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वन्यजीव अपराधों को रोकने के लिए सभी एजेंसियों के बीच समन्वय जरूरीः न्यायमूर्ति सिंह

गुवाहाटी, 14 मई (वार्ता) गुवाहाटी उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन कोटेश्वर सिंह ने शनिवार को कहा कि वन्यजीव अपराधों को रोकने के लिए व्यापक बहु-एजेंसियों के समन्वय की तत्काल आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा,''वन्यजीव अपराधों की रोकथाम और कम करने के लिए वन कर्मियों, पुलिस, सीमा सुरक्षा बलों, अर्धसैनिक बलों, सेना और अन्य संबंधित एजेंसियों सहित विभिन्न हितधारकों के बीच बहुआयामी और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।''
असम राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (एएसएलएसए) और जैव विविधता संरक्षण संगठन आरण्यक द्वारा संयुक्त रूप से बोंगाईगांव में आयोजित 'वन्यजीव अपराध: चुनौतियां, समाधान और हितधारकों की भूमिका' कार्यक्रम में न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि देश के संविधान में निहित मौलिक कर्तव्य सभी नागरिकों को प्राकृतिक पर्यावरण, जंगल, जल निकायों (झीलों) और वन्यजीवों की रक्षा करने के लिए प्रेरित करते हैं।
इसलिए सीमा पर तैनात एक एसएसबी जवान देश से कीमती वन्यजीवों/वन्यजीवों के अंगों की तस्करी के किसी भी प्रयास को नजरअंदाज नहीं कर सकता, भले ही उनका मुख्य कर्तव्य सीमा की रक्षा करना है।
उन्होंने कहा कि इसके साथ ही सेना और अन्य अर्धसैनिक बलों से भी वन्यजीव अपराधों को रोकने में वन और पुलिस कर्मियों की मदद करने में सहायक भूमिका निभाने की उम्मीद की जाती है।
इस दौरान, गुवाहाटी उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सौमित्र सैकिया ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के कुछ प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा कि डब्ल्यूएल (संरक्षण) अधिनियम के संयोजन में सीआरपीसी के प्रावधान हैं, जो समान रूप से लागू होते हैं।
इस कार्यक्रम में असम पुलिस, असम वन विभाग, सशस्त्र सीमा बोल (एसएसबी) के अधिकारियों के अलावा बारपेटा, बोंगाईगांव, कोकराझार और चिरांग जिलों के न्यायिक अधिकारियों ने भाग लिया।
देव
वार्ता
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