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निर्देशक नहीं पार्श्वगायक बनना चाहते थे राज खोसला

निर्देशक नहीं पार्श्वगायक बनना चाहते थे राज खोसला

..पुण्यतिथि 09 जून के अवसर पर ..

मुंबई 08 जून (वार्ता) बॉलीवुड में अपनी निर्देशित फिल्मों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाले राज खोसला फिल्म निर्देशक नहीं पार्श्वगायक बनने की हसरत रखते थे।

इकतीस मई 1925 को पंजाब के लुधियाना शहर में जन्में राज खोसला का बचपन से ही रूझान गीत संगीत की ओर था। वह फिल्मी दुनिया में पार्श्वगायक बनना चाहते थे । आकाशवाणी में बतौर उद्घोषक और पार्श्वगायक का काम करने के बाद राज खोसला 19 वर्ष की उम्र में पार्श्वगायक की तमन्ना लिये मुंबई आ गये । मुंबई आने के बाद राज खोसला ने रंजीत स्टूडियों में अपना स्वर परीक्षण कराया और इस कसौटी पर वह खरे भी उतरे लेकिन रंजीत स्टूडियों के मालिक सरदार चंदू लाल ने उन्हें बतौर पार्श्वगायक अपनी फिल्म में काम करने का मौका नहीं दिया। उन दिनों रंजीत स्टूडियो की स्थिति ठीक नही थी और सरदार चंदूलाल को नये पार्श्वगायक की अपेक्षा मुकेश पर ज्यादा भरोसा था अतः उन्होंने अपनी फिल्म में मुकेश को ही पार्श्वगायन करने का मौका देना उचित समझा।

इस बीच राज खोसला फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिये संघर्ष करते रहे। उन्हीं दिनों उनके पारिवारिक मित्र और अभिनेता देवानंद ने राज खोसला को अपनी फिल्म ‘बाजी’ में गुरूदत्त के सहायक निर्देशक के तौर पर नियुक्त कर लिया । वर्ष 1954 में राज खोसला को स्वतंत्र निर्देशक के तौर पर फिल्म मिलाप को निर्देशित करने का मौका मिला। देवानंद और गीताबाली अभिनीत फिल्म मिलाप की सफलता के बाद बतौर निर्देशक राज खोसला फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गये । वर्ष 1956 में राज खोसला ने सी.आई.डी फिल्म निर्देशित की। जब फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अपनी सिल्वर जुबली मनायी , तब गुरूदत्त इससे काफी खुश हुये। उन्होंने राज खोसला को एक नयी कार भेंट की और कहा , “ यह कार आपकी है।” इसमें दिलचस्प बात यह है कि गुरूदत्त ने कार के सारे कागजात भी राज खोसला के नाम से ही बनवाये थे ।


सी.आई.डी की सफलता के बाद गुरूदत्त ने राज खोसला को अपनी एक अन्य फिल्म के निर्देशन की भी जिम्मेवारी सौंपनी चाही लेकिन राज खोसला ने उन्हें यह कह कर इंकार कर दिया कि एक बड़े पेड़ के नीच भला दूसरा पेड़ कैसे पनप सकता है। इस पर गुरूदत्त ने राज खोसला से कहा, “ गुरूदत्त फिल्मस पर जितना मेरा अधिकार है उतना तुम्हारा भी है। ”

वर्ष 1958 में राज खोसला ने नवकेतन बैनर तले निर्मित फिल्म सोलहवां साल निर्देशित की। देवानंद और वहीदा रहमान अभिनीत इस फिल्म को सेंसर का वयस्क प्रमाण पत्र मिलने के कारण फिल्म को देखने ज्यादा दर्शक नहीं आ सके और अच्छी पटकथा और निर्देशन के बावजूद फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कोई खास कमाल नहीं दिखा सकी । इसके बाद राज खोसला को नवकेतन के बैनर तले ही निर्मित फिल्म काला पानी को निर्देशित करने का मौका मिला । यह बात कितनी दिलचस्प है कि जिस देवानंद की बदौलत राज खोसला को फिल्म इंडस्ट्री में काम करने का मौका मिला था उन्हीं की वजह से देवानंद को अपने फिल्मी करियर का बतौर अभिनेता पहला फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ ।

वर्ष 1960 में राज खोसला ने निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया और ‘बंबई का बाबू’ का निर्माण किया । फिल्म के जरिये राज खोसला ने अभिनेत्री सुचित्रा सेन को रूपहले पर्दे पर पेश किया। हालांकि फिल्म दर्शकों के बीच सराही गयी लेकिन बॉक्स ऑफिस पर इसे अपेक्षित कामयाबी नही मिल पायी । फिल्म की असफलता से राज खोसला आर्थिक तंगी में फंस गये । इसके बाद राज खोसला को फिल्मालय की एस.मुखर्जी निर्मित एक मुसाफिर एक हसीना निर्देशित करने का मौका मिला । फिल्म की कहानी एक ऐसे फौजी अफसर की जिंदगी पर आधारित थी जिसकी याददाश्त चली जाती है । फिल्म के निर्माण के समय एस.मुखर्जी ने राज खोसला को यह राय दी कि फिल्म की कहानी फ्लैशबैक से शुरू की जाये ।


एस. मुखर्जी की इस बात से राज खोसला सहमत नहीं थे । बाद में वर्ष 1962 में जब फिल्म प्रदर्शित हुयी तो आरंभ में उसे दर्शकों का अपेक्षित प्यार नहीं मिला और राज खोसला के कहने पर एस. मुखर्जी ने फिल्म का संपादन कराया और जब फिल्म को दुबारा प्रदर्शित किया तो फिल्म पर बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुयी । वर्ष 1964 में राज खोसला की एक और सुपरहिट फिल्म ‘ वो कौन थी ’ प्रदर्शित हुयी। फिल्म के निर्माण के समय मनोज कुमार और अभिनेत्री के रूप में निम्मी का चयन किया गया था लेकिन राज खोसला ने निम्मी की जगह साधना का चयन किया। रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फिल्म में साधना की रहस्यमयी मुस्कान के दर्शक दीवाने हो गये। साथ ही फिल्म की सफलता के बाद राज खोसला का निर्णय सही साबित हुआ ।

वर्ष 1967 में राज खोसला ने फिल्म ‘अनिता’ का निर्माण किया जो बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह नकार दी गयी जिससे उन्हें गहरा सदमा पहुंचा और उन्हें आर्थिक क्षति हुयी। इससे राज खोसला टूट से गये। बाद में अपनी मां के कहने पर उन्होंने वर्ष 1969 में फिल्म ‘चिराग’ का निर्माण किया जो सुपरहिट रही। वर्ष 1971 में राज खोसला की एक और सुपरहिट फिल्म प्रदर्शित हुयी ‘मेरा गांव मेरा देश’ इस फिल्म में विनोद खन्ना खलनायक की भूमिका में थे। फिल्म की कहानी उन दिनों एक अखबार में छपी कहानी पर आधारित थी । वर्ष 1978 में राज खोसला ने लीक से हटकर फिल्में बनाने का काम करना शुरू कर दिया और नूतन और विजय आनंद को लेकर ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ का निर्माण किया। पारिवारिक पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म दर्शकों के बीच काफी सराही गयी । वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘दोस्ताना’ राज खोसला के सिने करियर की अंतिम सुपरहिट फिल्म थी । फिल्म में अमिताभ बच्चन ,शत्रुघ्न सिन्हा और जीनत अमान ने मुख्य भूमिका निभायी थी ।

अस्सी के दशक में राजखोसला की फिल्में व्यावसायिक तौर पर सफल नहीं रही । इन फिल्मों में दासी , तेरी मांग सितारों से भर दूं, मेरा दोस्त मेरा दुश्मन और माटी मांगे खून शामिल है । वर्ष 1984 में प्रदर्शित फिल्म ‘सन्नी’ ने बॉक्स ऑफिस पर औसत व्यापार किया । वर्ष 1989 में प्रदर्शित फिल्म ‘नकाब’ राज खोसला के सिने करियर की अंतिम फिल्म साबित हुयी । अपने दमदार निर्देशन से लगभग चार दशक तक सिने प्रेमियों का भरपूर मनोरंजन करने वाले निर्माता-निर्देशक राज खोसला 09 जून 1991 को इस दुनिया को अलविदा कह गये ।



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