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रूसी वैज्ञानिकों ने समग्र तरल ईंधन के साथ जलाकर कचरे के निपटारे की तकनीक विकसित की

रूसी वैज्ञानिकों ने समग्र तरल ईंधन के साथ जलाकर कचरे के निपटारे की तकनीक विकसित की

मॉस्को, 07 फरवरी (वार्ता) रूसी शोधकर्ताओं ने नगर निकायों से निकलने वाले ठोस कचरे म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट (एमएसडब्ल्यू) को समग्र तरल ईंधन के साथ जलाकर इसके निपटारे की तकनीक विकसित की है जो आर्थिक तौर पर वहनीय है और पर्यावरण अनुकूल है।

टामस्क पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी (टीपीयू) के शोधकर्ताओं के इस शोध के नतीजे जर्नल ऑफ क्लीनर प्रोडक्शन में प्रकाशित किये गये हैं।

एक अनुमान के अनुसार रूस में सालाना पांच करोड़ टन ठोस कचरा निकलता है जिसका निपटारा करना नगर निकायों के लिए एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। माना जा रहा है कि इस तरह के कचरे को जलाकर बिजली तथा ऊष्मा का सृजन किया जा सकता है।

टीपीयू हाई एनर्जी फिजिक्स शोध स्कूल के एसोसिएट प्रोफेसर दमित्री गलूस्खोव ने बताया कि थर्मल पावर प्लांट के समग्र ठोस ईंधन के साथ इस कचरे को मिलाकर जलाने से इसका निपटारा बहुत आसानी से हो सकता है और इससे इस कचरे के निपटारे की प्रकिया को विकसित करने का आधार खोजा जा सकता है। ऐसा करने से बिजली उत्पादन के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले कोयले की खपत में कमी आ सकेगी।

उन्होंने बताया कि शोध दल ने ठोस कचरे में पाये जाने वाले बारीक कणों (लकड़ी, रबर, प्लास्टिक और कार्डबोर्ड) पर शोध किया है और फिर इनकी समग्र तरल ईंधन की ज्वलन तथा दहन प्रकियाओं की निर्भरता तथा अन्य गुणों का अध्ययन किया है।

उन्होंने बताया कि ठोस कचरा युक्त ईंधन में नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा सल्फर आक्साइड की मात्रा काफी कम देखी गयी है। इस शोध से ठोस कचरे के निपटारे में काफी मदद मिलेगी और यह न केवल आर्थिक रूप से वहनीय बल्कि पर्यावरण अनुकूल भी होगी। इस तकनीक का इस्तेमाल अगले 10 से 15 वर्षों के बीच कोयला आधारित संयंत्रों के लिए भी किया सकेगा क्योंकि अभी तक ठोस कचरे के अंबार हर जगह देखे जा सकते हैं। इस तरह के कचरे के निपटारे के लिए अभी तक पुनर्चक्रण और पुन: इस्तेमाल पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है

इसी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 2017 में औद्योगिक कचरे पर आधारित समग्र तरल ईंधन को विकसित किया है और इसमें निम्न श्रेणी का कोयला, पानी और ज्वलनीय तरल पदार्थ का इस्तेमाल किया गया था जिनका दहन तापमान तापीय कोयले के बराबर ही था। इससे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन काफी कम होता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह के ईंधन के व्यापक तौर पर इस्तेमाल से वैश्विक पर्यावरण और ऊर्जा समस्याओं से निपटने में काफी मदद मिल सकती है।

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