झांसी 04 जून (वार्ता) विश्व पर्यावरण दिवस पर ज्यादातर लोग पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दे पर गंभीर बातें करते हुए कुछ किए जाने को लेकर माथापच्ची में लगे रहते हैं लेकिन हकीकत में कुछ नहीं कर पातें, वहीं कुछ लोग ऐसे हाेते हैं जो बिना किसी शोर शराबे से शांतिपूर्वक इस काम में लगे रहते हैं और दूसरों को भी प्रेरित करते हैं । ऐसा ही एक व्यक्तित्व हैं उत्तर प्रदेश की वीरांगना नगरी झांसी की “ नीलम सारंगी” जो बेकार सामान में अपनी कला से न केवल नवप्राण फूंकती है बल्कि बताती हैं कि प्रकृति को सहेजने के लिए न तो महंगे संसाधनों की जरूरत है और न ही बड़ी पूंजी की , अगर हम ठान लें तो बेकार सामान से भी इस काम को बखूबी अंजाम दे सकते हैं।
नीलम यूं तो स्नातक हैं और चित्रकला के क्षेत्र में उनकी विशेष योग्यता के साथ 30 से 35 साल का अनुभव है लेकिन पिछले पांच वर्षों से वह लगातार ऐसी चीजों जिन्हें बेकार समझकर घर से बाहर फेंक दिया जाता है उन्हें न केवल सहेजती हैं बल्कि अपनी कला से उनके रूप रंग में एक चमत्कारिक परिवर्तन करते हुए इनसे पर्यावरण संरक्षण का काम करती हैं। उनका कहना है कि अगर सभी लोग केवल अपने अपने घर के पर्यावरण को संभालने का काम करें तो इस छोटे छोटे सहयोग से पूरी धरती के पर्यावरण में बेहद सकारात्मक परिवर्तन लाये जा सकते हैं।
उनके अनुसार पर्यावरण संरक्षा का यह काम न तो आपके लिए बहुत महंगा होगा और न ही आपको कोई बडे संसाधन इसके लिए जुटाने हैं हां अगर कुछ देना है तो अपना समय । यह समय, ही लोगों के पास आज नहीं है लेकिन प्रकृति को जितना नुकसान हमने पहुंचाया है और जो उसका क्रोध हमें आज कोविड -19 के रूप में झेलना पड रहा है । अगर आगे भी ऐसी परेशानियों से हमें बचना है तो पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाना ही होगा। घर से ही अगर हम छोटे छोटे लेकिन निरंतर प्रयास करें तो न केवल अपने आस पास के पर्यावरण को बदल पायेंगे बल्कि दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित कर सकेंगे , साथ ही एक ऐसी शुरूआत करेंगे कि जिससे प्रकृति के लिए सभी मिल कर अपनी जिम्मेदारी का निवर्हन कर पायें।
नीलम के लिए शौकिया तौर पर बेकार समान को सजाने की शुरू की गयी प्रक्रिया आज पर्यावरण संरक्षण की एक गंभीर मुहिम में बदल चुकी है। उन्होंने इस काम की शुरूआत घर से ही की क्योंकि उनका मानना है कि दूसरों को कुछ करने के लिए कहने से पहले खुद अपने घर से उस काम की शुरूआत करके दिखाना जरूरी होता है। वह घर पर ही बेकार बोतलों, टब, गिलासों, पुराने जूते,केतली, टायरों ,लकडी के सामान आदि का इस्तेमाल करती हैं साथ ही फूलों के साथ औषधीय पौधों ,सब्जी,सुगंधित और सजावटी पौधों को मदद से घर का ही पर्यावरण बदलने का काम करतीं हैं। वह घर में रसोई के बचे हुए खाद्य पदार्थ , छिलके आदि के साथ अनुपयोगी वस्तुओं का प्रयोग पर्यावरण के हित में करती हैं। कृत्रित रसायनों और चीजों से वह दूर रहती हैं और हर चीज को प्राकृतिक तरीके से ही इस्तेमाल करती हैं ।
वह पेड़ पौधों के लिए जैविक खाद और जैविक दवाइयों को खुद ही बनाकर इस्तेमाल करतीं हैं। पेड़-पौधों में होने वाली बीमारियों का उपचार भी वह खुद ही करतीं हैं। उनका मानना है कि विभिन्न प्रकार के पौधों के लिए मिट्टी भी भिन्न भिन्न प्रकार की इस्तेमाल की जाती है और इसके लिए वह मिट्टी भी घर पर ही तैयार करतीं हैं। वह कहती है के पेड़ पौधों की देखभाल अपने बच्चों की तरह करें फिर देखें आप उनके लिए कितनी उत्कृष्टता से काम करते हैं। हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि इस काम को करके हम प्रकृति को कुछ दे नहीं रहें हैं ,हम उस पर कोई एहसान नहीं कर रहे हैं। हमेशा याद रखें प्रकृति अगर आप से कुछ लेती है तो बदले मे आपको बहुत कुछ देती है बस उसे सही दृष्टि से देखने की जरूरत है।
वह तमाम स्कूल,कॉलेज, महाविद्यालयों, सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के कार्यक्रमों में हिस्सा लेकन बेकार की चीजों का इस्तेमाल पर्यावरण के हित में करने के गुरू लोगों को सिखातीं हैं। अपने इस हुनर का इस्तेमाल कर आज वह न केवल अपने घर को संवार रहीं हैं बल्कि हाल ही में झांसी नगर निगम के बेकार पड़े एक पार्क का उन्हाेंने प्राकृतिक तरीके से और बेकार सामान की मदद से आमूल चूल परिवर्तन किया। यह पार्क बेकार सामान से तैयार किये जाने वाला देश का पहला पार्क है।
नीलम का यह काम लोगों को यह समझाने का एक प्रयास है कि पर्यावरण को सहेजना बहुत जरूरी है और अगर हम चाहें तो बेहद सीमित संसाधनों में भी इस काम को अंजाम दे सकते हैं। अगर हम थोड़ा समय देकर यह काम करें तो इससे पर्यावरण सरंक्षण के साथ हम अपने आस पास के माहौल में बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
सोनिया
वार्ता