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कान्हा की नगरी में रामभक्ति की सरयू प्रवाहित

कान्हा की नगरी में रामभक्ति की सरयू प्रवाहित

मथुरा, 19 जनवरी (वार्ता) गोवर्धन की तलहटी में आयोजित रामानन्दाचार्य जयन्ती महोत्सव में कान्हा की नगरी में राम भक्ति की सरयू प्रवाहित हो रही है।

     भव्य रामलीला प्रदर्शन से लेकर, रामचरित मानस नवान्ह का सुमधुर संगीतमय पाठ हनुमान चालीसा, गीत गोविन्द एवं नित्य नए सांस्कृतिक कार्यक्रमों से गिरिराज जी की बडी परिक्रमा में स्थित रामानन्द आश्रम धार्मिक अनुष्ठान का केन्द्र बन गया है। कार्यक्रमों की मौलिकता के कारण इन कार्यक्रमों को देखने के लिए हजारों तीर्थयात्री नित्य रामानन्द आश्रम की ओर चुम्बक की तरह खिंचे चले आ रहे हैं।

      इस विराट आयोजन केा गति देने वाले पंडित राकेश चतुर्वेदी ने बताया कि इस बार यह जयन्ती रामानन्द सम्प्रदाय के गोवर्धन पीठाधीश्वर बृह्मलीन संत कृष्णदास कंचन महाराज की प्रथम पुण्य स्मृति में आयोजित किया जा रहा है। जिस प्रकार जगदगुरू स्वामी रामानन्दाचार्य को मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम का साक्षात अवतार कहा जाता है उसी प्रकार जगद्गुरू कंचनदास महराज एक विलक्षण संत थे। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे कलयुग में भी मनुष्य को उसके आराध्यदेव के दर्शन करा देते थे।

     उनका जीवन जहां समाज के लिए समर्पित था वहीं महान संत होने के बावजूद वे अपने को एक साधारण व्यक्ति ही समझते थे। जिस भाव से यह महान संत इस आश्रम से जुड़ा हुआ था और हर वर्ष रामानन्दाचार्य जयन्ती का आयोजन अपनी देखरेख में आयोजित कराता था उसी भाव  से वर्तमान धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।इस महान संत ने बड़ी परिक्रमा मार्ग गोवर्धन पर कंचनधाम की स्थापना की जो ब्रज की विभूति शंकरलाल चतुर्वेदी के सानिध्य मे संत के अनुयायियों के लिए तीर्थस्थल बन गया है।इस संत ने एक दूसरा तीर्थस्थल राजस्थान में कोटा बूंदी के निकट खड़खड़ में भी बनाया जो अपनी आध्यात्मिक शुचिता के कारण रेगिस्तान में नखलिस्तान बन गया है।


कार्यक्रम के संयोजक शंकरलाल चतुर्वेदी ने बताया कि इस कार्यक्रम के मुख्य यजमान श्री गिर्राज जी एवं श्री हनुमान जी महाराज है। जगदगुरू स्वामी रामानन्दाचार्य ने मुसलमानों के अत्याचार से हिंदुओं को उस समय मुक्ति दिलाई थी जब तैमूरलंग का शासन था। उस समय विधर्मियों का ऐसा आतंक था कि बहू बेटियों की इज्जत बचाकर रखना एक चुनौती थी। जगदगुरू रामानन्दाचार्य ने उस समय के मुसलमानों एवं उनके शासक तैमूरलंग को यह अनुभव करा दिया था कि उनके तप में किसी भी अत्याचार को रोकने की बहुत बड़ी शक्ति है।

        चतुर्वेदी ने बताया कि स्वामी रामानन्दाचार्य का  जन्म प्रयागराज में हुआ था।उनके पिता पुण्य सदन एवं माँ सुशीला देवी तथा गुरु राघवाचार्य  थे । बगदाद से आया तैमूरलंग एक ऐसा लुटेरा हुआ जिसने हिंदू धर्म संस्कृति हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों को भी नष्ट कर दिया तथा गौ ब्राह्मणों को भी बहुत ही कष्ट दिया । उन्होंने अपने द्वादश शिष्य बनाये जिनमें रैदास, कबीरदास, धन्नजात, पदमावती, पीपा जी महाराज, सुरसुरानन्द जी महाराज आदि प्रमुख थे।

        तैमूरलंग का अत्याचार इतना अधिक था कि किसी भी हिंदू के विवाह में अगवानी अगर मस्जिद के पास से निकलनी होती थी तो दूल्हे को मस्जिद के पास पैदल चलना होता था। जगदगुरू रामानन्दाचार्य ने इससे निपटने के लिए अपने दक्षिणावर्ती शंख को इस प्रकार बजाया कि उसके बाद मुसलमानों को नमाज अदा करना मुश्किल हो गया। जो भी मुसलमान अजान की कोशिश करता उसकी ही जबान में लकवा मार जाता। इससे परेशान होकर सभी मुल्ला प्रतिनिधि कबीर दास के पास काशी में गए।

कबीरदास ने  उन्हें फटकारा और कहा कि  वे दिन में रोजा रहते हैं और रात में गोमांस खाते हैं ऐसे में अल्लाताला उनकी नमाज को कैसे स्वीकार करेगा। उन्होंने कहा कि वे अपने बादशाह के पास जांय और उनसे कहें  कि वे स्वामी जी के पास आएं और उनसे आशीर्वाद देने का अनुरोध करें। इसके बाद  सभी मुल्ला अपने राजा के पास गए । तैमूरलंग पहले तो तैयार नही हुआ किंतु बाद में स्वामी जी का चमत्कार देखने के लिए आ गया।

         स्वामी जगदगुरू रामानन्दाचार्य ने जैसे ही शंख बजाया ,बादशाह उसी जगह मूर्छित हो गया। मूर्छा में पीर पैंगम्बर ने उनसे कहा कि अपने गुनाहों के लिए वे स्वामी से माफी मांगे। होश में आने पर तैमूरलंग ने स्वामी से माफी मांगी और यह कहा कि अब वह हिंदुओं पर अत्याचार नही करेगा। इसके बाद शंख बजाकर तैमूरलंग को उसके अपराध के लिए क्षमा कर दिया और  मुसलमानों को इसके बाद  नमाज अदा करने में कोई परेशानी नही हुई।

        कार्यक्रम के संयोजक सत्यम कंचन चतुर्वेदी ने बताया कि 14 जनवरी से प्रारंभ हुए इस कार्यक्रम में प्रातः साढ़े सात बजे से मध्यान्ह साढ़े 12 बजे तक संगीतमय श्रीरामचरितमानस का नवान्ह पाठ हो रहा है। इसके बाद व्यास पीठ पर विराजमान उपेन्द्र नाथ शास्त्री के निर्देशन में  नित्य भव्य रामलीला का प्रदर्शन अपरान्ह दो बजे से पांच बजे तक  हो रहा है।रामलीला में उन्ही प्रसंगों को विशेष रूप से लिया जा रहा है जो समाज को एक सही दिशा दे सकते हैं।

       उन्होंने बताया कि नित्य सायं 6 बजे से 8 बजे तक स्वामी पवन देव व्यास के निर्देशन में हनुमान चालीसा , गीत गोविन्द के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।उनका कहना था कि कार्यक्रम समापन के एक दिन पूर्व यानी 23 जनवरी को प्रातः 9 बजे से मध्यान्ह 12 बजे तक सामूहिक सुन्दरकांड का पाठ होगा जिसमें तीर्थयात्री भी भाग ले सकते हैं। 24 जनवरी को यज्ञ के उपरान्त सामूहिक प्रसाद उत्सव होगा।सुबह से रात तक होनेवाले धार्मिक आयोजनो के कारण तीर्थयात्री आयोजन स्थल की ओर चुम्बक की तरह खिंचे चले आ रहे हैं।

सं प्रदीप

वार्ता
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