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साई को कुश्ती दिशानिर्देशों पर पुनर्विचार करना चाहिए: कृपाशंकर

साई को कुश्ती दिशानिर्देशों पर पुनर्विचार करना चाहिए: कृपाशंकर

इंदौर, 18 जून (वार्ता) अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित पूर्व पहलवान और मौजूदा कोच कृपाशंकर बिश्नोई ने कहा है कि अगले साल होने वाले टोक्यो ओलंपिक के मद्देनजर भारतीय खिलाड़ियों ने सावधानी के साथ अपने प्रशिक्षण को फिर से शुरू करने की राह पकड़ ली हैं लेकिन भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) द्वारा सुझाए गए उपाय कुश्ती के लिए व्यावहारिक नहीं हैं।

कृपाशंकर ने कहा कि यदि भारतीय कुश्ती महासंघ से सलाह ली जाती तो साई बेहतर तरीके से दिशा निर्देश तय कर पाती। उन्होंने कहा कि साई ने शारीरिक संपर्कता वाले खेलों के लिए कुछ संपर्क दिशा-निर्देश जारी किए हैं जिसमें डमी का उपयोग एक प्राथमिकता है, ताकि कोरोना काल मे मानव संपर्क को कम से कम रखा जा सके।” कृपाशंकर ने कहा, “निर्देश प्रभावहीन नहीं है, क्योंकि डमी का उपयोग केवल गर्दन या कमर पर प्रतिद्वंद्वी को गिराने जैसी खतरनाक तकनीकों का अभ्यास करने के लिए ही किया जाता है। डमी पहलवानों को अपनी ताकत का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देती, क्योंकि यह गैर-जीवित प्रतिद्वंद्वी है जो किसी भी विपरीत शक्ति का विरोध या रोक-थाम नहीं करती।”

उन्होंने कहा, “ओलंपिक की तैयारी कर रहे विख्यात सीनियर पहलवानों के लिए शक्ति प्रशिक्षण महत्वपूर्ण है। सीनियर पहलवान डमी का उपयोग नहीं करते हैं और छोटे बच्चे कुश्ती के शुरुआती दिनों में इसका इस्तेमाल करते हैं ताकि उन्हें चोट न लगे। ग्रीको-रोमन पहलवान, हालांकि अपनी चपलता को बढ़ाने के लिए डमी का उपयोग कभी-कभी करते हैं।”

जाने-माने कोच ने कहा, “लॉकडाउन के बाद अभ्यास शुरू करने के लिए महासंघ, साई और पहलवानों के बीच एक आपसी समझौता होना चाहिए। पहलवानों को शिविर छोड़ने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। यदि कोई नियम का उल्लंघन करता है, तो उसे अवश्य छोड़ देना चाहिए। शिविरों को साई केंद्रों पर आयोजित किया जाना चाहिए और शिविर के समय में कम से कम दो व्यक्तियों को क्रमशः पहलवानों और कर्मचारियों के लिए आवश्यक सामान लाने के लिए चिन्हित किया जाना चाहिए।”


कृपाशंकर ने कहा कि पहलवानों को दैनिक स्वास्थ्य निरीक्षण के बाद ही मैट पर अभ्यास करने की अनुमति दी जानी चाहिए। प्रत्येक पहलवान को दैनिक अभ्यास के लिए अपने साथी में से एक का चयन करना चाहिए और वे ही अपने प्रशिक्षण अवधि के दौरान अस्थायी रूम पार्टनर भी रहेंगे। पहलवानों को एक-दूसरे के कमरे में प्रवेश करने से भी रोक दिया जाना चाहिए। कोच के हाथों में दस्ताने होने चाहिए।

उन्होंने कहा कि कोच, सपोर्ट स्टाफ, ग्राउंडमैन, किचन वर्कर के लिए मास्क अनिवार्य होना चाहिए। पहलवानों को अपनी प्रशिक्षण गतिविधि के दौरान मास्क नहीं पहनना चाहिए ताकि उनकी सांस लेने की क्षमता बाधित न हो। ऑक्सीजन की आपूर्ति की कमी न केवल पहलवानों के प्रदर्शन को प्रभावित करती है बल्कि रिकवरी में बाधा उत्पन्न करती है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि शिलारु, शिमला और कोलोराडो स्प्रिंग्स (अमेरिका) जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में खिलाड़ियों को समय से पहले थकान होती है। प्रशिक्षण के दौरान एक पहलवान को रिकवरी के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। ऐसी परिस्थिति में एक मास्क हानिकारक है । एहतियात के तौर पर शिविर को लगभग सर्वसम्पन्न एवं सर्वसुविधायुक्त जेल में बदलना होगा।

कोच ने कहा कि पहलवानों को केवल व्यक्तिगत तौलिये का उपयोग करना चाहिए। एक मैट पर चार से अधिक अभ्यास मुकाबलों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। सेनेटाइजर उपयोग में अच्छी तरह से होना चाहिए। सभी उचित कार्रवाई के बाद ही व्यावसायिक प्रशिक्षण शुरू किया जाना चाहिए ताकि भारतीय पहलवानों को आगामी ओलंपिक क्वालीफाइंग प्रतियोगिता में अधिकतम कोटा मिल सके।

कृपाशंकर ने साथ ही कहा कि शिविर के दौरान, कोच सहित किसी भी कर्मचारी की उम्र 55 से अधिक नहीं होनी चाहिए क्योंकि समय के साथ वृद्ध लोगों में प्रतिरक्षा बिगड़ जाती है और उनकी कोरोना वायरस के चपेट में आने की अधिक संभावना होती है।

राज

वार्ता

 

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