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संगम तीरे गुलजार माघ मेले की रौनक हो रही कम

संगम तीरे गुलजार माघ मेले की रौनक हो रही कम

प्रयागराज,18 फरवरी (वार्ता) अमृत से सिंचित और ब्रह्मदेव के यज्ञ से पवित्र पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के संगम तट पर लगभग दो महीने तक गुलजार माघ मेले की रौनक बसंत पंचमी स्नान के बाद धीरे-धीरे कम होने लगी है ।

संगम की विस्तीर्ण रेती पर 14 जनवरी मकर संक्रांति से 11 मार्च महाशिवरात्रि 57 दिनों तक बसे तंबुओं की अस्थायी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक नगरी से बसंत पंचमी स्नान के बाद संत-महात्मा, कल्पवासी और संस्थाओं के धीरे धीरे डेरा समेटने से गुलजार मेला की रौनक धीरे धीरे कम हो रही है । संत अपने डेरा समेट कर हरिद्वार में 11 मार्च महाशिवरात्रि से लगने वाले कुंभ की तैयारी में जुट गये हैं । झूंसी क्षेत्र में जहां कभी श्रद्धालुओं के शिविर आबाद थे, अब यदा-कदा पशु चरते नजर आ रहे हैं।

माघ मेला क्षेत्र में पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक कल्पवास करने का विधान बताया गया है। कुछ कल्पवासी मकर संक्रांति से माघ शुक्ल की संक्रांति तक कल्पवास करते हैं जबकि 90 से 95 फीसदी कल्पवासी पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं। मकर संक्रांति से माघ शुक्ल की संक्रांति तक कल्पवास करने वालो में मैथिल के साथ बिहार और बंगाल के श्रद्धालुओं के साथ कुछ साधु संत शामिल होते हैं।

कल्पवासी माघी पूर्णिमा तक मेला भैतिक सुख का त्यागकर एक माह तक तंबुओं के अस्थायी आध्यात्मिक नगरी में दोनो समय संगम स्नान कर भगवान का भजन-पूजन के साथ संयम,श्रद्धा एवं कायाशोधन का कल्पवास करते हैं। अधिकतर संत भी माघी पूर्णिमा तक रहते हैं। लेकिन मकर संक्रांति से मेला क्षेत्र में आए संत-महात्मा एवं कल्पवासी वसंत पंचमी स्नान के बाद एक माह का कल्पवास पूरा होने के बाद रवाना होने लगते है। बसंत पंचमी स्नान के बाद माघी पूर्णिमा तक आधे से अधिक मेला समाप्त हो जाता है।

माघ मेला के कुल छह स्नान पर्व में से मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी का स्नान पर्व समाप्त हो चुका है। अब केवल दो स्नान 27 फरवरी को माघी पूर्णिमा और 11 मार्च को महाशिवरात्रि का स्नान पर्व शेष रह जाता है। झूंसी क्षेत्र में जहां पहले कई स्थानों पर श्रद्धालुओं के शिविर आबाद थे, अब जानवर घास चरते नजर आने लगे है।

वैदिक शोध संस्थान एवं कर्मकाण्ड प्रशिक्षण केन्द्र के पूर्व आचार्य डा आत्माराम गौतम ने कहा कि तीर्थराज प्रयाग में माघ महीने में संगम स्नान का पुराणों में बड़ा महात्म बताया गया है। ब्रह्मपुराण के अनुसार संगम स्नान का फल अश्वमेघ यज्ञ के समान बताया गया है। अग्निपुराण के अनुसार प्रयाग में प्रतिदिन स्नान का फल उतना ही है जितना प्रतिदिन करोडों गाय दान करने से मिलता है। मत्स्यपुराण में कहा गया है कि दस हजार या उससे भी अधिक तीर्थों की यात्रा का जो पुण्य मिलता है,उतना ही माघ के महीने में संगम स्नान से मिलता है। पद्मपुराण में माघ मास में प्रयाग का दर्शन दुर्लभ कहा गया है और यदि यहां स्नान किया जाए तब वह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

दिनेश विनोद

वार्ता

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