नयी दिल्ली, 08 अगस्त (वार्ता) ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति पर एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि बुजुर्ग सदस्यों वाले 73 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को लगातार स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरत होती है लेकिन गावों में शुल्क लेकर घर पर स्वास्य सेवाये प्राप्त करने का विकल्प कुछ खास लोकप्रिय नहीं है।
रिपोर्ट में गावों की सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी वास्तविकताओं पर आधारित ‘नेबरहुडज़ ऑफ़ केयर’(पड़ोस में सुश्रुषा सुविधा) का मॉडल लागू करने की सिफारिश की गयी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस माडल को मौजूदा तंत्र से सहयोग मिल सकता है पर इसके लिये अधिक प्रभावी और नियमित बातचीत की आवश्यकता है।
ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया (टीआरआई) और इसकी पहल, डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट (डीआईयू) द्वारा ग्रामीण भारत में तैयार इस सर्वेक्षण रिपोर्ट को गुरुवार को यहां जारी किया गया। इसमें कहा गया है कि गावों में अधिकांश लोग घर पर उपलब्ध स्वास्थ्य- सुश्रुषा सुविधाओं को अपनाना पसंद करते हैं, पर बहुत कम परिवार ही शुल्क लेकर घर पर स्वास्थ्य सेवा देने वालों की सेवा लेते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है,“ ग्रामीण भारत में ज़्यादातर लोग (95.7 प्रतिशत) घर पर उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं को पसंद करते हैं, तथा ऐसे लोगों में महिलायें सबसे अधिक (72.1 प्रतिशत) हैं। यह स्थिति स्वास्थ्य सेवाकर्मियों को घर पर दी जाने वाली स्वास्थ्य सेवाओं में प्रशिक्षण देने की ज़रूरत को उजागर करती हैं।”
इसके अनुसार शुल्क लेकर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले बाहरी देखभालकर्ताओं को नियुक्त करना ग्रामीण भारत में बहुत ज़्यादा लोकप्रिय नहीं दिखाई देता है, क्योंकि सिर्फ़ तीन प्रतिशत परिवारों ने ही कहा कि उन्होंने इस विकल्प को चुना है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बुजुर्ग सदस्यों वाले 73 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को लगातार स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरत होती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नेबरहुडज़ ऑफ़ केयर मॉडल स्वास्थ्य सेवायें मुहैया कराने के पारंपरिक तरीकों से बिल्कुल अलग है। इसमें सामाजिक और पारिस्थितिक घटकों को ध्यान में रखते हुए समग्र और निजी ज़रूरतों के अनुरूप स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध कराने पर बल दिया जाता है। इसमें लोगों, परिवारों और समुदायों की प्राथमिकताओं, उनके हितों और लक्ष्यों को एकीकृत किया जाता है। यह माडल चिकित्सकों, सामाजिक सेवा प्रदाताओं, देखभालकर्मियों, सामुदायिक संगठनों तथा निवासियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने वाला मॉडल है।
नेशनल हेल्थ सिस्टम्स रिसोर्स सेंटर (एनएचएसआरसी) के कार्यकारी निदेशक
डॉ. मेजर जनरल (प्रोफेसर) अतुल कोटवाल ने कहा, “वर्तमान स्वास्थ्य प्रणाली में त्वरित सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) और सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) जैसे विभिन्न प्रदाता शामिल हैं, जो एक विकसित होते पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर काम कर रहे हैं।
सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 60 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं के पास अपने लिए, या फिर अपने परिवार के सदस्यों के लिये कोई जीवन बीमा कवरेज नहीं था। सर्वे के अनुसार गावों में 12.2 उत्तरदाताओं को सब्सिडी वाली दवाइयां सहज रूप से उपलब्ध थी जबकि 21 प्रतिशत ने कहा कि उनके आस-पड़ोस में कोई मेडिकल स्टोर नहीं था।
लगभग 50 प्रतिशत ने कहा कि, चूंकि वे अपने खेतों पर काम करते हैं और शारीरिक मेहनत करते हैं इसलिए, उन्हें अतिरिक्त व्यायाम करने की ज़रूरत नहीं है। गावों में केवल 10 प्रतिशत लोग ही योग अथवा शारीरिक तंदुरुस्ती के लिये अन्य गतिविधियों का अभ्यास करते हैं।
गावों में सिर्फ़ 23प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बताया कि उनके गाँवों में जल-निकासी व्यवस्था के लिए ढकी हुई नालियां बनायी गयी हैं। इसी तरह गावों में 43 प्रतिशत घरों में कचरे के वैज्ञानिक तरीके से निपटान की कोई व्यवस्था नहीं है।
रिपोर्ट में नेबरहुडज़ ऑफ़ केयर' में स्थानीय नेताओं, स्वयं सहायता समूहों तथा सेवा प्रदाताओं को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ उनके कौशल को निखारने की अहमियत को भी उजागर किया गया है, ताकि वे अपने गाँवों में लोगों और परिवारों को बेहतर सहायता प्रदान कर सकें।
सर्वे में 21 राज्यों के कुल 5,389 परिवारों को शामिल किया गया।
मनोहर.श्रवण
वार्ता