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लाकडाउन के दौरान दिनोदिन निर्मल हो रही है श्यामल यमुना

लाकडाउन के दौरान दिनोदिन निर्मल हो रही है श्यामल यमुना

मथुरा, 12 अप्रैल (वार्ता) पतित पावनी श्याम वर्ण यमुना की निर्मलता को वापस लाने के लिए जो काम न्यायपालिका, सरकार और स्वयंसेवी संस्थायें न कर सकी, उस काज को दुनिया के लिये काल बन कर विचरण कर रहे अनचाहे सूक्ष्म विषाणु ‘कोरोना’ के डर ने कर दिखाया है। इसका प्रमाण है कि नंदगोपाल की नगरी मथुरा के तटों पर कलकल बहती यमुना का जल पांच दशकों की तुलना में लाकडाउन के दौरान सबसे निर्मल पाया गया है।

जिला प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी अरविन्द कुमार यमुना की निर्मलता का कारण मथुरा आनेवाले तीर्थयात्रियों की संख्या में कमी मानते हैं। उनका कहना है कि हर साल यहां आने वाले सात आठ करोड़ तीर्थयात्री न सिर्फ यमुना में स्नान करते हैं बल्कि उसमें फूलमाला डाल कर नदी को प्रदूषित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते है। इसके अलावा स्थानीय लोग और प्रशासन भी नदी को प्रदूषित करने में बराबर के जिम्मेदार हैं। वर्तमान में र्तीर्थयात्रियों का आवागमन बन्द है, इसलिए यमुना दिनाेदिन निर्मल हो रही है।

अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के अध्यक्ष महेश पाठक हालांकि जिला प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी की दलील से पूरी तरह से असहमत हैं। उनका कहना है कि यमुना तीर्थयात्रियों के स्नान से कभी प्रदूषित नही होती। यदि ऐसा होता तो प्रयाग कुुंभ में करोड़ों तीर्थयात्रियों के स्नान से गंगा प्रदूषित हो जाती लेकिन कुंभ के दौरान जिस प्रकार से गंगा निर्मल बनी रही वह इस बात का सबूत है कि तीर्थयात्रियों के स्नान से कोई नदी प्रदूषित नही होती। नदी तभी प्रदूषित होती है जब नालों का गंदा जल और कारखानों का कचरा उसमें सीधे गिरता है।

यमुना की निर्मलता बनाए रखने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 1998 में जनहित याचिका दायर करने वाले हिंदूवादी नेता गोपेश्वरनाथ चतुर्वेदी का कहना है कि चूंकि लाक डाउन के कारण दिल्ली, हरियाणा और मथुरा के कारखाने बंद हैं इसलिए उनका रसायनिक कचरा यमुना में जाना बंद हो गया है और यमुना निर्मलता के अपने पुराने गौरव को प्राप्त कर गई है।


श्री चर्तुवेदी ने कहा कि हकीकत यह है कि अदालती आदेशों की अवमानना के डर से कारखानों के मालिक अपने कारखाने में जल शोधन संयंत्र लगा तो लेते हैं लेकिन अधिकारियों की शह पर उसे चलाते नही हैं और उस पर आने वाले खर्च को बचा लेते हैं जिसके कारण कारखानों का रसायनयुक्त कचरा सीधे यमुना में गिरकर यमुना जल को प्रदूषित कर देता है। यदि कारखानों का कचरा यमुना में न गिरे तो जिस प्रकार से 101 क्यूसेक स्वच्छ जल नित्य ओखला से यमुना में छोड़ा जाता है तथा जिस प्रकार से 150 क्यूसेक हरनौल स्केप से रोज यमुना में डाला जाता है उससे यमुना की निर्मलता बनी रहेगी।

यमुना की निर्मलता कुछ इसी प्रकार की तब बन गई थी जब गोपेेश्वर नाथ चतुर्वेदी की जनहित याचिका 1998 पर तत्कालीन जस्टिस गिरधर मालवीय एवं जस्टिस केडी साही की खण्डपीठ ने आदेश पारित ही नही किया था बल्कि जस्टिस मालवीय ने आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए पूर्व महाअधिवक्ता एडी गिरि को भी जिम्मेदारी दी थी। वे जब तक आते रहे अधिकारियों ने भी काम किया लेकिन दोनो ही न्यायाधीशों के अवकाश ग्रहण करने के बाद नौकरशाहों की उदासीनता ने यमुना को फिर कारखानों के रसायनिक कचरे और नालों का संगम बना दिया और यमुना स्नान तो दूर आचमन करने लायक नही रही।

यमुना को शुद्ध करने के लिए चार दशक से अधिक समय पहले बार के पूर्व अध्यक्ष उमाकांत चतुर्वेदी के नेतृत्व में जो आंदोलन शुरू हुआ तथा जिसके बाद पूर्व मंत्री दयालकृष्ण के प्रयास पर यमुना में गिरनेवाले नालों की टैपिंग की गई वह काम भी कुछ दिनों में बेकार हो गया क्येांकि बाद की सरकारों ने उसमें रूचि नही ली। इसके बाद दर्जनों आंदोलन हुए पर परिणाम ढाक के तीन पात ही रहे।

श्री चतुर्वेदी ने बताया कि यमुना के शुद्धीकरण की मांग को लेकर पद्मश्री रमेश बाबा की अगुवाई ‘दिल्ली कूच’ में जो आंदोलन 2011, 2013 एवं 2015 में बड़े पैमाने पर शुरू किये गए वे इसलिए असफल हो गए कि उन्हें असफल करने के लिए सरकार के मंत्री लग गए।


वर्ष 2011 में मनमोहनसिंह की सरकार में मंत्री प्रदीप जैन ने आंदोलनकारियों को झूठा आश्वासन दिया तो 2013 के आंदोलन में मनमोहन सरकार के मंत्री हरीश रावत ने झूठा आश्वासन दिया । 2015 में मोदी सरकार के मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी इसी प्रकार का अश्वासन दिया और उसके बाद तत्कालीन केन्द्रीय उमा भारती तो चार कदम आगे बढ़कर यह संदेश दे गई कि गंगा ऐक्शन प्लान में यमुना भी साफ होगी। इसी श्रंखला में 2019 के लोक सभा चुनाव के पहले नितिन गडकरी ने यमुना को शुद्ध करने की योजना का प्रजेंटेशन भी दिलाया पर आज तक ब्रजवासियों को केवल झूठे आश्वासन का झुनझुना ही मिला है।

वैसे पर्यावरणविद एम0सी0 मेहता ने ताजमहल को बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में जो जनहित याचिका दायर की है, उसमें कहा गया है कि जब तक यमुना निर्मल नही होगी तब तक ताज के साफ रहने की कल्पना नही की जा सकती। 

उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर नीरी की टीम आगरा और मथुरा से यमुना के नमूने भी ले गई जो अगली तारीख को सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत किये जायेंगे। सरकारों एवं मंत्रियों के झूठे आश्वासन के बाद अब ब्रजवासियों को यमुना की पूरे साल निर्मलता बनाए रखने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का ही सहारा बचा है।

सं प्रदीप

वार्ता

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