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देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत गीत लिखने में माहिर थे प्रदीप

देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत गीत लिखने में माहिर थे प्रदीप

मुंबई, 05 फरवरी (वार्ता) मशहूर कवि रामचंद्र द्विवेदी उर्फ कवि प्रदीप की कालजयी रचना ..ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंखो में भर लो पानी जो शहीद हुए हैं, उनकी जरा याद करो कुर्बानी.. आज भी लोगों में देशप्रेम की भावना भर रही है। वर्ष 1962 मे जब भारत और चीन का युद्व अपने चरम पर था तब कवि प्रदीप, परमवीर मेजर शैतान सिंह की बहादुरी और बलिदान से काफी प्रभावित हुये और देश के वीरों को श्रद्धाजंलि देने के लिये उन्होंने ..ऐ मेरे वतन के लोगों ..जरा याद करो कुर्बानी ..गीत की रचना की। सी.रामचंद्र के संगीत निर्देशन में एक कार्यक्रम के दौरान स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर से देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण इस गीत को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखों में आंसू छलक आये थे। ..ऐ मेरे वतन के लोगों.. को आज भी भारत के महान देशभक्ति गीत के रूप मे याद किया जाता है। 06 फरवरी 1915 को मध्यप्रदेश के छोटे से शहर के मध्यमवर्गीय बाह्मण परिवार में जन्में प्रदीप को बचपन के दिनों से ही कविताएं लिखने का शौक था जिसे वह कवि सम्मेलनों में पढ़कर सुनाया करते थे। वर्ष 1939 में लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने शिक्षक बनने का प्रयास किया लेकिन इसी दौरान उन्हें मुंबई में हो रहे एक कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने का न्योता मिला।


कवि सम्मेलन में उनके गीतों को सुनकर बाम्बे टॉकीज स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय काफी प्रभावित हुये और उन्होंने प्रदीप को अपने बैनर तले बन रही फिल्म ..कंगन.. के गीत लिखने की पेशकश की। वर्ष 1939 मे प्रदर्शित फिल्म कंगन मे उनके गीतों की कामयाबी के बाद प्रदीप बतौर गीतकार फिल्मी दुनिया में अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गये। इस फिल्म के लिये लिखे गये चार गीतों मे से प्रदीप ने तीन गीतों को अपना स्वर भी दिया था । वर्ष 1940 मे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। देश को स्वतंत्र कराने के लिए छिड़ी मुहिम में कवि प्रदीप भी शामिल हो गये और इसके लिये उन्होंने अपनी कविताओं का सहारा लिया। अपनी कविताओं के माध्यम से प्रदीप देशवासियों मे जागृति पैदा किया करते थे। वर्ष 1940 में ज्ञान मुखर्जी के निर्देशन में उन्होंने फिल्म ..बंधन.. के लिये भी गीत लिखा। यूं तो फिल्म बंधन में उनके रचित सभी गीत लोकप्रिय हुये लेकिन ..चल चल रे नौजवान .. के बोल वाले गीत ने आजादी के दीवानों में एक नया जोश भरने का काम किया। अपने गीतों को प्रदीप ने गुलामी के खिलाफ आवाज बुलंद करने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और उनके गीतों ने अंग्रेजों के विरूद्व भारतीयों के संघर्ष को एक नयी दिशा दी। इसके बाद प्रदीप ने बाम्बे टॉकीज की ही फिल्म नया संसार. अंजान पुर्नमिलन. झूला और किस्मत के लिये भी गीत लिखे। चालीस के दशक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध ..भारत छोड़ो आंदोलन .. अपने चरम पर था। वर्ष 1943 में प्रदर्शित फिल्म .किस्मत. में प्रदीप के लिखे गीत ..आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ए दुनिया वालोंं हिंदुस्तान हमारा है ..जैसे गीतों ने जहां एक ओर स्वतंत्रता सेनानियों को झकझोरा वहीं अंग्रेजों की तिरछी नजर के भी वह शिकार हुये ।


प्रदीप का रचित यह गीत ..दूर हटो ए दुनिया वालों.. एक तरह से अंग्रेजी सरकार के पर सीधा प्रहार था। कवि प्रदीप के क्रांतिकारी विचार को देखकर अंग्रेजी सरकार द्वारा गिरफ्तारी का वारंट भी निकाला गया। गिरफ्तारी से बचने के लिये कवि प्रदीप को कुछ दिनों के लिये भूमिगत रहना पड़ा। यह गीत इस कदर लोकप्रिय हुआ कि सिनेमा हॉल में दर्शक इसे बार-बार सुनने की ख्वाहिश जताने लगे और फिल्म की समाप्ति पर दर्शकों की मांग पर इस गीत को सिनेमा हॉल मे दुबारा सुनाया जाने लगा। इसके साथ ही फिल्म ..किस्मत.. ने बॉक्स आफिस के सारे रिकार्ड तोड़ दिये और इस फिल्म ने कोलकाता के एक सिनेमा हॉल मे लगातार लगभग चार वर्ष तक चलने का रिकार्ड बनाया । इसके बाद वर्ष 1950 मे प्रदर्शित फिल्म..मशाल.. में उनके रचित गीत ..ऊपर गगन विशाल नीचे गहरा पाताल .बीच में है धरती .वाह मेरे मालिक तूने किया कमाल..भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद कवि प्रदीप ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक से बढकर एक गीत लिखकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। वर्ष 1954 में प्रदर्शित फिल्म ..नास्तिक .. में उनके रचित गीत ..देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान कितना बदल गया इंसान .. समाज में बढ़ रही कुरीतियों के ऊपर उनका सीधा प्रहार था । वर्ष 1954 में ही फिल्म ..जागृति ..में उनके रचित गीत की कामयाबी के बाद वह शोहरत की बुंलदियों पर जा बैठे। प्रदीप द्वारा रचित गीत.. हम लाये है तूफान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के..और .. दे दी आजादी हमें बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल .. जैसे गीत आज भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। ये गीत देश भर में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर खास तौर से सुने जा सकते है। इस गीत ..साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ..गीत के जरिये प्रदीप ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की है।


साठ के दशक में पाश्चात्य गीत.संगीत की चमक से निर्माता निर्देशक अपने आप को नहीं बचा सके और धीरे-धीरे निर्देशकों ने प्रदीप की ओर से अपना मुख मोड़ लिया लेकिन वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म ..तलाक .. और वर्ष 1959 में प्रदर्शित फिल्म ..पैगाम.. में उनके रचित गीत ..इंसान का इंसान से हो भाईचारा. .की कामयाबी के बाद प्रदीप एक बार फिर से अपनी खोयी हुई लोकप्रियता पाने में सफल हो गये। वर्ष 1975 मे प्रदर्शित फिल्म ..जय संतोषी मां.. में उनके रचित गीत ने एक बार फिर से प्रदीप शोहरत की बुंलदियों पर जा बैठे। जय संतोषी मां का गीत इस कदर लोकप्रिय हुआ कि कई शहरों में इस फिल्म ने हिन्दी सिनेमा के इतिहास मे सबसे सफल फिल्म मानी जानी वाली फिल्म..शोले ..का भी बाॅक्स आफिस रिकार्ड तोड़ दिया। कवि प्रदीप फिल्म जगत मे उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुये उन्हे वर्ष 1998 मे फिल्म इंडस्ट्री के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा वर्ष 1961 मे संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, फिल्म जर्नलिस्ट अवार्ड, इम्पा अवार्ड महान कलाकार अवार्ड .राजीव गांधी अवार्ड .सुरसिंगार अवार्ड. संत ज्ञानेश्वर अवार्ड और नेशनल इंटीग्रेशन अवार्ड 1993 से भी प्रदीप सम्मानित किये गये । अपने गीतों के जरिये देशवासियों के दिल में राज करने वाले प्रदीप ने 11 दिसम्बर 1998 को इस दुनिया को अलविदा कह गये। प्रेम, यामिनी वार्ता

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