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लोकरुचि


लघु ग्रामीण भारत के रूप में विभूषित हैं शिल्पग्राम

लघु ग्रामीण भारत के रूप में विभूषित हैं शिल्पग्राम

उदयपुर 19 दिसम्बर(वार्ता) राजस्थान की प्रमुख पर्यटन नगरी उदयपुर में स्थित लघु भारत के रूप में मशहूर शिल्पग्राम में देश की ग्राम्य संस्कृति के लोक एवं जनजाति लोगों की वास्तुकला एवं जीवन शैली का विशाल संग्रहालय हैं। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृति केन्द्र की परिधी देश का पश्चिम अंचल है जिसमें भौगोलिक विविधता के साथ कला का वैविध्य भी हैं। इसके एक सिरे पर थार का मरूस्थल है तो दूसरे पर अरब सागर का सुंदर तट विद्यमान हेैं। इस केन्द्र के राजस्थान,गुजरात, महाराष्ट तथा गोवा सदस्य राज्य हैं। शिल्पग्राम में 21 से 30 दिसम्बर तक प्रतिवर्ष शिल्पकारों एवं कलाकारों का राष्ट्रीय उत्सव आयोजित किया जाता हैं। लोक एवं शिल्पकला का संगम के रुप प्रसिद्वि पा चुका शिल्पग्राम उत्सव में 21 राज्यों के 750 कलाकार तथा 960 शिल्पकार दस दिन तक अपनी कला, शिल्प कला का प्रदर्शन करेंगे। अरावली की गोद में 130 बीघा पहाडी भूमि पर बने शिल्पग्राम में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के सदस्य राज्यों की 31 झोंपडियां का प्रतिनिधित्व करता हैं1 इन झोंपडियों में पश्चिमी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में फैली मानव जातियों के रहन सहन एवं पारंपरिक स्थापत्य शैली को यथावत प्रदर्शित किया गया हैं1 इन झोंपडियों की प्रमाणिकता बनाये रखने के लिए उन क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों द्वारा उसी क्षेत्र की निर्माण सामग्री लाकर इन्हें निर्मित किया गया हैं।


इन पारंपरिक झोंपडियों में दैनिक जीवन में घर में काम आने वाली वस्तुएं चाहे मिट्टी की हो या टेक्सटाईल, लकडी की हो या धातु की, कृषि यंत्र या शिल्पकारों के औजार प्रदर्शित किये गये हैं। इन झोंपडियों को ऐसे ढंग से बनाया गया है जिससे कि लोगों के जीवन की वास्तविक झलक स्पष्ट दिखाई दे सके एवं इनका मूल अस्तित्व सुरक्षित रह सके। झोंपडियों में पारंपरिक ग्रामीण जीवन शैली को दर्शाया गया है जहां कुम्हार, सुथार, लौहार एवं बुनकर की झोंपडियों को परस्पर श्रृंखलाबद्व तरीके से बनाया गया हैं जिससे कि ये सभी लोग आपस में सौहार्दपूर्ण तरीके से आदान प्रदान कर सके। ये झोंपडियां एक दूसरे से सटाकर बनाने का उद्देश्य यह भी है कि क्रियाकलापों की सोच के आधार पर इनमें मधुर संबंध एवं गतिशीलता बनी रह सके। शिल्पग्राम में राजस्थान का प्रतिनिधित्व करने वाली सात पारंपरिक झोंपडियां हैं1 इनमें से दो रामा एवं सम झोंपडियां पश्चिमी राजस्थान के रेतीले इलाके का प्रतिनिधित्व करते हैं1 तीसरी झोंपडी उदयपुर से 70 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित ढोल गांव की है जो कुम्हार जाति का प्रतिनिधित्व करती हैं1 यहां दो झोंपडियां भील एवं सहरिया कृषक जनजाति समुदाय की हैं जो दक्षिणी राजस्थान का प्रतिनिधित्व करती हैं।


शिल्पग्राम में गुजरात राज्य की 12 झोंपडियां स्थित हैं इसमें कच्छ के बन्नी क्षेत्र की रेबारी, मेघवाल एवं मुस्लिम समुदाय की दो दो झोंपडियां हैं। यह समुदाय बुनाई, कशीदाकारी, मोती एवं कांच के कार्य के लिए प्रसिद्व हैं। यहां उत्तर गुजरात के पोशीना के पास लाम्बडिया गांव की कुम्हार की झोंपडी अवस्थित हैं जो कि मिट्टी के घोडों के लिए प्रसिद्व हैं। इस झोंपडी के पास में उदयपुर जिले के बसेडी गांव के बुनकर की झोंपडी भी स्थित हैं। यहां पर पारम्परिक पिथोरा चित्रकारी है जो उनकी अनूठी जीवन शैली को दर्शाती हैं। यहां पर लकडी पर नक्काशी युक्त पेठापुर हवेली है जो गुजरात के गांधीनगर के पास पेठापुर गांव से यहां लाकर हूबहू उसी रूप में यहां स्थापित की गई हैं। भुजोडी झोंपड़ी कच्छ क्षेत्र के रेबारी समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं। शिल्पग्राम परिसर में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाली सात झोंपडियां हैं1 इनमें रायगढ जिले के कोंकण समुद्र तट पर गहन सर्वेक्षण करने के बाद शिशोर क्षेत्र की कोली झोंपडी का चयन किया गया। कोली झोंपडी के पास दक्षिणी महाराष्ट्र के चर्म शिल्पकार का प्रतिनिधित्व करने वाली कोल्हापुर झोंपडी हैं। यही पर थाने जिले की वारली झोंपडी हैं जो पारंपरिक दीवार चित्रकारी का अद्भुत नमूना हैं1 इसके पास ही गोंड मारिया जनजाति समुदाय की झोंपडियां है जो पूर्वी महाराष्ट्र में डोकरा शिल्प के लिए प्रसिद्व हैं1 इसके पास में कुनबी कृषक समुदाय की झोंपडी है जो महाराष्ट्र के भण्डारा जिले का प्रतिनिधित्व करती हैं। सातवीं झोंपडी महाराष्ट्र के वर्धा जिले का प्रतिनिधित्व करती हैं।


केन्द्र के सदस्य राज्य गोवा का प्रतिनिधित्व करने वाली पांच झोंपडियां हैं1 यहां पर गोंवा के लेटेराइट पत्थर से बनी ब्राह्मण झोंपडी के पास बिलोचिम गांव की कुम्हार की झोंपडी निर्मित हैं। यहां पर मण्डोवी नदी किनारे की मछुआने की झोंपडी है वहीं मडगांव क्षेत्र की अनूठी जीवन शैली को दर्शाने वाली ईसाई झोंपडी हैं1 यहां पर दक्षिणी गोंवा के कानकोन क्षेत्र की कृषक जनजाति समुदाय की कुलम्बी झोंपडी हैं। शिल्पग्राम के मध्य स्थित पारंपरिक कला एवं शिल्प संग्रहालय भी स्थित है जो ग्रामीण एवं जनजातीय लोगों की जीवन शैली एवं रहन सहन को दर्शाता हैं। मृण संग्रहालय में मिट्टी की कलात्मक वस्तुएं तथा मुखौटा संग्रहालय में पारंपरिक मुखौटे प्रदर्शित किये गये हैं जो देश के विभिन्न क्षेत्रों की कला शैलियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। कोठी संग्रहालय में विभिन्न क्षेत्रों की कलात्मक कोठिया प्रदर्शित हैं। इनका उपयोग पश्चिमी भारत के विभिन्न समुदायों द्वारा अन्न को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता हैं। शिल्पग्राम में जनजाति संग्रहालय हैं जिसका निर्माण जनजाति शोध संस्थान उदयपुर द्वारा किया गया हैं। इसमें राजस्थान के गरासिया, भील,मीणा,सहरिया एवं कथोडी समुदाय के दैनिक जीवन में उपयोग आने वाले उपकरण कृषि औजार, वेशभूषा, वाद्य यंत्र एवं छायाचित्र प्रदर्शित हैं। रामसिंह तेज रमेश वार्ता

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