( पुण्यतिथि 27 अक्टूबर )
मुंबई 26 अक्टूबर (वार्ता) हिन्दी सिनेमा में प्रदीप कुमार को ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने 50 और 60 के दशक में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों में अपने किरदारों के जरिये दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
पचास और साठ के दशक में फिल्मकारों को अपनी फिल्मों के लिए जब भी किसी राजा, महाराजा या फिर राजकुमार अथवा नवाब की भूमिका की जरूरत होती थी तो प्रदीप कुमार को याद किया जाता था। उनके उत्कृष्ट अभिनय से सजी अनारकली, ताजमहल, बहू बेगम और चित्रलेखा जैसी फिल्मों को दर्शक आज भी नहीं भूले हैं पश्चिम बंगाल में चार जनवरी 1925 को ब्राह्मण परिवार में जन्मे शीतल बटावली उर्फ प्रदीप कुमार बचपन से ही फिल्मों में बतौर अभिनेता काम करने का सपना देखा करते थे। अपने इस ख्वाब को पूरा करने के लिए वह अपने जीवन के शुरुआती दौर में रंगमंच से जुड़े। इस बात के लिए हालांकि उनके पिताजी राजी नहीं थे।
वर्ष 1944 में उनकी मुलाकात निर्देशक देवकी बोस से हुई, जो एक नाटक में प्रदीप कुमार के अभिनय को देखकर काफी प्रभावित हुए । उन्हें प्रदीप कुमार में एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया और उन्होंने अपनी बंगला फिल्म अलखनंदा में उन्हें काम करने का मौका दिया। अलखनंदा में प्रदीप कुमार नायक के रूप में अपनी पहचान बनाने में भले ही सफल नहीं हुए लेकिन एक अभिनेता के रूप में उन्होंने सिने करियर के सफर की शुरुआत कर दी। इस बीच, प्रदीप कुमार ने एक और बंगला फिल्म भूली नाय में अभिनय किया। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सिल्वर जुबली मनायी। इसके बाद उन्होंने हिंदी सिनेमा की ओर भी अपना रख कर लिया ।
वर्ष 1949 में प्रदीप कुमार अपने सपने को साकार करने के लिए मुंबई आ गये और कैमरामैन धीरेन डे के सहायक के तौर पर काम करने लगे। वर्ष 1949 से 1952 तक वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। प्रदीप कुमार को फिल्मों में नायक बनने का नशा कुछ इस कदर छाया हुआ था कि उन्होंने हिंदी और उर्दू भाषा की तालीम हासिल करनी शुरू कर दी।
वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म “आनंद मठ” में प्रदीप कुमार पहली बार मुख्य अभिनेता की भूमिका में दिखाई दिये। हालांकि इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर जैसे महान अभिनेता भी थे, फिर भी वह दर्शकों के बीच अपने अभिनव की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फिल्म की सफलता के बाद प्रदीप कुमार बतौर अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये।
वर्ष 1953 में फिल्म अनारकली में प्रदीप कुमार ने शाहजादा सलीम की भूमिका निभायी, जो दर्शकों को काफी
पसंद आयी। इसके साथ ही वह ऐतिहासिक फिल्मों के लिये निर्माता-निर्देशक की पहली पसंद बन गये। वर्ष 1954
में प्रदर्शित फिल्म नागिन की सफलता के बाद वह दर्शकों के चहेते कलाकार बन गये। इस फिल्म ने बाॅक्स पर सफलता के नये कीर्तिमान स्थापित किये और इसमें गीत “मन डोले मेरा तन डोले” मेरा दिल ये पुकारे आजा” गीत श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुए।
वर्ष 1956 प्रदीप कुमार के सिने करियर का सबसे अहम वर्ष साबित हुआ। इस वर्ष उनकी 10 फिल्में प्रदर्शित हुयीं जिनमें श्री फरहाद, जागते रहो, दुर्गेश नंदिनी, बंधन, राजनाथ और हीर जैसी फिल्में शामिल हैं। उनकी जोड़ी मीना कुमारी के साथ खूब जमी। उनकी जोड़ी वाली फिल्मों में अदले जहांगीर, बंधन, चित्रलेखा, बहू-बेगम, भींगी रात, आरती और नूरजहां शामिल हैं। अभिनय में एकरूपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिये प्रदीप कुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इस क्रम में वर्ष 1969 में प्रदर्शित अजय विश्वास की सुपरहिट फिल्म ‘संबध’ में उन्होंने चरित्र भूमिका निभाई और सशक्त अभिनय से दर्शकों की वाहवाही लूट ली।
हिन्दी फिल्मों के अलावा प्रदीप कुमार ने बंगला फिल्मों में भी अपने अभिनय का जौहर दिखाया। इन फिल्मों में भूलीनाई, गृहदाह दासमोहन, देवी चौधरानी, राय बहादुर, संदीपन आनंद मठ जैसी फिल्में शामिल हैं। इसके अलावा
उन्होंने कई बंगला नाटकों मे भी अभिनय किया। लगभग चार दशक तक अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाले प्रदीप कुमार 27 अक्टूबर 2001 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।
वार्ता