिया लेकिन बाद में पता चला कि वास्तव में यह एक चुनौतीपूर्ण भूमिका थी। इसके लिये मैने कई पुस्तकों का गहन अध्य्यन किया और इस भूमिका के लिये खुद को तैयार किया। ”

उन्होने कहा कि डा अंबेडकर के आदर्श और उसूल समय से काफी आगे के थे, जिन्हें आज के आधुनिक भारत में भी प्रयोग किया जाता है और सिखाया जाता है। एक समाजविद्, अर्थशास्त्री और महान लीडर के सफर पर ले जाने के दौरान, उनके लगातार सहयोग और प्रेरणा रहे उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल, के महत्व को भी उजागर किया गया है। इस शो में जगन्नाथ निवागुने को इस पूर्व पीढ़ी की भूमिका को निभाने के लिये लिया गया है। टीवी शो का प्रीमियर 17 दिसंबर को रात आठ बजे एंड टीवी पर होगा।

निवागुने ने कहा कि बाबा साहब के बचपन के दिनों में रामजी अंबेड़कर उनके बहुत बड़े सपोर्ट सिस्टम रहे हैं। अपने जीवन के मुश्किल दौर में अपने बेटे को सबसे अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने में अंबेड़कर के जीवन में इस इंसान के महत्व के बारे में और बाद में इन दोनों के बीच किस तरह का रिश्ता होता है उसके बारे में बहुत कम रोशनी डाली गयी है। भारतीय लीडर्स को फिल्मों और किताबों के माध्यम से कई तरह से पेश किया गया है, उन्हीं में से एक चंगदेव भवनाव खैरमोड की लिखी किताब ‘डाॅ. बाबासहेब अंबेड़कर’ है। इस किताब में रामजी के जीवन और डाॅ. अंबेड़कर के जीवन में उनके प्रभाव के बारे बताया गया है। अलग-अलग कहानियों का विस्तार से अध्ययन करने वाली इस किताब ने जगन्नाथ को रामजी अंबेड़कर को समझने में काफी मदद की।

अभिनेता ने कहा, “ रामजी, अंबेडकर के रूप में एक ऐसे पात्र को प्रेरित कर रहे हैं, जिनकी कहानी के बारे में बाद से तुलना की जाये तो बहुत कम लोगों को पता था। मुझे ऐसा लगता था कि मैं अंबेड़कर के जीवन के बारे में सबकुछ जानता हूं और मुझे इसके लिये ज्यादा तैयारी करने की जरूरत नहीं। रामजी का किरदार मेरे लिये अनजाना था। बाबासाहब के जीवन में रामजी के होने के अर्थ के बारे में किताबों में भी बहुत नहीं लिखा गया है और यह जो किताब मेरे हाथ लगी है वह उनके बीच के रिश्ते को काफी विस्तार से बताती है।”

प्रदीप

वार्ता

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