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धरती की रक्षा के लिए जमीन का स्वरूप बचाना जरूरी

धरती की रक्षा के लिए जमीन का स्वरूप बचाना जरूरी

नयी दिल्ली, 07 सितंबर (वार्ता) संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध एजेंसी का कहना है कि जमीन का स्वरूप बचाने के प्रयास करने में निवेश से न केवल हमारी धरती स्वस्थ रहेगी बल्कि यह हमारे समय की सबसे बड़ी समस्याओं को हल करने में शुरुआती बिंदु होगा।

संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण निरोधक संस्था (यूएनसीसीडी) के प्रमुख इब्राहिम थियाव ने शुक्रवार को यहां एक वैश्विक सम्मेलन में कहा, “ लोगों के जीवन में सुधार लाने, जोखिमों से बचाने, जलवायु परिवर्तन को रोकने और अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए हमें जमीन का स्वरूप बचाए रखने में निवेश करना है।”

श्री थियाव ने कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज के 14वें सत्र को संबोधित करते हुए कहा,“ हम जो भाेजन खाते हैं उसका 99.7 प्रतिशत हिस्सा जमीन उपलब्ध करा रही है और यह हमें जल भी प्रदान कर रही है। पानी की गुणवत्ता जमीन और पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़ी है लेकिन जमीन जैसा कीमती संसाधन अब खतरे में हैं।”

यह सम्मेलन 13 सितंबर तक चलेगा और इसमें 196 देशों के प्रतिनिधि, गैर सरकारी संगठन, वैज्ञानिक, मंत्री और विभिन्न समुदायोें के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। इसका मकसद जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने पर सहमति बनाना है।

उन्होंने कहा कि व्यापक पैमाने पर सूखे के बाद 25 देशों ने आपातकालीन प्रयासों की आवश्यकता जताई है और औसतन 70 देश प्रति वर्ष सूखे से प्रभावित हो रहे हैं और इसका खामियाजा सबसे गरीब समुदायों को भुगतना पड़ रहा है जिसकी वजह से संसाधनों के रिक्त होने से इन्हें मानवीय सहायता पर निर्भर रहना पड़ता है।

उन्होंने कहा कि जमीन की गुणवत्ता का संबंध शांति और सुरक्षा से जुड़ा है और यही कारक समुदायों को जमीन तथा पानी तक पहुंच बनाने के लिए प्रतिस्पर्धी बनाता है और कईं मामलों में यह संघर्ष में भी तब्दील हो जाता है। जिस तरह से जमीन के मरुस्थलीकरण की प्रकिया में इजाफा हो रहा है, उससे लोगों के प्रवास में बढ़ोत्तरी हुई है और उर्वर जमीन पर दबाव बढ़ रहा है। इससे खाद्यान असुरक्षा और वित्तीय दबाव बढ़ रहे हैं। अनुमान है कि मरुस्थलीकरण से ही वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद को 10 से 17 प्रतिशत का नुकसान हो रहा है।

संगठन का कहना है कि जमीन की गुणवत्ता में आ रही कमी से जैव विविधता को नुकसान हाे रहा है और इससे जलवायु परिवर्तन का असर सामने आ रहा है जिससे हमारा पर्यावरण प्रभावित हुआ है और 2050 तक इससे 70 करोड़ लोगों को प्रवास की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

इस सम्मेलन में 30 महत्वपूर्ण फैसलों पर सहमत होने का अनुमान है ताकि 2018 -2030 के सम्मेलन के लक्ष्यों को हासिल करना सुनिश्चित किया जा सके।

जितेन्द्र.श्रवण

वार्ता

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