Friday, Mar 29 2024 | Time 05:11 Hrs(IST)
image
नए सांसद


चार बार बनी गैर भाजपा गैर कांग्रेस सरकार पर लेना पड़ा था उन्हीं का समर्थन

चार बार बनी गैर भाजपा गैर कांग्रेस सरकार पर लेना पड़ा था उन्हीं का समर्थन

नयी दिल्ली, 15 मई (वार्ता) लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में पहुंचने के साथ ही केंद्र में गैर भाजपा गैर कांग्रेस की सरकार बनाने के प्रयास और अटकलें तेज हो गयी हैं लेकिन अब तक चार बार बनी इस तरह की सरकार को इन दोनों राष्ट्रीय दलों में किसी न किसी का समर्थन लेना पड़ा।

सात चरणाें में हो रहे लोकसभा चुनाव के छह चरण पूरा होने के साथ ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव केंद्र में गैर भाजपा गैर कांग्रेस की सरकार बनाने के प्रयासों में जुट गये हैं। वह इस सिलसिले में केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच डी कुमार स्वामी और द्रमुक नेता एम स्टालिन से मुलाकात कर चुके हैं । वह जनता दल सेकुलर के नेता एच डी देवेगौड़ा और वाईएसआर कांग्रेस के नेता जगनमोहन रेड्डी से जल्द मिलने वाले हैं। चुनाव की घोषणा होने से पहले भी उन्होेंने भाजपा और कांग्रेस का विकल्प के तौर पर ‘फेडरल मोर्चा’ बनाने के लिए विभिन्न दलों के नेताओं से विचार विमर्श किया था।

उनके प्रयासों को कितनी सफलता मिलती है यह बहुत कुछ 23 मई को आने वाले चुनाव परिणामों पर निर्भर करेगा। केंद्र में तीसरे मोर्चे की सरकार बनने की संभावनायें तभी परवान चढ़ सकती हैं जब भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन लोकसभा में बहुमत के आंकड़े से बहुत दूर रह जाये।

केंद्र में भाजपा और कांग्रेस के बिना अब तक चार सरकारें बनी हैं लेकिन इनमें से सभी को इन दोनों दलों में से किसी न किसी का समर्थन लेना पड़ा लेकिन ये सरकारें बीच में ही दम तोड़ गयी। इस तरह की पहली सरकार 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में बनी थी। राष्ट्रीय मोर्चा की इस सरकार को वामदलों और भाजपा ने बाहर से समर्थन दिया था। यह सरकार 11 माह ही चल पायी। उस समय की सरकार ने मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू की तो उसी दौरान भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए रथ यात्रा निकाली। श्री आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार किये जाने पर भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार गिर गयी। इसके बाद जनतादल में फूट से बनी समाजवादी जनता पार्टी के नेता चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनायी लेकिन वह भी सात माह से अधिक नहीं चल पायी और देश में मध्यावधि चुनाव कराने पड़े।

वर्ष 1996 के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बहुमत के आंकड़े से बहुत पीछे रहने पर केंद्र में इन दोनों पार्टियों से दूर रहे दलों की मिली जुली सरकार बनी। इस चुनाव में भाजपा 161 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी जबकि कांग्रेस को 140 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। तेरह दलों को मिलाकर बना संयुक्त मोर्चा अपना नेता चुनने के प्रयास में लगा था कि तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सबसे बड़ा दल होने के नाते भाजपा काे सरकार बनाने का निमंत्रण दे दिया और उसके नेता अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बन गये। बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा पाने के कारण उन्होंने 13 दिन में ही इस्तीफा दे दिया।

उनके इस्तीफे के बाद संयुक्त मोर्चा ने श्री एच डी देवेगौड़ा को अपना नेता चुना और उन्होंने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनायी। कांग्रेस के साथ मनमुटाव हो जाने से उन्हें ग्यारह माह में ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। उनके स्थान पर इंद्र कुमार गुजराल संयुक्त मोर्चा के नेता बने और एक बार फिर कांग्रेस के समर्थन से संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी लेकिन यह सरकार भी ग्यारह महीने में गिर गयी और 1998 में लोकसभा के नये चुनाव कराने पड़े।

जय उनियाल

वार्ता

There is no row at position 0.
image