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उत्तर प्रदेश में सुधरी बिजली की चाल, गर्मियों में होगी अग्नि परीक्षा

उत्तर प्रदेश में सुधरी बिजली की चाल, गर्मियों में होगी अग्नि परीक्षा

लखनऊ 04 जनवरी (वार्ता) दशकों तक बिजली की किल्लत का दंश झेलने वाले उत्तर प्रदेश ने बीते साल ऊर्जा क्षेत्र में स्वालंबन की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ाये मगर बिजली विभाग की अग्नि परीक्षा आगामी गर्मी के मौसम में होगी।


       जनसंख्या के मामले में देश में अव्वल इस राज्य में बिजली दशकों तक अहम समस्या रही है। हर मौसम विशेषकर गर्मियों में बिजली को लेकर प्रदर्शन और उपकेन्द्रों में तोड़फोड़ की घटनाये यहां आम हो चुकी है। लगभग हर चुनाव में बिजली एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन कर उभरती रही है । मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने 2017 में इस समस्या पर गंभीर रूख अपनाया जिसे सहयोग करने के लिये केन्द्र ने भी अपने हाथ बढाये नतीजन बिजली स्थिति में काफी सुधार आया है। इसके चलते 2018 के दौरान बिजली को लेकर ना के बराबर विरोध प्रदर्शन हुये ।

       विशेषज्ञ मानते है कि बिजली सुधार के क्षेत्र में राज्य ने लंबी छलांग लगायी है मगर केन्द्र की सौभाग्य योजना के तहत शत प्रतिशत विद्युत कनेक्शन का लक्ष्य हासिल करने के बाद गर्मियों में सरकार के लिये बिजली आपूर्ति के स्तर को बरकरार रखना जटिल चुनौती होगी क्योंकि बिजली की मांग बढ़ने का सीधा असर आपूर्ति पर पडना तय है।

योगी सरकार ने बिजली सुधार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण फैसले लिये। सरकारी क्षेत्र के बिजली घरों में जीर्णोद्धार और उन्नतीकरण के कामइकिये गये वहीं निजी क्षेत्र की मदद से मांग और आपूर्ति के बीच खाई को पाटने की हरसंभव कोशिश की गयी। इसके अलावा पारेषण लाइनो की क्षमता को बढ़ाने की दिशा में उल्लेखनीय सुधार हुआ। इससे मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर कम हुआ, नतीजन पिछले साल बिजली के लिये मारामारी लगभग नगण्य रही। इसके अलावा बिजली चोरी पर लगाम कस कर पावर कारपोरेशन के घाटे को कम करने की मुहिम चरम पर रही। बिजली की दशा सुधारने में काफी हद तक केन्द्र की सौभाग्य योजना ने भी अहम भूमिका निभायी।  वहीं सौर ऊर्जा को बढ़ावा देकर परम्परागत स्राेतों पर भार कम करने का प्रयास किया गया।

     बाइस करोड़ से अधिक की आबादी वाले राज्य के हर कोने में उजियारा करने की दिशा में तेजी से काम चल रहा है और सरकार के दावों पर यकीन करे तो आगामी मार्च के अंत तक सूबे के हर गांव कस्बे को बिजली से रोशन कर दिया जायेगा।

     पावर कारपोरेशन के सूत्रों के अनुसार उत्तर प्रदेश की बिजली की औसत मांग 20 हजार मेगावाट के आसपास है जबकि राज्य सरकार के अधीन अनपरा, ओबरा,पारीछा और हरदुआगंज का कुल उत्पादन 4500 मेगावाट के इर्दगिर्द रहता है। पनकी तापीय संयंत्र को फिलहाल जीर्णोद्धार के लिये बंद रखा गया है। इस बिजलीघर में 105 मेगावाट की दो इकाईयों के स्थान पर 600 मेगावाट की इकाई लगाने का काम प्रगति पर है।

     इसके अलावा महोबा,ललितपुर हमीरपुर,जालौन और झांसी और बांदा में सौर ऊर्जा के बिजलीघरों से 350 मेगावाट के अासपास बिजली का उत्पादन हो रहा है जिसमे महोबा में 150 मेगावाट,ललितपुर में 70 मेगावाट,हमीरपुर में 25 मेगावाट,जालौन में 65 मेगावाट का विद्युत उत्पादन हो रहा है। हाइड्रो सेक्टर में 319 मेगावाट के आसपास बिजली का उत्पादन हो रहा है।

    मांग के सापेक्ष बिजली की कमी को पूरा करने के लिये केन्द्रीय सेक्टर से 6000 से 7000 मेगावाट बिजली ली रही है जबकि 4000 से 4500 मेगावाट बिजली निजी क्षेत्र के बिजलीघरों से खरीदने की व्यवस्था की गयी है। पन विद्युत उत्पादन गृह और सौर ऊर्जा के बिजलीघर भी सूबे में बिजली की कमी से निपटने में अपना योगदान देते हैं।

     विशेषज्ञों के अनुसार शत प्रतिशत बिजली कनेक्शन का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है और आने वाले दिनो में यही बिजली की किल्लत का कारण बन सकता है। देश में बिजली की कोई कमी नहीं है मगर उसे गंतव्य तक ले जाने के लिये पारेषण लाइनों की पुख्ता क्षमता का होना जरूरी है। इस मामले में बिजली विभाग अब तक खास प्रगति नहीं कर सका है।  केन्द्र की सौभाग्य योजना के तहत सूबे में एक करोड 18 लाख बिजली के नये कनेक्शन देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है जिसमें से 75 लाख कनेक्शन दिये भी जा चुके हैं। बिजली की पर्याप्त उपलब्धता होने के बावजूद उसे दूरदराज के क्षेत्रों में पहुंचाने के लिये पारेषण लाइनो की भूमिका अहम हो जाती है। दूसरे राज्यों से बिजली लाने की पारेषण क्षमता आठ हजार मेगावाट है। उधर वितरण लाइन क्षमता भी सीमित है। इससे अधिक बिजली लाने में ग्रिड में ओवरलोडिंग की समस्या आड़े आती है।

 अखिल भारतीय विद्युत अभियंता महासंघ के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे ने बताया कि पर्याप्त बिजली होने के बावजूद गर्मियों के मौसम में आमतौर पर बिजली की कटौती करना विभाग की मजबूरी बन जाती है। बिजली की आपूर्ति निर्बाध रखने के लिये ना सिर्फ पारेषण क्षमता का विस्तार करना होगा बल्कि उपकेन्द्रो और वितरण लाइनों का उन्नतिकरण भी जरूरी है। बिजली का नुकसान नियंत्रित करने के लिये बिजली चोरी रोकने के कड़े कानून बनाने होंगे।

     उन्होने कहा कि सूबे में बिजली की कमी से निपटने में निजी क्षेत्र के बिजलीघरों की अहम भूमिका है मगर इन विद्युत गृहों से महंगी दरों पर ली जाने वाली बिजली विभाग को घाटे के भंवर में और उलझा रही है। मौजूदा समय में लैम्को के अधीन अनपरा सी में 1200 मेगावाट का उत्पादन हो रहा है जबकि रोजा में रिलायंस की 1200 मेगावाट की इकाई, ललितपुर में बजाज की 1980 मेगावाट, बारा इलाहाबाद में जेपी ग्रुप की 1980 मेगावाट और बजाज के 450 मेगावाट के छोटे बिजलीघर राज्य को बिजली मुहैया करा रहे है।

      श्री दुबे ने बताया कि राज्य सरकार अथवा एनटीपीसी के बिजलीघरो से जहां तीन रूपये  प्रति यूनिट की बिजली मिलती है वहीं निजी क्षेत्र प्रति यूनिट बिजली के एवज में 4़ 74 रूपये वसूलते है। पीक आवर्स में यह दर बढकर 12 रूपये प्रति यूनिट तक पहुंच जाती है। राज्य में अमूमन प्रतिदिन 25 से 30 करोड़ यूनिट बिजली की खपत होती है। अगर बिजली क्षेत्र में सरकार आत्मनिर्भरता हासिल कर ले तो हर रोज 15-16 करोड़ का राजस्व बचाया जा सकता है।

      राज्य में बिजली की चोरी भी एक अहम समस्या है जिस पर राज्य सरकार पैनी नजर गडाये हुये है। अन्य राज्यों में बिजली का नुकसान 15 फीसद से भी कम है वहीं उत्तर प्रदेश में यह  28 प्रतिशत के करीब है। हाल ही में इस दिशा में सख्ती के चलते यह आंकडा 25-26 प्रतिशत के करीब पहुंचा है।

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