(अजय विश्वकर्मा से ) नयी दिल्ली, 15 मई (वार्ता) अगर सवाल किया जाए कि बॉलीवुड का वह कौन सा अभिनेता है, जो संगीतज्ञ, नर्तक, कोरियोग्राफर, तलवारबाज, चित्रकार, जादूगर, अध्यापक, लेखक, बहुभाषाविद् ,व्यवसायी और विमान चालक था तो आप बहुत सोचने पर भी शायद उसका नाम न बता पाएं और अनभिज्ञता जाहिर कर दें। इन सभी खूबियों का मालिक, वह जीनियस कलाकार था- रंजन। आपको बता दें, यह वही अभिनेता रंजन थे, जिन पर फिल्म मदारी का मशूहर गीत--दिल लूटने वाले जादूगर अब मैंने तुझे पहचाना है, फिल्माया गया था। रंजन ने तमिल फिल्मों के साथ ही हिन्दी फिल्मों में भी काम किया था। उनकी कुछ मशहूर हिन्दी फिल्में थीं..चंद्रलेखा, मंगला, मदारी, शिन शिनाकी बुबला बू ,निशान और एक था राजा। रंजन को उनके पिता संगीतज्ञ बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने रंजन को स्कूल भेजने के बजाय सात साल की उम्र में वॉयलिन सीखने के लिए भेज दिया। जब उनके पिता को समझाया गया कि बच्चे को औपचारिक शिक्षा दिलाना जरूरी है तब उन्होंने इस शर्त के साथ उन्हें स्कूल जाने की अनुमति दी कि वह दिन में स्कूल जाएं लेकिन स्कूल से लौटने के बाद आठ घंटे तक वॉयलिन का अभ्यास करें। यह सब करते हुए रात के दो बज जाते थे और रंजन तीन-चार घंटे ही सो पाते थे। रंजन हिन्दुस्तानी और पाश्चात्य संगीत के मर्मज्ञ होने के साथ ही कथकली तथा भरतनाट्यम नृत्य में भी निष्णात थे और तलवारबाजी में पारंगत थे। फिल्मों में उनके तलवारबाजी के दृश्य हैरतअंगेज हुआ करते थे। विभिन्न विषयों में रंजन की निपुणता यहीं तक सीमित नहीं थी। वह सभी भारतीय भाषाएं बोलने, लिखने और पढ़ने में सिद्धहस्त थे। उन्हें चित्रकारी का भी शौक था और फुर्सत के क्षणों में उन्होंने जादू की कला भी सीखी। उन्होंने अंग्रेजी-तमिल नाट्य पत्रिका का सम्पादन किया था। रंजन ने हवाई जहाज उड़ाना भी सीखा। तमिल सिनेमा का सुपर स्टार बनने पर उन्होंने टाइगर माउथ विमान खरीद लिया और अपने शूटिंग लोकेशन पर वह हवाई जहाज उड़ाकर जाते थे। वह पहले अभिनेता थे, जिन्होंने रॉल्स रायस कार खरीदी थी। इसके अलावा वही पहले अभिनेता थे, जिन्होंने फिल्म में विग का इस्तेमाल किया। जेमिनी के एस एस वासन ने अपनी फिल्म चंद्रलेखा में रंजन को तमिल-हिन्दी संस्करण का नायक बनाया। उसी दौरान रंजन ने अपने बाल कटवा दिए, जिससे वासन बहुत नाराज हुए। इस पर रंजन ने उन्हें विग लगाने का सुझाव दिया। चंद्रलेखा का भव्य नगाड़ा डांस दर्शक आज भी नहीं भूले हैं। इसकी परिकल्पना और कोरियोग्राफी रंजन ने ही की थी। रंजन का जन्म 2 मार्च 1918 में हुआ था। वह अपने पिता आर एन सरमा की दस संतानों में चौथी संतान थे। तीन बेटे होने के बाद सरमा दम्पती बेटी चाहता था लेकिन पुत्र का जन्म होने से माहौल गमगीन हो गया। मां ने संभावित बेटी का नाम भी रख दिया था--रमानी । रंजन ने 1938 में भौतिक विज्ञान में स्नातक किया था। उन्हें पढ़ाने का बहुत शौक था। मौका मिलते ही वह यूरोप और अमेरिका के विश्वविद्यालयों में फिल्म के विषय पर लेक्चर देने जाते रहते थे। संगीत पर उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी की फेलोशिप पर शोधकार्य किया। समर स्कूल में उन्होंने संगीत-नृत्य सिखाया और शानदार होटल चलाया। रंजन के फिल्मकार मित्र आचार्य ने उनके आकर्षक व्यक्तित्व को देखकर अपनी फिल्म दिव्य सिंगार में नायक की भूमिका दी, जिसमें हीरोइन वैजयंती माला की मां वसुंधरा थीं। इसके बाद उनकी फिल्म नारद रिलीज हुई, जिसमें कथकली और भरतनाट्यम के कई दृश्य थे। उनकी फिल्म चंद्रलेखा अपने दौर की सबसे महंगी फिल्म थी। उत्तर भारत में प्रदर्शित होने वाली दक्षिण भारत की यह पहली फिल्म थी, जिसे दर्शकों का जबरदस्त रिस्पाॅस मिला। तमिल के बाद इसके हिंदी संस्करण को लेकर रंजन बॉलीवुड आए। रंजन की पत्नी लक्ष्मी मुस्लिम थीं लेकिन उन्होंने पूरा परिवार हिन्दू रीति-रिवाजों के साथ चलाया। रंजन अन्यमनस्क (एबसेंट माइंडेड) कलाकार थे। एक बार का वाकया है कि बम्बई में अपना फ्लैट खरीदने के बाद वह चाबी लेकर शूटिंग पर चले गए। रात में लौटने पर वह घर का पता ही भूल गए और अपने मित्र पटेल के घर के बाहर सड्क पर कार में ही सो गए। फिल्मों को अलविदा कहने के बाद वह अमेरिका चले गए। जाते समय वह कह गए कि वहां एक फिल्म बनाऊंगा और लौटकर देशवासियों को जब फिल्म दिखाऊंगा तो वे हैरान हो जाएंगे लेकिन वह कभी नहीं लौटे। यह दुर्भाग्य की बात है कि अमेरिका में जब उनका निधन हुआ, फिल्मोद्योग ने इस जीनियस कलाकार की कोई खोज खबर तक नहीं ली। अजय शोभना वार्ता