..पुण्यतिथि 20 जुलाई के अवसर पर ..
मुंबई 19 जुलाई (वार्ता) हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में गीता दत्त का नाम एक ऐसी पार्श्वगायिका के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपनी आवाज की कशिश से लगभग तीन दशक तक श्रोताओं को मदहोश किया।
फरीदपुर शहर में 23 नवंबर 1930 को जन्मीं गीता जब महज 12 वर्ष की थी तब उनका पूरा परिवार फरीदपुर (अब बंगलादेश में) से मुंबई आ गया। उनके पिता जमींदार थे। बचपन के दिनों से ही गीता दत्त का रूझान संगीत की ओर
था और वह पार्श्वगायिका बनना चाहती थी। गीता ने अपनी संगीत की प्रारंभिक शिक्षा हनुमान प्रसाद से हासिल की।
गीता को सबसेपहले वर्ष 1946 में फिल्म ‘भक्त प्रहलाद’ के लिये गाने का मौका मिला। गीता ने कश्मीर की कली, रसीली, सर्कस किंग जैसी कुछ फिल्मो के लिये भी गीत गाये लेकिन इनमें से कोई भी बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुयी।
इस बीच गीता दत्त की मुलाकात संगीतकार एस.डी.बर्मन से हुयी। गीता दत्त मे एस.डी.बर्मन को फिल्मइंडस्ट्री का उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया और उन्होंने गीता से अपनी अगली फिल्म ‘दो भाई’ के लिये गाने की पेशकश की।
वर्ष 1947 में प्रदर्शित फिल्म ‘दो भाई’ गीता के सिने कैरियर की अहम फिल्म साबित हुयी और इस फिल्म में उनका गाया यह गीत .. मेरा सुंदर सपना बीत गया .. लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। फिल्म दो भाई मे अपने गाये इस गीत की कामयाबी के बात बतौर पार्श्वगायिका गीतादत्त अपनी पहचान बनाने में सफल हो गयीं।
वर्ष 1951 गीता के सिने कैरियर के साथ ही व्यक्तिगत जीवन में भी एक नया मोड़ लेकर आया। फिल्म ‘बाजी’ के निर्माण के दौरान उनकी मुलाकात निर्देशक गुरूदत्त से हुयी। फिल्म के एक गाने..तदबीर से बिगड़ी हुयी तकदीर बना ले .. की रिकार्डिंग के दौरान गीता को देख गुरूदत्त मोहित हो गये। इसके बाद गीता भी गुरूदत्त से प्यार करने लगी। वर्ष 1953 में गीता ने गुरूदत्त से शादी कर ली। इसके साथ ही फिल्म ‘बाजी’ की सफलता ने गीता की तकदीर बना दी और बतौर गायिका वह फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गयीं।
वर्ष 1956 गीता के सिने कैरियर में एक अहम पड़ाव लेकर आया। हावड़ा ब्रिज के संगीत निर्देशन के दौरान ओ.पी.नैयर ने एक ऐसी धुन तैयार की थी जो सधी हुयी गायिकाओं के लिये भी काफी कठिन थी। जब उन्होने गीता को ..मेरा नाम चिन चिन चु .. गाने को कहा तो उन्हे लगा कि वह इस तरह के पाश्चात्य संगीत के साथ तालमेल नहीं बिठा पायेंगी। गीता ने इसे एक चुनौती की तरह लिया और इसे गाने के लिये उन्होंने पाश्चात्य गायिकाओ के गाये गीतों को भी बारीकी से सुनकर अपनी आवाज मे ढ़ालने की कोशिश की और बाद में जब उन्होंने इस गीत को गाया तो उन्हें भी इस बात का सुखद अहसास हुआ कि वह इस तरह के गाने गा सकती है।
गीता के पंसदीदा संगीतकार के तौर पर एस.डी.बर्मन का नाम सबसे पहले आता है। गीता के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी संगीतकार ओ.पी.नैयर के साथ भी पसंद की गयी। वर्ष 1957 मे गीता दत्त और गुरूदत्त की विवाहित जिंदगी मे दरार आ गयी। गुरूदत्त चाहते थे गीता केवल उनकी बनाई फिल्म के लिये ही गीत गाये। काम में प्रति समर्पित गीता तो पहले इस बात के लिये राजी नहीं हुयीं लेकिन बाद में गीता ने किस्मत से समझौता करना ही बेहतर समझा। धीरे धीरे अन्य निर्माता निर्देशको ने गीता से किनारा करना शुरू कर दिया। कुछ दिनो के बाद गीता अपने पति गुरूदत्त के बढ़ते दखल को बर्दाशत न कर सकीं और उसने गुरूदत्त से अलग रहने का निर्णय कर लिया।
गीता दत्त से जुदाई के बाद गुरूदत्त टूट से गये और उन्होंने अपने आप को शराब के नशे मे डूबो दिया। दस अक्टूबर 1964 को अत्यधिक मात्रा में नींद की गोलियां लेने के कारण गुरूदत्त इस दुनियां को छोडकर चले गये। गुरूदत्त की मौत के बाद गीता को गहरा सदमा पहुंचा और उन्होंने भी अपने आप को नशे में डुबो दिया। गुरूदत्त की मौत के बाद उनकी निर्माण कंपनी उनके भाइयो के पास चली गयी। गीता को न तो बाहर के निर्माता की फिल्मों मे काम मिल रहा था और न ही गुरूदत्त की फिल्म कंपनी में। इसके बाद गीता की माली हालत धीरे धीरे खराब होने लगी।
कुछ वर्ष के पश्चात गीता को अपने परिवार और बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास हुआ और वह पुनः फिल्म इंडस्ट्री में अपनी खोयी हुयी जगह बनाने के लिये संघर्ष करने लगी। इसी दौरान दुर्गापूजा में होने वाले स्टेज कार्यक्रम के लिये भी गीता ने हिस्सा लेना शुरू कर दिया। वर्ष 1967 में प्रदर्शित बंग्ला फिल्म ‘बधू बरन’ में गीता को काम करने का मौका मिला जिसकी कामयाबी के बाद गीता कुछ हद तक अपनी खोयी हुयी पहचान बनाने में सफल हो गयी।
हिन्दी के अलावा गीता ने कई बंगला फिल्मों के लिये भी गाने गाये। सत्तर के दशक में गीता की तबीयत खराब रहने लगी और उन्होंने एक बार फिर से गीत गाना कम कर दिया। लगभग तीन दशक तक अपनी आवाज से श्रोताओ को मदहोश करने वाली पार्श्वगायिका गीता दत्त अंततः 20 जुलाई 1972 को इस दुनिया से विदा हो गयी।