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21वीं सदी में गुलामी के दिनों की याद दिलाता है झांसी का साजेरा गांव

21वीं सदी में गुलामी के दिनों की याद दिलाता है झांसी का साजेरा गांव

   (सोनिया पांडे से )


झांसी 28 मई (वार्ता) उत्तर प्रदेश में झांसी जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां जाने के बाद आपको विश्वास ही नहीं हो पाता कि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं या आधारभूत सुविधाएं किस चिडिया का नाम है या ऐसा कोई शब्द होता भी या नहीं । यह वह गांव है जिसे आजादी के बाद से आज तक न तो पानी मिला, न बिजली , सड़क और न ही पक्के आवास।

जिले के मऊरानीपुर तहसील में स्थित साजेरा वह गांव है जो अपनी बदहाली की दास्तां चीख चीख का सुना रहा है लेकिन न तो किसी दल या नेता और न ही इस क्षेत्र के अधिकारियों तक उनकी आवाज पहुंच पा रही है। कटेरा गांव पंचायत मे आने वाले सिजारा गांव में करीब 500 परिवार रहते हैं जिनके पास रहने के लिए न तो पक्के मकान हैं पूरे गांव में खपरैल की छतों वाले कच्चे घरों में बिना बिजली के यह लोग किसी तरह अपना जीवन यापन कर रहे हैं।

इस गांव में आने के लिए जो रास्ता है उस पर सड़क के नाम पर टूटे हुए पत्थर पडें हैं। यहां खेत तो हैं लेकिन पानी नहीं है जब लोगों को पीने के लिए पानी नहीं है तो खेतों में सिंचाई के लिए कहां से आयेगा। बच्चे पढना तो चाहते हैं लेकिन समझ नहीं पाते कि अंधेरे मे पढाई कैसे की जाए। महिलाएं अंधेरे घरों में धुंए के बीच आज भी चूल्हे पर भोजन बनाने को मजबूर हैं। आजादी के बाद से एक के बाद एक दलों की सरकारें आयीं और गयीं ,वोट के लिए हर दल के नेता यहां पहुंचे तो जरूर पर जीत के बाद विकास तो दूर की बात इंसान को गरिमापूर्ण तरीके से जीवन यापन के लिए आवश्यक आधारभूत जरूरतें भी इस गांव के लोगों तक नहीं पहुंच पायी हैं।

                      गांव में 150 परिवार आदिवासियों के लगभग 150 परिवार अन्य पिछडा वर्ग और 200 परिवार अनुसूचित जाति के लोगों के हैं लेकिन सभी की हालत एक जैसी है उनके पास न बिजली है और न ही पानी। एक ग्रामीण रामरतन ने बताया कि वोट लेने के लिए तो नेता उनके गांव में जरूर आते हैं और वादा करते हैं कि जीतने के बाद गांव के लोगों की सभी आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा किया जायेगा लेकिन एक बाद जीतने के बाद तो वह राजा बन जाते हैं फिर हम बदहालों की सुध लेना तो दूर कोई हमारे बारे में पूछना या बात भी करना नहीं चाहता।

आजादी के करीब 70 साल बाद भी धर्म, जाति, गरीबी, पिछडापन या ऐसे ही जुमलों को लेकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले किसी भी दल की नजर इस गांव की बदहाली पर नहीं पडी। चाहें कांग्रेस हो ,भाजपा, सपा या बसपा कभी न कभी इस क्षेत्र से इन सभी दलों के उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा है लेकिन सभी के लिए 500 परिवारों वाला यह गांव केवल वोट है इससे ज्यादा और कुछ नहीं ।

अगर वास्तव में किसी दल के पास देश में गरीब के आंसू पोंछने या उनकी बदहाली को खुशहाली में बदलने का सच्चा जज्बा होता तो आज गांव के रामरतन को यह कहने की जरूरत नहीं होती कि हमारे जो भी प्रधानमंत्री हैं या मुख्यमंत्री हैं कौन हैं हमें तो नहीं पता लेकिन हम उनसे कहते कि एक बार हमारे गांव को भी देख लो। हमें भी बिजली दे दो ताकि हम और हमारी आने वाली पीढी भी जाने कि इस देश में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री भी कोई होता है।

गांव की ही एक बच्ची शीलू ने बताया कि उसे पढना बहुत अच्छा लगता है लेकिन दिन में ही उसके लिए पढ पाना संभव है और यह समय परिवार के लिए पानी ढोकर लाने में मदद करते और दूसरे काम में निकल जाता है और रात में अंधेरे में पढाई का सवाल ही नहीं। हमारे गांव में अगर बिजली होती तो हम कभी भी पढ पाते। हालात कुछ इस तरह हैं कि गांव में जिससे भी बात करें उसके पास सवालों का पुलिंदा है ऐसे सवाल जिनके जवाब किसी के पास नहीं हैं।


                             चूल्हे पर धुंआ फांकती भोजन पकाती रामरती ने बताया कि उसे कोई जानकारी नहीं है कि किसी योजना में सिलेंडर और गैस चूल्हा मिल रहा है वह तो जब से ब्याह के यहां आयी है तभी से यूं ही धुंए के बीच अंधेरे में खाना बना रही है। गांव का आधुनिक समय ,आधुनिक समाज और आधुनिकता नाम की किसी चीज से दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं है।कुंए सूखे पडें हैं हैंडपंप से पानी उतर चुका है। घर की महिलाएं और बच्चियों का ज्यादातर समय परिवार के लिए पानी दूर दराज के क्षेत्रों से ढोकर लाने में ही बीत जाता है।

सरकार चाहें किसी की भी आए जाए यहां के हालात हमेशा एक जैसे रहते हैं। न पिछली सरकारों में न वर्तमान सरकार में अभी तक किसी ने इस गांव की सुध ली है। प्रधानमंत्री उज्जवला योजना का कोई नामोनिशान नहीं है महिलाएं आज भी अंधेरे घरों में धुंआ फांक रहीं हैं।

यह गांव पिछले लगभग 70 वर्षों से सब कुछ हारा हुआ है लेकिन इस घोर निराशा के बीच अगर कोई एक चीज आज भी जिंदा है तो वह है गांव में लोगों की उम्मीद । लोगों में और बच्चों को उम्मीद है कि एक दिन यह हालात बदलेंगे और उनके गांव में आने के लिए पक्की सड़क होगी , सबको पीने का साफ पानी घर पर ही मिलेगा, बिजली होगी तो परिवार साथ बैठकर टीवी देखेंगे, घरों में धुंआ नहीं महिलाएं भी गैस पर काम करेंगी।

इन हालातों के बीच जरूरत बस एक ही चीज की है कि इन 500परिवारों के लोगों की आंखों में जो यह उम्मीद है उसके खत्म होने से पहले किसी राजनीतिक दल ,प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की नजर इन पर पडे और इस बेजान पडे गांव में एक बार फिर जीवन नयी उम्मीद के साथ आगे बढ जाए।

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