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बकरी के दूध में डेंगू को रोकने की शक्ति : चौहान

बकरी के दूध में डेंगू को रोकने की शक्ति : चौहान

(अरुण कुमार सिंह)

नयी दिल्ली,11 अप्रैल (वार्ता) बकरी का दूध डेंगू और चिकनगुनिया बीमारी के उपचार में रामबाण सिद्ध हो सकता है।

केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मखदुम ,मथुरा में डेंगू और चिकनगुनिया बीमारी के उपचार में बकरी के दूध के फायदे को लेकर अनुसंधान शुरु किया गया है। इसके पहले चरण में ऐसे संकेत मिले हैं कि इन दोनों बीमारियों से पीड़ित लोगों को चार पांच दिनों तक सुबह और शाम दो - दो सौ मिली लीटर बकरी का दूध पिलाया जाये तो वे जल्दी स्वस्थ होते हैं ।

संस्थान के निदेशक एम एस चौहान ने बताया कि दूध में अनेक प्रकार के प्रोटीन पाये जाते हैं लेकिन बकरी के दूध में एक विशेष प्रकार का प्रोटीन ‘बायो पेप्टीज’ होता है जो गाय या भैंस के दूध में नहीं मिलता है । यह प्रोटीन डेंगू और चिकनगुनिया के रोकथाम में कारगर भूमिका निभाता है । इन दोनों बीमारियों से पीड़ित लोगों के खून में प्लेटलेट्स घटने लगती है जिससे कई बार उनकी मौत तक हो जाती है । वैज्ञानिकों का अनुमान है कि बायोपेप्टीज से प्लेटलेट्स बढ़ती है और बीमारी की रोकथाम में मदद मिलती है ।

डा़ चौहान के अनुसार गाय , भैंस और बकरी का दूध एक जैसा नहीं होता है। इसकी मुख्य वजह इन पशुओं के खानपान के आदत के कारण होता है । गाय या भैंस की तुलना में बकरी विभिन्न प्रकार का चारा खाती है । वह खुद को स्वस्थ रखने के लिए नीम, पीपल ,पाकड़ और बेर भी खाती है जिन्हें आमतौर पर अन्य पशु पसंद नहीं करते हैं। गाय या भैंस चारा को एक साथ खाते हैं जबकि बकरी चुन चुन कर चारा खाती है । वह कई एेसे पौधों को भी खाती है जिनमें औषधीय गुण होते हैं ।

डेंगू एक जानलेवा बीमारी है जो एडीज मच्‍छर के काटने से फैलती है। जब ये मच्‍छर हमारे शरीर में काटते हैं तो शरीर में वायरस फैल जाता है। ये वायरस प्‍लेटलेट्स के निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। डेंगू होने पर प्‍लेटलेट्स की संख्‍या घटने लगती है। प्लेटलेट्स दरअसल रक्त का थक्का बनाने वाली कोशिकाएं हैं जो लगातार नष्ट होकर निर्मित होती रहती है। ये रक्त में बहुत ही छोटी छोटी कोशिकाएं होती हैं। ये कोशिकाएं रक्त में लगभग एक लाख से तीन लाख तक पाई जाती हैं। इन प्लेटलेट का काम टूटी-फूटी रक्त वाहिकाओं को ठीक करना है। दरअसल प्लेटलेट्स का काम रक्त स्कंदन (ब्लड क्लॉटिंग )है यानी बहते खून पर थक्का जमाना, जिससे ज्यादा खून न बहे। रक्त में यदि इनकी संख्या 30 हजार से कम हो जाए, तो शरीर के अंदर ही खून बहने लगता है और शरीर में बहते-बहते यह खून नाक, कान, पेशाब और मल आदि से बाहर आने लगता है। रक्त में उपस्थित प्लेटलेट्स का एक महत्त्वपूर्ण काम शरीर में उपस्थित हार्मोन और प्रोटीन उपलब्ध कराना होता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार गाय के दूध में आठ प्रकार के प्रोटीन, छह प्रकार के विटामिन, 21 प्रकार के एमिनो एसिड, 11 प्रकार के चर्बीयुक्त एसिड, 25 प्रकार के खनिज तत्त्व, 16 प्रकार के नाइट्रोजन यौगिक, चार प्रकार के फास्फोरस यौगिक, दो तरह की शर्करा, इसके अलावा मुख्य खनिज सोना, तांबा, लोहा, कैल्शियम, आयोडीन, फ्लोरिन, सिलिकॉन आदि भी पाये जाते हैं।

भैंस के दूध में ढेर सारा प्रोटीन होता है जिसमें आठ अमीनाे एसिड पाए जाते हैं। एक कप दूध में लगभग 8.5 ग्राम तक का प्रोटीन प्राप्‍त हो जाता है । भैंस के दूध में काफी कैल्‍शियम और अन्‍य जरुरी पोषक तत्‍व होते हैं जो हड्डियों और दांतों को मजबूती प्रदान करते हैं। इसके अलावा इसमें मिनरल्‍स जैसे मैगनीशियम, पोटैशियम, आयरन और फॉसफोरस आदि होता है।

बकरी के दूध में कार्बोहाइड्रेट, लिपिड, विटामिन, आयरन और कॉपर, कैल्शियम, विटामिन बी, पोटैशियम, फास्फरोस, खनिज और बहुत से लाभकारी यौगिक पाए जाते हैं। इसका दूध फेफड़े के घावों और गले की पीड़ा को दूर करने मदद करता है। यह पेट को शीतलता भी प्रदान करता है।

अरुण जितेन्द्र

वार्ता

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