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लाॅकडाउन में कुम्हारों के सामने भरण पोषण की समस्या

लाॅकडाउन में कुम्हारों के सामने भरण पोषण की समस्या

औरैया, 11 जून (वार्ता) उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में कोरोना के चलते लगाये गये लाॅकडाउन से कुम्भकारों द्वारा निर्मित माटी के वर्तनों विशेषकर गरीबों के फ्रिज कहे जाने बाले घड़ों की बिक्री न होने से उनके सामने परिवार के भरण पोषण की समस्या उत्पन्न हो गयी है। उन्होंने प्रशासन से मदद की गुहार लगायी है।

गर्मी की शुरूआत होते ही शहर से लेकर गांवों तक के बाजारों में कुम्भकारों द्वारा निर्मित गरीबों के फ्रिज कहे जाने वाले घड़े दिखायी देने लगते थे बल्कि उनकी मांग अधिक होने के कारण कई बार कुम्भकार बाजार में उनकी पूर्ति भी नहीं कर पाते थे, पर इस बार कोरोना वायरस के चलते मार्च माह से ही लगाये गये लाॅकडाउन के कारण न तो बाजार ही खुले और न घड़े नजर आये। भीषण गर्मी में घड़ों का ठंडा पानी पीने वाले लोगों द्वारा उनकी खरीद की उम्मीद में कुम्भकारों द्वारा हाड़तोड़ मेहनत कर घड़ों का निर्माण अवश्य किया ।

घड़ों की बिक्री न होने और मेहनत के साथ मिट्टी आदि पर लागत लग जाने के कारण वह लोग खासे परेशान है जिनका कहना है कि इस माहमारी के चलते उनका मूल व्यवसाय इस कदर प्रभावित हुआ है कि परिवार के भूखों मरने की स्थिति बनती जा रही है । गर्मियों के इन दिनों में घड़ों की बिक्री के साथ सहालग के समय गागरें, कुल्हड़, दिए आदि की भी खूब विक्री हुआ करती थी पर इस बैरन कोरोना महामारी के कारण उनकी भी बिक्री नहीं हो रही है।

कुम्भकारों को शादी विवाह में अपने निर्माण मिट्टी के वर्तनों की कीमत तो मिलती ही थी साथ ही उन्हें शादी के समय पहुंचने पर नेग भी मिला करता था पर वायरस और लाॅकडाउन के चलते इस वर्ष ऐसा कहीं पर भी नहीं देखा जा रहा है।

गर्मी के दिनों में एक-एक कुम्भकार के प्रतिदिन 20 से 30 घड़े बिक जाया करते थे लेकिन इस वर्ष लॉकडाउन की वजह से दो-तीन दिन में एक या दो घड़े ही बिक रहे हैं, जबकि इसके ठीक उल्टा बढ़ती महंगाई के कारण मिट्टी खरीदने व उसे वाहनों से लाने में भाड़े में बढ़ोतरी के कारण इसकी लागत दर लगातार बढ़ती जा रही है।

ऐसी स्थिति में पूरे वर्ष परिवार के सदस्यों द्वारा की जा रही भारी मेहनत के बावजूद भी मजदूरी तक के दाम हाथ नहीं आ रहे नहीं आ रहे है, जिससे उनके परिवारों के भरण पोषण करने तक के लाले पड़ गए हैं।

कुम्भकारों का कहना है कि अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी बिजली के पहुंचने और अधिकांश घरों में फ्रिजों के खरीदे जाने से जहां घडों की मांग न केवल बराबर रह गई है। उनका कहना है कि यदि भविष्य में घड़ों की बिक्री में इजाफा ना हुआ तो आने वाले समय में इस कार्य में लगे शेष परिवार भी इस धंधे को छोड़ देंगे, क्यों कि काफी समस्याओं के बीच वह लोग इस घंघे को अपनाये हैं।

कारीगरों का कहना है कि पहले मिट्टी आसानी से मिल जाती थी, लेकिन अब मिट्टी भी बहुत कठिनाई से मिलती है। पहले जिले के अछल्दा क्षेत्र से मिट्टी ले आते थे। न कोई पूछता था न पुलिस पकड़ती थी, लेकिन अब मिट्टी भी बहुत कठिनाई से मिल रही है। पुलिस परेशान करती है।

चंदरपुर निवासी घड़ा कारोबारी रामऔतार प्रजापति ने बताया कि यह मेरा पुश्तैनी काम है, जब से मैंने अपनी उम्र संभाली है तब से मैं यही व्यवसाय कर रहा हूं। उन्होंने बताया कि जहां प्रतिदिन सामान दिनों में 15 से 20 घड़े बिक जाया करते थे, वहीं अब लॉक डाउन की वजह से 2 से 3 दिन में एक या दो घड़ों के खरीददार घरों पर आते हैं, जिससे घर का खर्चा चलाना मुश्किल हो गया है, जबकि परिवार में 17 सदस्य हैं, इन सदस्यों का कैसे भरण-पोषण करें।

लॉकडाउन के चलते उनका व्यवसाय बिल्कुल बंद हो गया है, नवदुर्गा के समय बनाये हुए मिट्टी के वर्तन घड़ों आदि की बिक्री न होने से वह भी रखे हुए हैं। वही शादी विवाह में भी लॉकडाउन के चलते गागर आदि लेने कोई नहीं आ रहा है, जिससे परिवार भूखों की कगार पर पहुंच रहा है।

राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद कुम्भकारों को एक चाक के लिये रुपया देने व मिट्टी के लिये जगह देने की बात कही गई थीं, पर आज तक कोई वादा पूरा नही हुआ है।



सं विनोद

वार्ता

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