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लोकरुचि


रानी लक्ष्मीबाई देश के उज्जवल इतिहास की हैं चमकता सितारा

रानी लक्ष्मीबाई देश के उज्जवल इतिहास की हैं चमकता सितारा

झांसी 18 नवंबर (वार्ता) “ झांसी ” एक ऐसा शहर, एक ऐसा नाम जिसका जिक्र होते ही हर हिंदुस्तानी के जहन में जो पहली बात या पहला नाम आता है वह रानी लक्ष्मीबाई का है। रानी लक्ष्मीबाई जो हमारे उज्जवल इतिहास का एक ऐसा चमकता सितारा है जिसे किसी परिचय की जरूरत नहीं अपितु बुंदेलखंड के इस सबसे बड़े शहर झांसी की पहचान ही रानी लक्ष्मीबाई के नाम से है। आज हम इस महान व्यक्तित्व के संसार में आने के अवसर पर इन्हें फिर याद कर रहे हैं।

लक्ष्मीबाई ने न केवल भारत बल्कि संपूर्ण विश्व की महिलाओं को गौरवान्वित किया। भारत के 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ लड़े गये प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वह वीरांगना रहीं। उनका पूरा जीवन वीरोचित गुणों, अमर देशभक्ति और बलिदान से भरा रहा। इस संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीरों में रानी का नाम सबसे ऊपर है। मात्र 23 साल की उम्र में इतिहास के पन्नों में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों से लिखकर यह वीरांगना सदा-सदा के लिए चलीं गयीं लेकिन रानी ने महिला वीरता की एक ऐसी दासतां लिख दी जो न जाने कब से गायी जा रही है और जब तक भारत का अस्तित्व है तब तक गायी जाती रहेगी।

इतनी छोटी उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ रानी ने जिस तरह के साहस और जीवटता का परिचय दिया उसका वर्णन असम्भव है। “ मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी ” के घोष के साथ रणभूमि में रानी ने अंग्रेजों को जबरदस्त टक्कर दी। रानी के साहस और वीरता से अंग्रेज बुरी तरह भयभीत थे। झांसी पर कब्जा करने आये सर ह्यूरोज ने टिप्पणी की थी कि “ रानी विद्रोही नेताओं में सबसे ज्यादा खतरनाक थीं। ”

अपने आत्मसम्मान के लिए बाहरी लोगों से भी टकराने की हिम्मत रखने वाली रानी के शहर में महिलाओं की स्थिति क्या है? क्या आज 21वीं सदी में रानी लक्ष्मीबाई की ही कर्मभूमि पर पैदा हुई या रहने वाली वीरांगनाएं भी अपने आत्मसम्मान की रक्षा उन्हीं की तरह कर पा रहीं हैं? लोगों के बीच उनको लेकर कैसी सोच है और महिलाओं के प्रति इस शहर की मानसिकता किस प्रकार की है। साथ ही स्वंय लडकियां इस शहर की उनके प्रति मानसिकता के बारे में क्या सोंचती हैं। रानी लक्ष्मीबाई के जन्म की लगभग दूसरी शताब्दी पूरी होने के करीब इन बिंदुओं पर भी विचार करना जरूरी है।

जहां तक महिला वर्ग का प्रश्न है तो शहर विशेष में इसके दो स्पष्ट हिस्से दिखाये देते हैं एक वर्ग में सुविधासंपन्न उच्च मध्यम वर्ग के लोगों और उनसे जुड़ी वीरांगनाएं हैं तो दूसरी ओर मध्यम या निम्न मध्य वर्ग के लोग और उनसे जुड़ी वीरांगनाएं हैं। उच्च मध्यम वर्ग के लोगों में शिक्षा और जागरूकता का प्रतिशत अधिक है अत: इस वर्ग से जुडी वीरांगनाएं आत्मविश्वास से भरी हैं । उन्हें हर तरह की सुविधाएं प्राप्त हैं। उन्हें अपने परिवार और समाज में अपनी बात रखने ,कहने का पूरा अधिकार है । ये वीरांगनाएं अपने प्रति बाकी समाज की सोच से भी भली भांति परिचित हैं और हर परिस्थिति का सामना करने का साहस रखती हैं।

ऐसी ही एक वीरांगना पंखुडी मिश्रा का मानना है कि रानी लक्ष्मीबाई जिस साहस और वीरता के साथ अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए खड़ी हुई उसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं है। घर और अपने राज्य को संभालने में दोनों स्तरो पर उन्होंने अपनी क्षमता साबित की।

पंखुडी का कहना है कि उनके परिवार ने उन्हें इस तरह का माहौल और साहस दिया कि सही बात और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए वह भी किसी भी हद तक जा सकती है। वह मानसिक और शारीरिक रूप से किसी भी कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।सृष्टि अग्रवाल भी इस छोटे शहर में रहते हुए दुनिया भर में हो रही तरक्की और हलचल से पूरी तरह वाकिफ हैं। वह भलीभांति जानती हैं कि शहर में लोगों की लड़कियों और महिला वर्ग को लेकर क्या मानसिकता है लेकिन इस सब के बीच वह खुद को हर तरह से और हर मोर्चे पर साबित करने के विश्वास से लबरेज हैं।

विदूषी टंडन, अनुष्का कुलश्रेष्ठ ,सौम्या हैरिस,अमाया शर्मा,दिया सिंह,पलक गुप्ता,विपाशा कमलवंशी और हर्षा सांधोलकर भी कुछ इसी तरह के विचार रखती हैं। ये वीरांगनाएं न केवल अपने शहर के इतिहास से भलीभांति परिचित हैं बल्कि अपने भविष्य को लेकर भी इनका दृष्टिकोण पूरी तरह से स्पष्ट है।

इन सभी का मानना है कि लड़की होने के नाते परिवार और समाज के नाम पर समझौता करने की स्थितियां काफी बार बनती हैं लेकिन अपने परिवार और सही के साथ हर हाल में खड़े होने की जिद के चलते ऐसी परिस्थितियों से जूझने की वे पूरी क्षमता रखती हैं। परिवार में भी लड़की होने के नाते उन्हें किसी तरह के समझौते नहीं करने पड़े हैं बल्कि उन्हें अच्छी से अच्छी शिक्षा प्राप्त करने और हर क्षेत्र में निपुण बनाने के लिए परिवार के लोगों का साथ उन्हें हमेशा मिला है।


दूसरी ओर इसी शहर में निम्न मध्यम और मध्यम वर्ग की वीरांगनाएं हैं। जिनके अनुभव कुछ अलग ही प्रकार के हैं। सर्वप्रथम तो परिवार में ही इन्हें लड़की होने के नाते दोहरे व्यवहार का सामना करना पड़ता है। उनकी चाहत उनकी सोच और उनकी कुछ नया करने की पहल को लड़की होने के कारण सबसे पहले परिवार के स्तर पर ही दबा दिया जाता है। नीति अहिरवार ,चचंल रानी, गीतिका चौरसिया, मधु सोनी, रजनी सैनी और रूबी जयसवाल का कहना है कि अपने साथ और आसपास हो रहे गलत के खिलाफ आवाज उठाना वह भी चाहती है लेकिन कभी परिवार और कभी समाज के नाम पर उनकी आवाज को दबा दिया जाता है।

हद तो तब हो जाती है जब उनके खिलाफ हुए किसी गलत व्यवहार के लिए भी उन्हें ही दोषी ठहरा दिया जाता है। शासन प्रशासन की ओर से भी ऐसा कोई विभाग या प्रकोष्ठ का गठन नहीं किया गया है जहां अपने खिलाफ होने वाले अपराध की वीरांगनाएं सीधी रिपोर्ट कर पायें और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होने का भरोसा उन्हें दिलाया जाए या कार्रवाई की जाए।

शहर में रानी लक्ष्मीबाई के जन्मदिवस पर उनकी वीरता और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए उनके द्वारा दिखाये गयी हठधर्मिता का हर कोई गुणगान करेगा लेकिन उनकी ही वर्तमान प्रतिनिधियों की आवाज को सुनने का समय किसी के पास नहीं है। आदर्श स्थिति और व्यवहारिक स्थिति का फर्क महिलाओं के संदर्भ में रानी के शहर में भी साफ दिखायी देता है। प्रशासन और लोगों दोनों के ही स्तर पर यह दोहरा व्यवहार स्पष्ट होता है।

किसी वीरांगना की समस्या को परिवार और प्रशासनिक स्तर पर अपनी परेशानी दर्ज कराने की किसी सुरक्षित सेल के न होने का ही परिणाम है कि शहर में कुछ ही दिन पहले सुनन्दा (25) नाम की युवती की उसी के घर के सामने सुबह सवेरे गोली मार दी जाती है।रोहित नाम का एक युवक एकतरफा प्यार में अंधा होकर सुनन्दा की हत्या कर देता है। ऐसे हालात में रानी लक्ष्मीबाई के जन्मदिवस पर शहर भर में दीपांजलि करने का क्या मतलब जब उन्हीं के जन्मस्थल पर बिना किसी अपराध के एक वीरांगना के जीवन को हमेशा के लिए अंधकार में ढकेल दिया जाता है। ऐसे एक नहीं न जाने कितनी घटनाएं होंगी जिनमें से न जाने कितनी घटनाओं का तो पता भी नहीं चलता।

अपने आत्मसम्मान के लिए अपने दुश्मनों को भी नहीं बख्शने वाली रानी लक्ष्मीबाई की जन्मस्थली में कम से कम वर्तमान वीरांगनाओं को सम्मान से जीने और अपनी बात पुरजोर तरीके से सामने रखने की परिस्थितयां तैयार करना न केवल शासन प्रशासन बल्कि लोगों की भी जिम्मेदारी है। अधिकांश वीरांगनाओं के जीवन में रोशनी लाने के बाद ही रानी के जन्मदिवस पर शहर भर में दीपांजलि का महत्व सही मायने हासिल कर पायेगा।

सोनिया नरेन्द्र

चौरसिया

वार्ता

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