मुंबई. 28 सितंबर(वार्ता) भारतीय सिनेमा जगत में पिछले छह दशक से लता मंगेश्कर ने अपनी मधुर आवाज से श्रोताओं को दीवाना बनाया है लेकिन उनके बारे में कुछ ऐसे रोचक तथ्य है जिन्हें आज की पीढ़ी नही जानती है । मध्यप्रदेश में इंदौर शहर के एक मध्यम वर्गीय मराठी परिवार में 28 सिंतबर 1929 को जन्मी लता ने वर्ष 1942 में “किटी हसाल” के लिये अपना पहला गाना गाया लेकिन उनके पिता दीनानाथ मंगेश्कर को लता का फिल्मों के लिये गाना पसंद नही आया और उन्होंने उस फिल्म से लता के गाये गीत को हटवा दिया था। हालांकि इसी वर्ष लता को “पहली मंगलगौर” में अभिनय करने का मौका मिला। लता की पहली कमाई 25 रुपये थी जो उन्हें एक कार्यक्रम में स्टेज पर गाने के दौरान मिली थी। बहुत कम लोगो को पता होगा कि लता का असली नाम हेमा हरिदकर है। बचपन के दिनो से उन्हे रेडियो सुनने का बड़ा ही शौक था। जब वह 18 वर्ष की थी तब उन्होंने अपना पहला रेडियो खरीदा था और जैसे ही उन्होंने रेडियो ऑन किया तो के.एल.सहगल की मृत्यु का समाचार उन्हें प्राप्त हुआ। बाद में उन्होंने वह रेडियो दुकानदार को वापस लौटा दिया । लता को अपने बचपन के दिनों में साईकिल चलाने का काफी शौक था जो पूरा नहीं हो सका अलबत्ता उन्होंने अपनी पहली कार 8000 रुपये में खरीदी थी। लता मसालेदार भोजन करने का शौक रखती हैं और एक दिन में वह तकरीबन 12 मिर्चे खा जाती हैं। उनका मानना है कि मिर्चे खाने से गले की मिठास बढ़ जाती है। लता को किक्रेट देखने का भी काफी शौक रहा है। लार्डस में उनकी एक सीट सदा आरक्षित रहती है ।
अपने करियर की शुरूआत में लता मंगेश्कर को अपने पार्श्वगायकों के साथ एक ही माइक्रोफोन से गाने का अवसर मिलता था। जब वह पार्श्वगायक हेमंत कुमार के साथ गाने गाती थी तो इसके लिये उन्हें ..स्टूल ..का सहारा लेना पड़ता था। इसकी वजह यह थी कि हेमंत कुमार उनसे काफी लंबे थे। वर्ष 1962 में एक बार लता मंगेश्कर काफी बीमार पड़ गयी थी और कहा जाने लगा कि वह अब कभी गा नहीं सकती है। कहा जाता है उनके बावर्ची ने उनके खाने में धीमा जहर मिला दिया था। बाद में उन्होंने उस बावर्ची को बिना पगार दिये नौकरी से हटा दिया। लता फिल्म इंडस्ट्री में मृदु स्वाभाव के कारण जानी जाती है लेकिन दिलचस्प बात है कि किशोर कुमार और मोहम्मद रफी जैसे पार्श्वगायको के साथ भी उनकी अनबन हो गयी थी। किशोर कुमार के साथ लता की अनबन का वाकया काफी दिलचस्प है । लता ने इस घटना का जिक्र कुछ इस प्रकार किया है ..बांबे टॉकीज की फिल्म ‘जिद्दी’ के गाने की रिर्काडिंग करने जाने के लिये जब वह एक लोकल ट्रेन से सफर कर रही थी तो उन्होंने पाया कि एक शख्स भी उसी ट्रेन में सफर कर रहा है। स्टूडियों जाने के लिये जब उन्होने तांगा लिया तो देखा कि वह शख्स भी तांगा लेकर उसी ओर आ रहा है। जब वह बांबे टॉकीज पहुंची तो उन्होने देखा कि वह शख्स भी बांबे टॉकीज पहुंचा हुआ है। बाद में उन्हें पता चला कि वह शख्स किशोर कुमार हैं। बाद में ‘जिद्धी’ में लता ने किशोर कुमार के साथ ..ये कौन आया रे करके सोलह सिंगार ...गाया ।
लता ने पार्श्वगायक मोहम्मदी रफी के साथ सैकड़ो गीत गाये थे लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था जब उन्होंने रफी से बातचीत तक करनी बंद कर दी थी। लता गानों पर रायल्टी की पक्षधर थीं जबकि मोहममद रफी ने कभी भी रायल्टी की मांग नहीं की। दोनों का विवाद इतना बढ़ा कि मोहम्मद रफी और लता के बीच बातचीत भी बंद हो गई और दोनो ने एक साथ गीत गाने से इंकार कर दिया। हालांकि चार वर्ष के बाद अभिनेत्री नरगिस के प्रयास से दोनों ने एक साथ एक कार्यक्रम में ..दिल पुकारे... गीत गाया। बहुत कम लोगो को पता होगा कि लता महज एक दिन के लिये स्कूल गयी थीं। इसकी वजह यह रही कि जब वह पहले दिन अपनी छोटी बहन आशा भोंसले को स्कूल लेकर गयी तो अध्यापक ने आशा को यह कहकर स्कूल से निकाल दिया कि उन्हें भी स्कूल की फीस देनी होगी। बाद में लता ने निश्चय किया कि वह कभी स्कूल नही जायेगी। इसके बाद उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर में ही रहकर अपने नौकर से प्राप्त की। हालांकि बाद में उन्हें न्यूयार्क यूनिवर्सिटी सहित छह विश्वविधालयों से मानक उपाधि से नवाजा गया । लता को अपने घर में केवल के.एल.सहगल के गीत गाने की अनुमति मिला करती थी। उनकी यह ख्वाहिश थी कि वह सहगल से मुलाकात करे और अभिनेता दिलीप कुमार के लिये गाना गाये लेकिन उनके ये दोनो शौक पूरे नही हो सके । यूं तो लता मंगेश्कर ने अपने सिने करियर में कई नामचीन अभिनेत्रियों के लिये पार्श्वगायन किया है लेकिन अभिनेत्री मधुबाला जब फिल्म साईन करती थी तो अपने कांट्रेक्ट में इस बात का उल्लेख करना नही भूलती थी कि उनके गाने लता मंगेश्कर को गाने का अवसर दिया जाये । कहा जाता है कि वर्ष 1962 में जब लता 32 साल की थी तब उन्हें स्लो प्वॉइजन दिया गया था। लता की बेहद करीबी पद्मा सचदेव ने इसका जिक्र अपनी किताब ‘ऐसा कहां से लाऊं’ में किया है। जिसके बाद राइटर मजरूह सुल्तानपुरी कई दिनों तक उनके घर आकर पहले खुद खाना चखते, फिर लता को खाने देते थे। हालांकि, उन्हें मारने की कोशिश किसने की, इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया।
लता को अपने सिने करियर में मान सम्मान बहुत मिला है। लता फिल्म इंडस्ट्री की पहली महिला हैं जिन्हें भारत रत्न और दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्राप्त हुआ। उनके अलावे सत्यजीत रे को ही यह गौरव प्राप्त है। वर्ष 1974 में लंदन के सुप्रसिद्ध रॉयल अल्बर्ट हॉल में उन्हें पहली भारतीय गायिका के रूप में गाने का अवसर प्राप्त है। लता को फिल्म देखने का शौक काफी कम रहा है। उनकी सबसे पसंदीदा फिल्म द किंग एंड आई . है। हिंदी फिल्मों में उन्हें त्रिशूल, शोले, सीता और गीता, दिलवाले दुल्हिनियां ले जायेगे और मधुमती पसंद हैं। वर्ष 1943 में प्रदर्शित फिल्म किस्मत उन्हें इतनी अधिक पसंद आई थी कि उन्होंने इसे लगभग 50 बार देखा था । लता को मेकअप पसंद नही है। उन्हें डायमंड रिंग पहनने का काफी शौक रहा है। उन्होंने अपनी पहली डायमंड रिंग वर्ष 1947 में 700 रुपये में खरीदी थी। लता अपने करियर के शुरूआती दौर में डायरी लिखने का शौक रखती थीं जिसमें वह गाने और कहानी लिखा करती थी बाद में उन्होंने उस डायरी की अनुपयोगी समझ कर उसे नष्ट कर दिया। लता ने फिल्म पार्श्वगायन के अलावे बतौर निर्मात्री एक हिंदी फिल्म “लेकिन” का निर्माण भी किया है। वर्ष 1991 में प्रदर्शित इस फिल्म में उनकी आवाज में ..यारा सीली सीली..गीत श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इस गीत के लिये गीतकार गुलजार को सर्वश्रेष्ठ गीतकार का पुरस्कार दिया गया था। लता की फेवरेट सिंगर कोई इंडियन नहीं, बल्कि मिस्र की सिंगर ‘उम्म कुलसुम’ हैं। लता ने देश-विदेश में लगभग छह दशको से अपनी जादुई आवाज के जरिये बीस से अधिक भाषाओं मे पचास हजार से भी ज्यादा गीत गाकर ..गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड.. में नाम दर्ज करा चुकी है। लता ने करीब 10 फिल्मों में एक्टिंग की है, जिनमें ‘बड़ी मां’ (1945), ‘जीवन यात्रा’ (1946) और ‘मंदिर’ (1948) जैसी फिल्मों के नाम शामिल हैं। लोग फिट रहने के लिए एक्सरसाइज करते हैं, जिम जाते हैं लेकिन लता मंगेश्कर अपनी आवाज की फिटनेस के लिए बबल गम चबाती हैं। वह किसी भी गाने की रिकॉर्डिंग से पहले उस गीत को अपनी हैंड राइटिंग में पेपर पर लिखती हैं और पेज के टॉप पर 'श्री' भी लिखती हैं।