लखनऊ, 04 अगस्त (वार्ता) उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने कछुओं की कैलिपी (झिल्ली) की तस्करी करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय तस्कर गिरोह के दो सदस्यों को इटावा रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर उनके पास से सात किलो कैलिपी बरामद की।
एसटीएफ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सत्यार्थ अनिरूद्व पंकज ने यहं यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि एसटीएफ को सूचना मिली कि इटावा, एटा, मैनपुरी, औरैया, फर्रुखाबाद आदि जिलो में बड़े स्तर पर कछुओं को मारकर उनकी कैलिपी का बड़े पैमाने पर अवैध व्यापार किया जा रहा है। इन तस्करों को पकड़ने के लिए एसटीएफ की विभिन्न टीमों को लगाया गया था। इसके साथ वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो के सूत्रों से अभसूचना एक्त्र की गई थी। जानकारी मिली कि
ऐसे व्यापारी माल बेचने के लिए पश्चिम बंगाल केव्यापारियों के संपर्क में रहते हैं जहां से यह माल बांग्लादेश और म्यांमार के रास्ते चीन, हांगकांग, मलेशिया आदि देशो में भेजा जाता है।
उन्होंने बताया कि सूत्रों से जानकारी मिली कि कोलकाता पश्चिम बंगाल से कार्तिक घोष नामक व्यापारी इटावा, औरैया, कानपुर आदि जगहों से सूखा माल खरीद रहा है। उच्चाधिकारियों के निर्देश पर वन विभाग इटावा की टीम को साथ लेकर इस सूचना पर शनिवार रात करीब पौने दस बजे रात कार्तिक घोष को इटावा रेलवे स्टेशन के बाहर से उस समय गिरफ्तार किया गया जब वह देवेन्द्र से उक्त कैलिपि को खरीद रहा था। खरीदने के पश्चात वह ट्रेन से कोलकाता जाने के लिए तैयार था।
श्री पंकज ने बताया कि पूछताछ पर कार्तिक घोष ने बताया कि कछुओं की कैलिपी वह लगभग 5000 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदकर कोलकाता में ऊंचे दामों पर बेच देते है । वहां से बांग्लादेश आदि देशो में भेजा जाता है। इटावा निवासी देवेन्द्र ने पूछताछ पर बताया कि 07 किलोग्राम कैलिपि लगभग 350 कछुओं को मार कर सुखाकर तैयार की जाती है। उन्होंने बताया कि इस संबंध में वन्य जीव अधिनयित के तहत मामला दर्ज करा दिया गया है। गिरफ्तार आरोपियों को अदालत में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया है।
गौरतलब है कि भारत में कछुओं की पाई जाने वाली 29 प्रजातियों में 15 प्रजातियाँ उत्तर प्रदेश में पाई जाती है। इनमें 11 प्रजातियों का अवैध व्यापार किया जाता है। यह अवैध व्यापार जीवित कछुए के माँस अथवा पालने अथवा कछुओं की कैलिपी (झिल्ली) को सुखा कर शक्तिवर्धक दवा के लिए किया जाता है। कछुओं को मुलायम कवच
तथा कठोर कवच के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। यमुना, चम्बल, गंगा, गोमती, घाघरा,गण्डक आदि नदियों, उनकी सहायक नदियों, तालाबों आदि में यह दोनों प्रकार के कछुए बहुतायत में पाए जाते हैं।
त्यागी
वार्ता