नयी दिल्ली, 03 अप्रैल (वार्ता) राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने उत्तराखंड के राजाजी राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में जानवरों की मौत पर अंकुश लगाने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकारण (एनएचएआई) को एक माह के अंदर निर्माणाधीन राष्ट्रीय राजमार्ग 74 पर दो पुल बनाने काे कहा है।
एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली प्रधान पीठ ने अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल की याचिका पर 28 मार्च को सुनावाई के दौरान वन्य जीवों की आवाजाही वाले स्थलों की पहचान करके वहां पुल बनाने के आदेश दिया। याचिकाकर्ता की मुख्य चिंता राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के समय वन्य जीवों को होने वाली परेशानियाें और मार्गों पर आवाजाही के दौरान होने वाली उनकी मौतों को लेकर थी।
न्यायाधिकरण ने एनएचएआई के अलावा उत्तराखंड सरकार और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को भी सड़क दुर्घटना में जानवरों की मौत को रोकने की दिशा में आश्वयक कदम उठाने के आदेश दिये हैं। एनएचआईए की तरफ से अधिवक्ता कृतिका शुक्ला ने अदालत को सूचित किया कि सड़क पर जानवरों की मौत को रोकने के लिए उचित स्थानों पर 290 मीटर और 1200 मीटर लंबे पुलों का निर्माण किया जायेगा और इसके लिए निविदा आमंत्रित की जायेगी।
अधिवक्ता बंसल ने ‘यूनीवार्ता’ से कहा कि देहरादून से 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस उद्यान के जानवरों के सड़क पार करते समय मौत की आगोश में जाने की घटनाओं के संबंध में दायर इस याचिका पर एनजीटी ने एक माह के अंदर उद्यान क्षेत्र से लगी सड़क पर दो पुल बनाने और इस मुद्दे पर किसी तरह की आपत्ति की सूरत में राज्य सरकार को बाघ संरक्षण प्रस्ताव पर तीन सप्ताह के अंदर जवाब देने को कहा है।
उन्होंने कहा कि न्यायाधिकरण ने चिड़ियापुर और चांदीब्रीज के बीच निर्माणाधीन राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 74 के निर्माण के लिए आवश्यक दिशानिर्देश जारी किये हैं। यह मार्ग हरिद्वार वन क्षेत्र के अंतर्गत चिड़ियापुर, रसियाबाद और श्यामपुर से होकर गुजरेगा। रसियाबाद क्षेत्र झिलमिल झील आरक्षित स्थल और श्यामपुर क्षेत्र राजाजी बाघ अभयारण्य का बफर जोन है। ‘हाॅट जोन’ हाेने कारण इस राजमार्ग में पांच किलोमीटर तक के दायरे में काम रोक दिया गया है।
श्री बंसल ने कहा कि पिछले 10 साल के दौरान इस क्षेत्र में सड़क दुर्घटनाओं में 22 तेंदुए तथा दो बाघ मारे जा चुके हैं और पिछले छह माह में चीतल, हिरण, साम्भर, जंगली सूअर समेत कम से कम 222 वन्य जीवन सड़क पार करते समय मौत की आगोश में समा चुके हैं।
यह उद्यान देहरादून के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से है। वर्ष 1983 से पहले इस क्षेत्र में फैले जंगलों में तीन अभयारण्य थे- राजाजी, मोतीचूर और चिल्ला, लेकिन वर्ष 1983 में इन्हें एक कर दिया गया। महान स्वतंत्रता सेनानी चक्रवर्ती राज गोपालााचारी के नाम पर इस पार्क का नाम राजाजी राष्ट्रीय उद्यान रखा गया है। आठ सौ 30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह उद्यान हाथियों की संख्या के लिए खास तौर पर जाना जाता है। इसके अलावा इसमें बड़ी संख्या में हिरण, चीते, साम्भर और मोर भी हैं। तीन सौ 15 से अधिक प्रजातियों के पक्षियों के कलरव से राजाजी पार्क गुंजायमान रहता है।
आशा सुरेश
वार्ता