फीचर्सPosted at: Jan 3 2017 12:48PM राजन पर हमलों, एमपीसी और नोटबंदी के नाम रहा आरबीआई का साल
नयी दिल्ली 03 जनवरी (वार्ता) रिजर्व बैंक (आरबीआई) के लिए वर्ष 2016 मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के गठन, नोटबंदी तथा पूर्व गवर्नर रघुराम राजन पर राजनीतिक हमलों और नये गवर्नर की नियुक्ति जैसी घटनाओं और बदलावों से भरा रहा। एमपीसी के गठन से एक ओर जहां हमेशा के लिए नीतिगत दरों पर आरबीआई गवर्नर का एकाधिकार समाप्त हो गया वहीं दूसरी ओर संभवत: यह पहली बार है जब केंद्रीय बैंक के गवर्नर को इस कदर राजनीतिक हमलों का निशाना बनाया गया। साल के आखिरी दो महीने नोटबंदी के नाम रहे जब आरबीआई नोट छापने, उन्हें जारी करने, एटीएम के कैलिब्रेशन और एक के बाद एक नये नियम जारी करने और फिर उन्हें बदलने में व्यस्त रहा। नोटबंदी के बीच केंद्रीय बैंक के काम की कड़ी आलोचना भी हुई। इन सबके बीच श्री राजन तथा वर्तमान गर्वनर उर्जित पटेल ने एक-एक बार प्रमुख नीतिगत दर रेपो रेट में चौथाई फीसदी की कटौती भी की। आरबीआई ने गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) के संबंध में बैंकों की बैलेंसशीट की सफाई का जो काम शुरू किया था उसमें बीते साल और प्रगति हुई। बैंकिंग तंत्र को मजबूत बनाने तथा अधिक से अधिक लोगों को बैंकिंग सुविधा से जोड़ने के लिए नियमों में कई बदलाव किये गये। आरबीआई में सबसे बड़ा बदलाव बीते साल अक्टूबर में आया। सरकार ने पहले ही एलान कर दिया था कि नीतिगत दरों पर फैसले के बारे में गवर्नर के अधिकार कम किये जायेंगे तथा छह सदस्यीय एमपीसी का गठन करके यह अधिकार उसे सौंपा जायेगा। हालांकि, बाद में सरकार ने बराबर वोटिंग की स्थिति में वीटो का अधिकार गवर्नर को देने का सुझाव मान लिया। इस प्रकार श्री राजन पूरे एकाधिकार के साथ नीतिगत दरों पर फैसला करने वाले आरबीआई के अंतिम गवर्नर रहे। उन्होंने सितंबर में सेवानिवृत्त होने से पहले अगस्त में अपनी अंतिम मौद्रिक एवं ऋण नीति समीक्षा पेश की। इससे पहले अप्रैल में उन्होंने रेपो दरों में 0.25 प्रतिशत की कटौती की तथा रिवर्स रेपो दर 0.25 प्रतिशत बढ़ाया था। श्री पटेल ने 04 सितंबर को श्री राजन के जगह पदभार संभाला और अक्टूबर की समीक्षा एमपीसी ने पेश की। इसमें रेपो तथा रिवर्स रेपो दरों समेत सभी नीतिगत दरों में 0.25 प्रतिशत की कमी की गयी थी। इस प्रकार वर्ष 2015 में रेपो दर में 1.25 प्रतिशत की कटौती के बाद बीते साल इसमें 0.50 प्रतिशत की कटौती की गयी। अजीत आशा जारी वार्ता