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भारतीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई रहमान ने

भारतीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई रहमान ने

(जन्मदिन 06 जनवरी) 


मुंबई. 05 जनवरी (वार्ता) भारतीय सिनेमा जगत में ए. आर. रहमान को एक ऐसे प्रयोगवादी और प्रतिभाशाली संगीतकार में शुमार किया जाता है जिन्होंने भारतीय सिनेमा संगीत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान दिलाई है। 06 जनवरी 1967 को तमिलनाडु में जन्मे रहमान का रूझान बचपन के दिनों से ही संगीत की ओर था। उनके पिता आर. के. शेखर मलयालम फिल्मों के लिये संगीत दिया करते थे। वह भी अपने पिता की तरह ही संगीतकार बनना चाहते थे। संगीत के प्रति रहमान के बढ़ते रूझान को देख उनके पिता ने उन्हें इस राह पर चलने के लिये प्रेरित किया और उन्हें संगीत की शिक्षा देने लगे । सिंथेसाइजर और हारमोनियम पर संगीत का रियाज करने वाले रहमान की की-बोर्ड पर अंगुलियां ऐसी चलती कि सुनने वाले मुग्ध रह जाते कि इतना छोटा बच्चा इतनी मधुर धुन कैसे बना सकता है। उस समय रहमान की उम्र महज छह वर्ष की थी। एक बार उनके घर में उनके पिता के एक मित्र आये और जब उन्होंने रहमान की बनायी धुन सुनी तो सहसा उन्हें विश्वास नहीं हुआ उनकी परीक्षा लेने के लिये उन्होंने हारमोनियम के ऊपर कपड़ा रख दिया और रहमान से धुन निकालने के लिये कहा। हारमोनियम पर रखे कपड़े के बावजूद रहमान की अंगुलियां बोर्ड पर थिरक उठी और उस धुन को सुन वह चकित रह गये।


                         कुछ दिनों के बाद रहमान ने एक बैंड बनाया जिसका नाम था नेमेसीस एवेन्यू.. वह इस बैंड में सिंथेनाइजर, पियानो, गिटार, हारमोनियम बजाते थे। अपने संगीत के शुरूआती दौर से ही रहमान को सिंथेनाइजर ज्यादा अच्छा लगता था। उनका मानना था कि वह एक ऐसा वाद्य यंत्र है जिसमें संगीत और तकनीक का बेजोड़ मेल देखने को मिलता है। रहमान अभी संगीत सीख ही रहे थे तो उनके सर से पिता का साया उठ गया लेकिन रहमान ने हिम्मत नहीं हारी और संगीत का रियाज जारी रखा। वर्ष 1989 की बात है रहमान की छोटी बहन काफी बीमार पड़ गयी और सभी चिकित्सकों ने यहां तक कह दिया कि उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं है। रहमान ने अपनी छोटी बहन के जीवन की खातिर मंदिर, मस्जिदों में दुआयें मांगी जल्द ही उनकी दुआ रंग लाई और उनकी बहन चमत्कारिक रूप से एकदम स्वस्थ हो गयी। इस चमत्कार को देख रहमान ने इस्लाम कबूल कर लिया और इसके बाद उनका नाम ए.एस. दिलीप कुमार से अल्लाह रखा रहमान यानि ए.आर.रहमान हो गया । इस बीच रहमान ने मास्टर धनराज से संगीत की शिक्षा हासिल की और दक्षिण फिल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार इल्लय राजा के समूह के लिये की-बोर्ड बजाना शुरू कर दिया उस समय रहमान की उम्र महज 11 वर्ष थी। इस दौरान रहमान ने कई बड़े नामी संगीतकारों के साथ काम किया इसके बाद रहमान ने लंदन के ट्रिनिटी काॅलेज आॅफ म्यूजिक में स्कॉलरशिप का मौका मिला जहां से उन्होंने पश्चिमी शास्त्रीय संगीत की स्नातक की डिग्री भी हासिल की।


                           स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद रहमान घर आ गये और उन्होंने अपने घर में ही एक म्यूजिक स्टूडियो खोला और उसका नाम पंचाथम रिकार्ड इन रखा। इस दौरान रहमान ने लगभग एक साल तक फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिये संघर्ष करते रहे और टीवी के लिये छोटा मोटा संगीत देने और रेडियो जिंगल बनाने का काम करते रहे । वर्ष 1992 रहमान के सिने करियर का महत्वपूर्ण वर्ष साबित हुआ। अचानक उनकी मुलाकात फिल्म निर्देशक मणि रत्नम से हुयी। मणि उन दिनों फिल्म रोजा के निर्माण में व्यस्त थे और अपनी फिल्म के लिये संगीतकार की तलाश में थे। उन्होंने रहमान को अपनी फिल्म में संगीत देने की पेशकश की । कश्मीर आतंकवाद के विषय पर आधारित इस फिल्म में रहमान ने अपने सुपरहिट संगीत से श्रोताओं का दिल जीत लिया और इसके साथ हीं वह सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये। इसके बाद रहमान ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और फिल्मों में अपने एक से बढकर एक एवं बेमिसाल संगीत से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद रहमान ने तिरूड़ा तिरूड़ा, बांबे, जैंटलमैन, इंडियन और कादलन आदि फिल्मों में भी सुपरहिट संगीत दिया और संगीत जगत में अपनी अलग पहचान बना ली। रहमान ने कर्नाटक संगीत, शास्त्रीय संगीत और आधुनिक संगीत का मिश्रणकर श्रोताओं को एक अलग संगीत देने का प्रयास किया। अपनी इन्हीं खूबियों के कारण वह श्रोताओं में बहुत लोकप्रिय हो गए।


                          इसके बाद रहमान निर्माता-निर्देशकों की पहली पसंद बन गये और वे रहमान को अपनी फिल्म में संगीत देने के लिये पेशकश करने लगे। लेकिन रहमान ने केवल उन्हीं फिल्मों के लिये संगीत दिया जिनके लिये उन्हें महसूस हुआ कि हां, इसमें कुछ बात है। वर्ष 1997 में भारतीय स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ पर उन्होंने स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ मिलकर वंदे मातरम यानी मां तुझे सलाम का निर्माण किया । इसके बाद वर्ष 1999 में रहमान ने काॅरियोग्राफर शोभना, प्रभुदेवा और उनके डांसिंग समूह के साथ मिलकर माइकल जैक्सन के माइकल जैक्सन एंड फ्रैंडस टूर के लिये म्यूनिख, जर्मनी में कार्यक्रम पेश किया। इसके बाद रहमान को म्यूजिक कान्सर्ट में भाग लेने के लिये विदेशों से भी प्रस्ताव आने लगे। उन्होंने पाश्चात्य संगीत के साथ साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत के मिश्रण को लोगों के सामने रखना शुरू कर दिया था। उनको बतौर संगीतकार अब तक दस बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इन सबके साथ ही अपने उत्कृष्ठ संगीत के लिये उनको चार बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें पद्यश्री से भी नवाजा जा चुका है। इन सबके साथ ही विश्व संगीत में महत्वपूर्ण योगदान के लिये वर्ष 2006 में उन्हें स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में सम्मानित किया गया । रहमान के सिने करियर में एक नया अध्याय उस समय जुड़ गया जब उन्होंने फिल्म स्लमडाग मिलिनेयर के लिए दो आॅस्कर पुरस्कार जीतकर नया इतिहास रच दिया। उनको 81वें एकादमी अवार्ड समारोह में इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। रहमान आज भी उसी जोशो खरोश के साथ संगीत जगत को अपने जादुई संगीत से सुशोभित कर रहे है।


                 

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