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भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर : उस्तरे से उस्ताद तक का सफर

भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर : उस्तरे से उस्ताद तक का सफर

पुण्यतिथि 10 जुलाई के अवसर पर

पटना 10 जुलाई (वार्ता) अपने नाटकों और गीत-नृत्यों के माध्यम से भोजपुरी समाज की समस्याओं और कुरीतियों को सहज तरीके से नाच के मंच पर प्रस्तुत करने वाले भोजपुरी के ‘शेक्सपियर’ महान साहित्यकार भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी भाषा को लोकप्रिय बनाकर पूरी दुनिया में उसका प्रसार किया।

बिहार के छपरा (सारण) जिले के एक छोटे से गांव कुतुबपुर दियारा में 18 दिसम्बर 1887 को एक नाई परिवार में जन्में भिखारी ठाकुर के पिता दलसिंगर ठाकुर और मां शिवकली देवी सहित पूरा परिवार अपने जातिगत पेशा जैसे कि उस्तरे से हजामत बनाना, चिट्ठी नेवतना, शादी-विवाह, जन्म-श्राद्ध और अन्य अनुष्ठानों तथा संस्कारों के कार्य किया करते थे। परिवार में दूर तक गीत, संगीत, नृत्य, नाटक का कोई माहौल नहीं था।

भिखारी ठाकुर जब महज नौ वर्ष के थे तब उन्होंने पढ़ने के लिए स्कूल जाना शुरू किया। एक वर्ष तक स्कूल जाने के बाद भी उन्हें एक भी अक्षर का ज्ञान नहीं हुआ तब वह अपनी गाय को चराने का काम करने लगे। धीरे-धीरे अपने परिवार के जातिगत पेशे के अंतर्गत भिखारी हजामत बनाने का काम भी करने लगे। इस दौरान उन्हें दोबारा पढ़ने-लिखने की इच्छा हुई। गांव के ही एक लड़के भगवान साह ने भिखार को पढ़ाया। बाद में रोज़ी-रोटी की तलाश में वह खड़गपुर (बंगाल) चले गए। वहां से फिर मेदनीपुर (बंगाल) गए, जहां उन्होंने रामलीला देखी। कुछ समय बाद वह बंगाल से वापस अपने गांव आ गए और गीत-कविता सुनने लगे। सुन कर लोगों से उसका अर्थ पूछकर समझने लगे और धीरे-धीरे गीत-कविता, दोहा-छंद लिखना शुरू कर दिया।

भिखारी ठाकुर ने वर्ष 1917 में अपने कुछ मित्रों के साथ एक मंडली बनायी और रामलीला, भजन और कीर्तन करने लगे। हालांकि उनके अंदर अभी भी अपने गांव से दूर रह रहे उन मजदूरों के लिए दर्द भरा पड़ा था, जिसे वह अपने नाटकों में मंचन कर जीवंत करने लगे। उनके नाटकों में समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों की पीड़ा और दुर्दशा साफ तौर पर झलकती है। उन्होंने अपने नाटकों के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों पर गहरा प्रहार किया। भोजपुरी भाषा में बिदेसिया, गबरघिचोर, बेटी-बेचवा, भाई-बिरोध, पिया निसइल, गंगा-स्नान, नाई-बाहर, नकल भांड और नेटुआ सहित कई नाटक, सामाजिक-धार्मिक प्रसंग गाथा और गीतों की रचना की है।

प्रेम सूरज

जारी वार्ता

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