मनोरंजन » कला एवं रंगमंचPosted at: Dec 27 2019 10:55AM फिल्म जगत की पहली संगीतकार जोड़ी थी हुस्नलाल-भगतराम की
(हुस्नलाल की पुण्यतिथि 28 दिसंबर के अवसर पर)
मुंबई 27 दिसंबर (वार्ता) भारतीय फिल्म संगीत जगत में अपनी धुनों के जादू से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले संगीतकार तो कई हुए और उनका जादू भी श्रोताओं के सर चढ़कर बोला लेकिन उनमें कुछ ऐसे भी थे जो बाद में गुमनामी के अंधेरे में खो गये और आज उन्हें कोई याद भी नहीं करता। फिल्म इंडस्ट्री की पहली संगीतकार जोड़ी हुस्नलाल-भगतराम भी ऐसी ही एक प्रतिभा थे।
हिन्दी फिल्मों के सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक मोहम्मद रफी को प्रारंभिक सफलता दिलाने में हुस्नलाल-भगतराम का अहम योगदान रहा था। चालीस के दशक के अंतिम वर्षों में जब मोहम्मद रफी फिल्म जगत में बतौर पार्श्वगायक अपनी पहचान बनाने में लगे थे तो उन्हें काम ही नहीं मिलता था। तब हुस्नलाल-भगतराम की जोड़ी ने उन्हें एक गैर फिल्मी गीत गाने का अवसर दिया था। वर्ष 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद इस जोड़ी ने मोहम्मद रफी को राजेन्द्र कृष्ण रचित गीत “सुनो सुनो ऐ दुनिया वालो बापू की अमर कहानी” गाने का अवसर दिया। देशभक्ति के जज्बे से परिपूर्ण यह गीत श्रोताओं में काफी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद अन्य संगीतकार भी मोहम्मद रफी की प्रतिभा को पहचानकर उनकी तरफ आकर्षित हुये और अपनी फिल्मों में उन्हें गाने का मौका देने लगे।
मोहम्मद रफी हुस्नलाल-भगतराम के संगीत बनाने के अंदाज से काफी प्रभावित थे और उन्होंने कई मौकों पर इस बात का जिक्र भी किया है। मोहम्मद रफी सुबह चार बजे ही इस संगीतकार जोड़ी के घर तानपुरा लेकर चले जाते थे जहां वह संगीत का रियाज किया करते थे। हुस्नलाल-भगतराम ने मोहम्मद रफी के अलावा कई अन्य संगीतकारों को पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभायी थी। सुप्रसिद्ध संगीतकार जोडी शंकर जयकिशन ने हुस्नलाल-भगतराम से ही संगीत की शिक्षा हासिल की थी। मशहूर संगीतकार लक्ष्मीकांत भी हुस्नलाल-भगतराम से वायलिन बजाना सीखा करते थे।
छोटे भाई हुस्नलाल का जन्म 1920 में पंजाब में जालंधर जिले के कहमां गावं में हुआ था जबकि बडे भाई भगतराम का जन्म भी इसी गांव में वर्ष 1914 में हुआ था। बचपन से ही दोनों का रूझान संगीत की ओर था। हुस्नलाल वायलिन और भगतराम हारमोनियम बजाने में रूचि रखते थे। हुस्नलाल और भगतराम ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने बडे भाई और संगीतकार पंडित अमरनाथ से हासिल की। इसके अलावा उन्होंने पंडित दिलीप चंद बेदी से से भी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी।
वर्ष 1930-1940 के दौरान संगीत निर्देशक शास्त्रीय संगीत की राग-रागिनी पर आधारित संगीत दिया करते थे। हुस्नलाल-भगतराम इसके पक्ष में नहीं थे। उन्होंने शास्त्रीय संगीत में पंजाबी धुनों का मिश्रण करके एक अलग तरह का संगीत देने का प्रयास दिया और उनका यह प्रयास काफी सफल भी रहा। उन्होंने अपने सिने करियर की शुरूआत वर्ष 1944 में प्रदर्शित फिल्म “चांद” से की। इस फिल्म में उनके संगीतबद्ध गीत “दो दिलों की ये दुनिया” श्रोताओं में काफी लोकप्रिय हुये लेकिन फिल्म की असफलता के कारण संगीतकार के रूप में वे अपनी खास पहचान नहीं बना सके।
वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म “प्यार की जीत” में अपने संगीतबद्ध गीत “एक दिल के टुकड़े हजार हुये” की सफलता के बाद हुस्नलाल-भगतराम फिल्म जगत में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गये। मोहम्मद रफी की आवाज में कमर जलालाबादी रचित यह गीत आज भी रफी के दर्द भरे गीतों में विशिष्ट स्थान रखता है लेकिन दिलचस्प बात यह है कि हुस्नलाल-भगतराम ने यह गीत फिल्म “प्यार की जीत” के लिये नही बल्कि फिल्म “सिंदूर” के लिये संगीतबद्ध किया था।
फिल्म “सिंदूर” के निर्माण के समय जब हुस्नलाल-भगतराम ने फिल्म निर्माता शशिधर मुखर्जी को यह गीत सुनाया तो उन्होंने इसे अनुपयोगी बताकर फिल्म में शामिल करने से मना कर दिया। बाद मे निर्माता ओ. पी. दत्ता ने इस गीत को अपनी फिल्म “प्यार की जीत” में इस्तेमाल किया। वर्ष 1950 में प्रदर्शित फिल्म “चांद” में अपने संगीतबद्ध गीत “चुप चुप खडे हो जरूर कोई बात है” की सफलता के बाद यह जोड़ी फिल्म जगत में चोटी के संगीतकारो में शुमार हो गयी। इस गीत से जुड़ा एक रोचक तथ्य है कि उस जमाने में गांवों में रामलीला के मंचन से पहले दर्शको की मांग पर इसे अवश्य बजाया जाता था। लता मंगेशकर और प्रेमलता की युगल आवाज में रचे-बसे इस गीत की तासीर आज भी बरकरार है ।
साठ के दशक मे पाश्चात्य गीत.संगीत की चमक से निर्माता निर्देशक अपने आप को नही बचा सके और धीरे धीरे निर्देशकों ने हुस्नलाल-भगतराम की ओर से अपना मुख मोड़ लिया। इसके बाद हुस्नालाल दिल्ली चले गये और आकाशवाणी में काम करने लगे जबकि भगतराम मुंबई में ही रहकर छोटे-मोटे स्टेज कार्यक्रम में हिस्सा लेने लगे। अपनी मधुर धनु से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले हुस्नलाल 28 दिसंबर 1968 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।